
अजय देवगन की फिल्म 'मैदान' का ट्रेलर गुरुवार को रिलीज हुआ और फिल्म फैन्स का एक लंबा इंतजार पूरा हो गया. ये फिल्म पहले जून 2022, फिर 2023 की रिलीज डेट मिस करने के बाद आखिरकार ईद 2024 पर रिलीज के लिए तैयार है.
'मैदान' के ट्रेलर में अजय की परफॉरमेंस और कहानी को काफी पसंद किया जा रहा है. फुटबॉल कोच का रोल कर रहे अजय, भारत की नेशनल टीम तैयार कर रहे हैं जो दुनिया की किसी भी टीम को हराने का दम रखती हो. जहां एक तरफ जनता 'मैदान' के ट्रेलर में अजय की एक्टिंग और डायरेक्टर अमित शर्मा की स्टोरी टेलिंग की तारीफ कर रही है. वहीं बहुत से लोगों का एक ओपिनियन ये भी है कि उन्हें 'मैदान' का ट्रेलर देखकर शाहरुख खान की 'चक दे इंडिया' याद आ रही है. वहीं किसी को ट्रेलर देखकर अक्षय कुमार की 'गोल्ड' याद आ रही है. लेकिन क्या सच में ऐसा है?
सेम-सेम मगर डिफरेंट
एक लाइन देखिए... पाकिस्तान की लड़की से, भारतीय लड़के को प्यार होता है और वो लड़की के प्यार में सरहद लांघता हुआ उसके परिवार के सामने खड़ा हो जाता है. इस डिस्क्रिप्शन के साथ आपको कौन सी फिल्म याद आती है? कुछ लोग इसके जवाब में 'गदर' का नाम लेंगे, कुछ 'वीर जारा' का और कुछ दोनों का. मगर इतना तो हर पक्का बॉलीवुड फैन जानता है कि ये दोनों फिल्में बिल्कुल अलग तासीर की थीं और दोनों ने जमकर बिजनेस भी किया था.
ठीक इसी तरह, अपने परिवारों की दुश्मनी के बावजूद एक दूसरे से प्यार कर बैठे लड़का-लड़की की लव स्टोरी भी आपको एक नहीं, कई फिल्मों में मिलेगी. जैसे- बॉबी, कयामत से कयामत तक, सनम बेवफा. लड़की के गुस्सैल-कड़क गार्जियन का दिल जीतकर, अपनी मोहब्बत की कहानी पूरी करने वाला एक हीरो 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का राहुल है और दूसरा 'हीरो नंबर 1' का राजू भी. लेकिन क्या ऐसा था कि ये हीरो या ये फिल्में एक जैसी थीं? बिल्कुल नहीं.
एक फिल्म को, दूसरी फिल्म के पैमाने पर नापकर देखना असल में एक क्रिएटिव काम को कमतर बनाने जैसा है. ये तो होता ही है कि हम मोटे-मोटे तौर पर चीजों को एक ही ब्रैकेट में अपनी सुविधा के लिए रखते हैं. मगर किसी भी फिल्म को, दूसरी फिल्म तक ही लिमिट कर देना तो अन्याय से कम नहीं है. हम साहबी ने एक जैसी साउंड कर रहीं तमाम फिल्मों को एन्जॉय किया है और ये पाया है कि ऊपर से भले मामला एक जैसा लगता हो, कहानी में जाने पर सभी फिल्में एक दूसरे से बहुत अलग दिखती हैं. एक्टर्स का काम, कहानी की डिटेलिंग और एक्टर्स का काम फिल्मों को एक दूसरे से अलग बनाते हैं.
कैसे अलग हैं 'मैदान', 'गोल्ड' और 'चक दे इंडिया'
शाहरुख खान की 'चक दे इंडिया' और अक्षय कुमार की 'गोल्ड' ऐसी ही कहानियां हैं जिनमें एक कोच, अंडरडॉग प्लेयर्स की एक टीम तैयार करता है, जिससे किसी को कोई उम्मीद नहीं है. और अपनी इस टीम को लेकर बड़ी-बड़ी टीमों को हराता है. 'मैदान' के ट्रेलर में भी कहानी लगती तो ऐसी ही है, मगर अजय देवगन की फिल्म में मामला काफी अलग है.
सबसे पहला अंतर तो यही है कि शाहरुख और अक्षय की फिल्में हॉकी के खेल पर थीं, जबकि अजय की 'मैदान' फुटबॉल पर है. हमारे देश की आम जनता में क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों का क्रेज भले कम दिखता हो, मगर हॉकी फिर भी फुटबॉल से तो ज्यादा ही पॉपुलर है. हॉकी में एक समय हम बड़े शानदार रहे हैं ये बात तो लोगों की कॉन्शस में है ही. और जनता में हॉकी के नाम पर किसी को कुछ याद हो या न हो, मगर इस खेल में भारत के लेजेंड मेजर ध्यानचंद का नाम फिर भी लोगों को याद रहता है.
फुटबॉल में भारत ने क्या किया है और क्या कर रहा है, ये जानने वाले लोग अब भी बहुत ही ज्यादा लिमिटेड मिलते हैं. 1950-60 के दशक में भारत की फुटबॉल टीम के कारनामों का इतिहास न तो लोगों को ही याद होता है और न फिल्मों में ही कभी दिखाया गया.
'गोल्ड' में कहानी की शुरुआत ही ओलंपिक्स से होती है, जहां इंडियन टीम फाइनल खेलती और जीतती दिखती है. मगर दिक्कत ये थी कि वो जीत जब आई तब भारत आजाद नहीं था और इस जीत के बाद ब्रिटिश नेशनल एंथम बजा और ब्रिटिश इंडिया का झंडा फहराया गया. कोच बने अक्षय कुमार और उनकी टीम वादा करते हैं कि एक बार आजाद भारत के लिए गोल्ड जीतना है.
'मैदान' में जो फुटबॉल टीम है, वो इतनी अंडरडॉग है कि घर पर ही लोगों को उनसे कुछ उम्मीद नहीं है. यहां कोच अजय का सपना है कि फुटबॉल दुनिया लगभग सभी देशों में खेला जाता है, यहां अगर भारत ने कुछ कमाल किया तो पूरी दुनिया नाम पहचानने लगेगी. 'मैदान' में अजय का किरदार खुद भी प्लेयर रह चुका है लेकिन उसके बेस्ट साल निकल चुके हैं इसलिए वो अपनी टीम को, भारत का नाम फुटबॉल में ऊंचा करते देखना चाहता है. 'चक दे इंडिया' में कोच कबीर खान (शाहरुख खान) को अपना नाम पर लगा 'गद्दार' का दाग हटाना है.
इन तीनों कहानियों में, तीनों हीरोज कोच हैं. मगर तीनों की महत्वाकांक्षाएं और उनके पीछे का मोटिवेशन बहुत अलग-अलग हैं. अपनी-अपनी जगह पर तीनों की टीमें स्किल के लेवल पर बहुत अलग है. 'मैदान' की कहानी जिस रियल इंडियन कोच, सैयद अब्दुल रहीम पर बेस्ड है, वो अपने आखिरी दिनों में कैंसर से जूझ रहे थे. ये अजय के किरदार को शाहरुख-अक्षय से बिल्कुल अलग कर देता है. और सबसे अलग बात है तीनों एक्टर्स की एक्टिंग. अजय, शाहरुख और अक्षय में एक्टिंग परफॉरमेंस के लेवल पर कोई तुलना ही नहीं हो सकती. तीनों का जोन ही बिल्कुल अलग है.
अंडरडॉग टीमों की कहानियों पर बनी फिल्मों में एक खासियत ये होती है किआपको पता होता है कि कहानी के एंड में ये टीम कमाल कर देगी और वक्त-जज्बात-माहौल बदल देगी. लेकिन दर्शक थिएटर में ये सब होने का थ्रिल महसूस करने जाते हैं. आपको पता होता है कि कहानी में होगा क्या... मगर कैसे होगा, आप ये देखने जाते हैं. और फुटबॉल के मामले में तो इसका बहुत रिपोर्टेड इतिहास भी नहीं है कि 1950-60 के दशक में भारतीय टीम ऐसा क्या कर रही थी जो भारत को 'एशिया का ब्राजील' कहा गया. ऐसे में 'मैदान' इतिहास में घटे एक थ्रिलिंग मोमेंट को स्क्रीन पर जिन्दा होते देखने का मौका देती है.