
बॉलीवुड अभिनेता मनोज बाजपेयी को बिहार का गौरव कहा जाता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उनकी जड़े उत्तर प्रदेश में हैं. उनके परदादा उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले थे और निर्वासित होकर बिहार पहुंचे थे. इसी तरह, मनोज बाजपेयी से पहले उनके किसान पिता भी अपने जमाने में एक्टर बनना चाहते थे और उन्होंने भी पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिले के लिए आवेदन दिया था. ऐसी कई दिलचस्प जानकारियों को समेटे मनोज बाजपेयी की जीवनी बाजार में आ रही है. पेंगविन इंडिया द्वारा प्रकाशित ‘मनोज बाजपेयी, कुछ पाने की जिद’ को लिखा है वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पांडे ने.
मनोज बाजपेयी के बारे में रोचक तथ्य
मनोज बाजपेयी की यह जीवनी अभिनय को लेकर उनके जिद और जुनून की कहानी है जिसमें पाठकों को कई नई बातें पता लगेंगी. मसलन-- बाजपेयी के पिता भी पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में ऑडिशन का टेस्ट देने गए थे. उनके पूर्वज अंग्रेजी राज के एक दमनकारी किसान कानून की वजह से उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चंपारण आए थे और ये भी कि मनोज बाजपेयी का बचपन उस गांव में बीता है जहां से महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध चंपारण सत्याग्रह दौरान एक रात्रि विश्राम किया था. साथ ही फिल्म सत्या के भीखू म्हात्रे का चरित्र मनोज के गृहनगर बेतिया के एक शख्स से प्रेरित था, वगैरह-वगैरह.
पीयूष कहते हैं, “मनोज बाजपेयी का गांव से निकलकर मुंबई पहुंचने और वहां जमे रहने का सफर अपने आप में किसी फिल्म से कम नहीं है. ये ऐसी कहानी है, जिसने यूपी-बिहार के कई युवाओं को प्रेरित किया है और किताब पढ़ने के बाद और भी युवा प्रेरित होंगे.” वो कहते हैं कि इस किताब में मनोज बाजपेयी की पूरी शख्सियत समाहित है. उनके जीवन के कई ऐसे किस्से हैं, जो ना तो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और ना उनके फैंस को मालूम हैं. इसलिए मुझे उम्मीद है कि मनोज बाजपेयी की जीवनी पाठकों को पसंद आएगी.
भोजपुरी एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे को 4 साल तक नहीं मिला था काम, निरहुआ की इस फिल्म ने बदली किस्मत
गौरतलब है कि मनोज बाजपेयी ने सत्या, शूल, अक्स, पिंजर, अलीगढ़, भोंसले जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया है. हाल में भोंसले फिल्म में शानदार अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय अवॉर्ड दिया गया. पद्मश्री से सम्मानित मनोज बाजपेयी की वेब सीरीज द फैमिली मैन के पहले और दूसरे सीजन ने रिकॉर्ड तोड़ सफलता हासिल की है. पीयूष पांडे इससे पहले तीन पुस्तकें छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन, धंधे मातरम् और कबीरा बैठा डिबेट में लिख चुके हैं.