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जन्मदिन विशेष: जब एक दिन में तीन जगह से निकाले गये मनोज बाजपेयी

23 अप्रैल को बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर मनोज बाजपेयी जन्मदिन सेलिब्रेट कर रहे हैं. वो पिंजर, सत्या, शूल, गैंग्स ऑफ वासेपुर, अलीगढ़, राजनीति, जुबैदा, फैमिली मैन जैसे प्रोजेक्ट् में दिखे हैं. लेकिन शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था. उन्होंने करियर के शुरुआती दिनों में कई दफा रिजेक्शन झेला था.

मनोज बाजपेयी मनोज बाजपेयी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 3:00 PM IST

पुस्तक अंश- मनोज बाजपेयी :द डेफिनेटिव बायोग्राफी
शीर्षक- जब एक दिन में तीन जगह से निकाले गये मनोज बाजपेयी
जन्मदिन विशेष


मुंबई पहुंचकर मनोज बाजपेयी को सीरियल ‘अब आएगा मज़ा’ में काम तो मिल गया, लेकिन यह सीरियल मज़ा कम सज़ा ज्यादा साबित हुआ. निर्देशक पंकज पाराशर को मनोज का काम अच्छा नहीं लगा और पायलट एपिसोड के बाद ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. मनोज ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैंने पूरे दिन शूटिंग की. हालांकि, 2-3 घंटे की शूटिंग के बाद ही मुझे समझ आ गया था कि पंकज को काम पसंद नहीं आ रहा. फिर भी काम खत्म किया और अपना सामान लेने दिल्ली चला गया.”

इस बीच, मनोज की जिंदगी में एक और घटना हुई थी, जिसने शायद किस्मत में उनका भरोसा पक्का किया. दरअसल, ‘बैंडिट क्वीन’ की शूटिंग के बाद अश्विनी चौधरी के कहने पर मनोज दिल्ली में प्रकाश झा से मिलने पहुंचे. मनोज कहते हैं, “प्रकाश झा ने ‘मृत्युदंड’ में मुझे बड़ा रोल ऑफर किया. मैंने सोचा कि मैं मुंबई शिफ्ट होने की सोच ही रहा था कि ऑफर मिल गया.”

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‘अब आएगा मजा’ से मनोज का पत्ता साफ हुआ तो मनोज प्रकाश झा से दोबारा मिलने पहुंचे लेकिन प्रकाश झा ने मनोज को टके सा जवाब दे दिया. मनोज कहते हैं, “मैं प्रकाश झा से मिलने पहुंचा तो मुझे महसूस हुआ कि मैं वो रोल भी खो चुका हूं.” मनोज अब इस वाक्ये को बहुत शालीनता से बताते हैं, लेकिन उस वक्त प्रकाश झा से उनकी जिस तरह बातचीत हुई, उसने मनोज को हिलाकर रख दिया था. मनोज के दोस्त अनीश रंजन कहते हैं, “मनोज जब प्रकाश झा से मिलकर आया तो उसने मुझे घटना बताई थी. मनोज उनके दफ्तर पहुंचा तो बिल्डिंग के नीचे प्रकाश झा खड़े थे. उनके साथ कुछ और लोग थे. मनोज ने उनसे कहा कि वो दो मिनट उनसे बातचीत करना चाहता है. प्रकाश झा ने बड़े रुखे से जवाब देते हुए कहा-क्या आपसे बातचीत करने के लिए मैं खंडाला चलूं.” इस कटाक्ष का दिल पर लगना लाजिमी था. अनुराग कश्यप ने मुझे बताया, “जब मैं पहली बार मुंबई में मनोज बाजपेयी से मिला, तब वह अपने दो-तीन खास दोस्तों को यही किस्सा सुना रहे थे.”

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मनोज मुंबई पहुंचे और अंधेरी के पास डीएन नगर में एक घर किराए पर लिया. मुंबई में अपना ठिकाना भी उपलब्धि होती है. मनोज और सौरभ के मन में भी यही ख्याल था कि उन्होंने एक बड़ा तीर मार लिया है. दोनों दोस्त जरुरी सामान लाने में जुट गए. डीएन नगर बाजार से गद्दे, चटाइयां और बर्तन वगैरह खरीदे गए. इसी खरीदारी के बीच एक ऐसा हसीन वाक्या हुआ, जिसने दोनों दोस्तों की मुंबई में पहली पार्टी की जमीन तैयार कर दी. सौरभ बताते हैं, ''जब हम खऱीदारी कर रहे थे तो एक रेस्तरां के बाहर मुझे लिखा दिखायी दिया-तंदूरी मुर्गा 12 रुपए. दिल्ली में उस वक्त तंदूरी मुर्गा 35-40 रुपए का आता था. मैंने और मनोज ने पार्टी की योजना बना ली. मनोज ने कहा कि तुम मुर्गा खरीदो, मैं बाकी सामान खऱीदता हूं. मैंने दुकानदार से कहा- एक मुर्गा पैक कर दो. घर पहुंचे तो भूख लगी थी. मुंह में पानी आ रहा था. लेकिन जैसे ही हमारी पार्टी शुरु हुई और हमने मुर्गे का पैकेट खोला, हमारा दिमाग खराब हो गया. सिर्फ चार या पांच इंच का मुर्गा रहा होगा. मनोज बहुत भन्ना गया. बोला-- क्या यार क्या उठा लाए. उसी दिन हमें मुंबई का रंग ढंग समझ आ गया था.”

मनोज बाजपेयी :द डेफिनेटिव बायोग्राफी

सच कहा जाए तो मनोज की मुंबई में पहली पार्टी जितनी फीकी रही, उतनी ही फीकी उनकी मुलाकातें भी थीं. निर्देशकों से मिलने के लिए उन्हें फोन करना, यदा-कदा ऑडिशन देना और बड़े निर्देशकों के सहायकों को तस्वीरें देना, यही काम था. एक सस्ता पोर्टफोलियो भी मनोज ने बनवाया लेकिन अधिकांश बार सहायक निर्देशक ही तस्वीरें लेकर कूड़े के डिब्बे में फेंक देते थे. उस वक्त अव्वल तो काम मिलता नहीं था, और मिल भी जाए तो परवान नहीं चढ़ता था. एक बार हद हो गई, जब मनोज को एक ही दिन में तीन जगह से ना सुनने को मिली. मनोज कहते हैं, “सारा दांव उल्टा पड़ रहा था. उन दिनों कास्टिंग डायरेक्टर्स नहीं हुआ करते थे. हम कलाकार स्ट पर जाकर सहायक निर्देशकों से दोस्ती गांठा करते थे ताकि कुछ काम मिल सके. इसी तरह मुझे एक सीरियल मिला. 

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शूटिंग पर पहले दिन मैंने जैसे ही पहला शॉट दिया तो कैमरे के सामने खड़े सारे लोग अचानक लापता हो गए. मेरे हिसाब से शॉट अच्छा था, लेकिन कोई बताने वाला नहीं था. कमरे में मैं अकेला था. थोड़ी देर बाद एक सहायक निर्देशक आया और बोला कि आप कास्ट्यूम रूम में जाकर कपड़े बदल लीजिए. मैडम को आपका काम पसंद नहीं आया. मैं वहां गया तो कॉस्ट्यूम दादा ने मेरा दर्द समझा और बोले- अरे, अमिताभ बच्चन के साथ भी ऐसा ही हुआ था. निराश मत होना वगैरह वगैरह. मैंने अपना बैग उठाया और निकल लिया. ये बहुत अजीब और शर्मसार करने वाला था क्योंकि ऐसा लग रहा था कि किसी एक्टर को पहले टेक के बाद ही निकाल दिया गया.

वहां से मन बहलाने के लिए मैं दूसरी जगह गया, जहां दो दिन बाद मुझे एक डॉक्यू ड्रामा के शूट पर जाना था. वहां पहुंचा तो देखा कि मेरी जगह कोई और शूट कर रहा है. बताया गया कि दूसरा एक्टर पसंद आ गया तो उसे ले लिया. मजे की बात ये कि शूटिंग दो दिन बाद थी, लेकिन मुझे किसी ने बताना तक जरूरी नहीं समझा था. मैं लौटकर अपने कमरे में आया और फिर पैसे लेकर पीसीओ गया. मैंने उस बंदे को फोन किया, जिसने एक रोल देने का वादा किया था.  वो फोन पर बोला- यार, क्या है कि हमें थोड़ा लंबा लड़का चाहिए था तो किसी दूसरे को ले लिया है. तुझे कोई रोल देते हैं जल्दी. इस तरह एक दिन में तीन जगह से मैं निकाला गया.”

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निश्चित रुप से मनोज के लिए यह वक्त त्रासद था क्योंकि जिस व्यक्ति को मुंबई में छोटे छोटे काम के लिए दर दर भटकना पड़ रहा था, वो दिल्ली रंगमंच का सितारा रहा था.
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लेखक-पीयूष पांडे, अनुवाद- रोहित वत्स
प्रकाशक- पेंगुइन रेंडम हाउस

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