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Exclusive: आदिपुरुष लिखने में हुई बड़ी भूल, लेकिन दूसरा मौका तो मैं भी डिजर्व करता हूं- मनोज मुंतशिर

मनोज मुंतशिर द्वारा लिखी गई फिल्म आदिपुरुष के रिलीज होते ही उन्हें फिल्मों के डायलॉग्स के लिए तमाम विवादों का सामना करना पड़ा था. मनोज ने इन विवादों से आजिज आकर अपनी सफाई भी दी थी, लेकिन वो भी उनपर भारी पड़ गया था.

मनोज मुंतशिर मनोज मुंतशिर
नेहा वर्मा
  • मुंबई,
  • 08 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:20 AM IST

आदिपुरुष फिल्म रिलीज के बाद अगर कोई शख्स सबसे ज्यादा टारगेट किया गया, तो वो थे फिल्म के राइटर मनोज मुंतशिर. मनोज को उनकी राइटिंग की वजह से सोशल मीडिया पर निगेटिविटी का सामना करना पड़ा था. अचानक से हुए विवाद के बाद जब मनोज ने अपनी सफाई भी दी, तो उस वक्त भी उन्हें नहीं बख्शा गया. आलम यह था कि बढ़ती निगेटिविटी से परेशान होकर उन्होंने न केवल कुछ वक्त के लिए सोशल मीडिया से ब्रेक लिया बल्कि वो देश से दूर कहीं यात्रा पर भी निकल गए, खुद का आत्ममंथन करने. आज मनोज उन तमाम निगेटिविटी और विवादों से जुड़ी चीजों पर बात करने को तैयार हैं. आजतक डॉट इन से एक्सक्लूसिव बातचीत पर मनोज आदिपुरुष कंट्रोवर्सी पर अपना पक्ष रखते हैं. 

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आदिपुरुष की कहानी लिखने में हुई गलती 

जब मनोज से हमने पूछा कि क्या वो मानते हैं कि आदिपुरुष कहानी लिखने में उनसे चूक हुई है. जवाब में मनोज कहते हैं, लिखने में.. हां 100 प्रतिशत..इसमें कोई शक है ही नहीं. मैं इतना इनसिक्योर आदमी नहीं हूं कि मैं अपनी राइटिंग स्किल को डिफेंड करता फिरूं कि मैंने तो अच्छा लिखा है. अरे सौ प्रतिशत गलती हुई है. लेकिन जब गलती हुई, तो उस गलती के पीछे कोई खराब मंशा नहीं थी. मैंने धर्म को ठेस पहुंचाने का और सनातन को तकलीफ देने का या भगवान राम को कलुषित करने का, हनुमान जी के बारे में कुछ ऐसा कह देने का जो नहीं है.. ऐसा उद्देश्य बिलकुल भी नहीं था. मैं ऐसा करने का कभी सोच भी नहीं सकता. हां कहने का ये मतलब है, गलती हुई है.. बहुत बड़ी गलती हुई है.. मैंने इस हादसे से बहुत कुछ सीखा है और बहुत बढ़ियां लर्निंग प्रोसेस रहा. आगे से बहुत एहतियात बरतेंगे. मगर ऐसा नहीं है कि अपनी बात करना छोड़ देंगे. 

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कौन चाहेगा कि करियर खत्म कर लें 

फिल्म को लेकर जब विवाद उठा, तो उनकी निजी जिंदगी पर क्या असर पड़ाजवाब में वो कहते हैं, आप इंसान हैं.. पत्थर तो नहीं.. लाश नहीं.. हर चीज का फर्क पड़ता है. प्यार भी आपको अच्छा लगता है और जब आप पर पत्थर उछाले जाते हैं, तो उनसे भी आपको तकलीफ होती है. आपको इससे डील करना सीखना पड़ता है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि इस तरह का रिएक्शन रहेगा. कोई भी नहीं सोचता है. फिल्म तो बहुत ही अच्छी नीयत से बनाई गई थी न. 600 करोड़ अगर हम इस फिल्म में डाल रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि सभी चाहते हैं कि बेहतरीन बने. कौन चाहेगा कि इस फिल्म को बनाकर हम अपना करियर खत्म कर लें. जाहिर सी बात है इसके पीछे हमारा कोई एजेंडा नहीं था. बस चीजें खराब होती चली गईं. 

सफाई नहीं देनी चाहिए थी 
मनोज आगे कहते हैं, मुझे लगता है कि जब चीजें इतनी जोर-शोर से चल रही थीं, तो उस वक्त मुझे सफाई नहीं देनी चाहिए थी. ये मेरी सबसे बड़ी भूल थी. मुझे उस वक्त नहीं बोलना चाहिए था. अगर इससे लोग नाराज हुए हैं, तो उनकी नाराजगी जायज है. क्योंकि वो वक्त सफाई देने का नहीं था और वो गलती आज मुझे समझ में आती है. 

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अगर सपोर्ट में लोग नहीं होते, तो यहां खड़ा नहीं होता 

आपने अपने धर्म और ट्रेडिशन को हमेशा से ऊपर रखा है. उनके सेंटिमेंट को हर्ट करने का इल्जाम लगा है. उनकी तरफ से भी काफी नाराजगी झेलनी पड़ी थी. इसपर मनोज कहते हैं, मुझे हिंदुओं का सपोर्ट मिला था. अगर आप सोशल मीडिया पर ही देख रही हैं, तो वो दुनिया नहीं है. बहुत सारे लोग सपोर्ट में आए थे. ऐसे भी बहुत से लोग थे, जिन्हें क्षणिक नाराजगी थी, लेकिन वो ये समझ भी रहे थे कि इसके पीछे कोई बुरी मंशा भी नहीं थी. अगर सपोर्ट में लोग नहीं होते, तो आज मैं यहां खड़ा भी नहीं होता. 

निगेटिविटी से उकता गया था और देश के बाहर रहा 

सुना है आप निगेटिविटी से इतने आहत हुए कि कुछ वक्त के लिए सोशल मीडिया से ब्रेक ले लिया था और विदेश चले गए थे. जवाब में मनोज कहते हैं, वो निगेटिविटी तो जाहिर सी बात है, होगी ही. जब आपको सोशल मीडिया पर 8 मिलियन लोग फॉलो करते हैं. तो वो 8 मिलियन की बारात आपके साथ है, वो किसी भी दिशा में स्विंग कर सकती है. कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ. उस वक्त डिसकनेक्ट होने का ही आपके पास विकल्प बचता है. मैं इसी वजह से इन सबसे दूर चला गया था. मैं विदेश में कुछ वक्त के लिए रहा ताकि खुद का आत्ममंथन करूं. 

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इंडस्ट्री में न मेरा कोई दोस्त.. न ही दुश्मन 

इंडस्ट्री वालों के बारे में यह बात बहुत आम है कि निगेटिविटी बढ़ते ही दरकिनार कर लेते हैं. आप क्या कहना चाहेंगे. जवाब में मनोज कहते हैं, मैंने हमेशा से इंडस्ट्री के साथ 'नो दोस्ती-नो दुश्मनी' वाला रिश्ता निभाया है. मैं बस उनसे प्रोजेक्ट व काम की नजर से ही जुड़ता हूं बाकि न इंडस्ट्री में कोई मेरा दोस्त है और न ही दुश्मन... न मैं उनकी पार्टीज में जाता हूं या महफिलें जमाता हूं.. मेरे जो दोस्त हैं, वो इंडस्ट्री से बाहर हैं. ये वो लोग हैं, जिनके साथ मैंने अपना बचपन और कॉलेज का दिन गुजारा है. मुझे इसलिए उनके सपोर्ट या न सपोर्ट करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

दरअसल ऐसा कुछ हुआ भी नहीं है. इंडस्ट्री को तो ये बिजनेस सबसे ज्यादा पता है. वो तो हमेशा से इस तरह की निगेटिविटी और कंट्रोवर्सी देखते आए हैं. ऐसा भी नहीं है कि काम खोया है. मैं अपने काम को लेकर इतना सिलेक्टिव रहा हूं कि 40 से 50 ऑफर आते हैं, तो मैं चार या पांच ही उसमें से कर पाता हूं. मैं जिनके लिए हामी भी भरता हूं, वो इसलिए होता है कि मुझे लगता है कि उन्हें उस जगह पर मेरी जरूरत है. मैं रैंडम फिल्में अब नहीं करता हूं. पहले करता था एक-एक साल में 17 से 18 फिल्में भी की हैं लेकिन अब खुद ही सिलेक्टिव हूं. 

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जान से मार देने की धमकी से परिवार डर गया था 

मनोज आगे कहते हैं, मैंने जो महसूस किया था, वो तो अलग बात है. मुझे सबसे बड़ा आघात तब लगा, जब मेरा परिवार इस निगेटिविटी से परेशान हो गया था. रोजाना न्यूज चैनल में मेरे डेथ थ्रेड जैसी खबरें आती थीं, जिसे देखकर परिवार डर जाता था. देखिए आप गलत हैं या सही लेकिन अपने परिवार के लिए तो स्पेशल होते ही हैं. दुनिया आपको अच्छा माने और कल बुरा माने लेकिन परिवार के लिए तो आप हीरो होते हो. हो सकता है कि थोड़े दिनों के लिए मैं दुनिया के लिए विलेन बन गया था, लेकिन अपने मां-बाप की आंखों का तारा तो हमेशा था और रहूंगा न. इस बात से उन्हें तकलीफ होगी ही न कि मेरा बेटा किसी मुसीबत में न पड़ जाए. ज्यादा तकलीफ आपको तब ही होती है, जब आप अपनों की आखों में तकलीफ देखते हैं. मेरा दुख इतना बड़ा नहीं होता है, लेकिन आपको पता लगता है कि आपके पिताजी लगातार परेशान हो रहे हैं. मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि सरकार ने मुझे पूरी प्रोटेक्शन दे रखी है. महाराष्ट्र पुलिस और सरकार का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने बहुत सपोर्ट किया था. डेथ थ्रेट्स तो अभी भी आ रहे हैं, लेकिन अब मैंने उनपर ध्यान देना बंद कर दिया है. 

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मैं सेकेंड चांस तो जरूर डिजर्व करता हूं 

आपको लगता है कि आज दर्शक धर्म को लेकर सेंसिटिव हुए हैं. एक मेकर के तौर पर आपकी क्रिएटिविटी की फ्रीडम छीन जाती है. मसलन आदिपुरुष के रूप में जो एक्सपेरिमेंट आपका रहा. लोगों के रिएक्शन ने शायद डरा दिया है. मनोज कहते हैं, इसमें दोनों तरफ से चीजें बदली हैं. हमने भी कोई बहुत सही फिल्म नहीं बनाई थी और मैं ये मानता हूं. इससे पहले मैंने ही बाहुबली भी लिखी थी. मैं तो ये नहीं कह सकता कि यहां मैंने बाहुबली जैसी कहानी लिखी थी. गलती तो हमसे भी हुई है. हमारा निशाना सही नहीं लगा लेकिन ये समझने वाली बात है कि अगर इधर से गलती हुई है, तो इसके सारे चांसेस आप खत्म मत कर दो. तुम अगर उसे ही मार दोगे, तो तुम्हें दूसरी बाहुबली नहीं मिलेगी. क्योंकि उसी राइटर ने बाहुबली, तेरी मिट्टी और देश मेरे जैसे गाने लिखे हैं. मैं यह बात बहुत गर्व से कहता हूं कि आज आप इस देश में रामनवमी, दिवाली, दशहरा मेरे गानों के बिना मना ही नहीं सकते हैं.

जो भी गाने बजते हैं, उसमें टॉप पर मेरे ही गाने होते हैं. जब आप देशभक्ति जाहिर करते हैं, तो मेरा गाना आपकी जेहन में आता ही है. तो आप क्या चाहते हो कि मेरे हाथ से कलम छीन ली जाए. सब खत्म कर लिया जाए. अगर ये सौदा आपको मंजूर है, तो मैं मानता हूं कि एक राष्ट्र के तौर पर हम सही चुनाव नहीं कर रहे हैं. सेकेंड चांस तो उन लोगों को जरूर मिलना चाहिए, जिन्होंने पास्ट में अपनी काबिलियत प्रूव की है. मैं मानता हूं कि मैंने अपने पास्ट में इतने अच्छे काम किए हैं, तो मैं सेकेंड चांस जरूर डिजर्व करता हूं.

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