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Munjya Review: दिलचस्प है 'मुंज्या', डर से उछलने पर करेगी मजबूर, फनी मोमेंट्स जीतेंगे दिल

प्रोड्यूसर दिनेश विजान ने हॉरर कॉमेडी जॉनर को ऐसा पकड़ा है कि दर्शकों को मजा ही आ गया है. 'स्त्री' और 'भेड़िया' जैसी फिल्मों को लाने के बाद अब दिनेश, डायरेक्टर आदित्य सरपोतदार के साथ मिलकर फिल्म 'मुंज्या' लेकर आए हैं. कैसी है ये फिल्म जानिए हमारे रिव्यू में.

'मुंज्या' फिल्म के कुछ सीन 'मुंज्या' फिल्म के कुछ सीन
पल्लवी
  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2024,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST
फिल्म:मुंज्या
3/5
  • कलाकार : अभय वर्मा, मोना सिंह, शरवरी वाघ, सुहास जोशी
  • निर्देशक :आदित्य सरपोतदार

Munjya Review: प्रोड्यूसर दिनेश विजान ने हॉरर कॉमेडी जॉनर को ऐसा पकड़ा है कि दर्शकों को मजा ही आ गया है. 'स्त्री' और 'भेड़िया' जैसी फिल्मों को लाने के बाद अब दिनेश, डायरेक्टर आदित्य सरपोतदार के साथ मिलकर फिल्म 'मुंज्या' लेकर आए हैं. भूत-बेताल की कहानियां बचपन में हम सभी ने खूब सुनी हैं, लेकिन बॉलीवुड के इससे नाता ज्यादा खास नहीं रहा. इसी ट्रेंड को तोड़ते हुए अब 'मुंज्या' के मेकर्स ने अपनी फिल्म एक डरावनी लेकिन मजेदार लोककथा को दिखाया है.

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क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी 1952 से शुरू होती है. एक छोटे गांव में गोट्या नाम का एक लड़का अपनी मां (श्रुति मराठे) से मार कहा रहा है. गोट्या की मां उसके डंडी से मार रही है, क्योंकि वो खुद से 7 साल बड़ी लड़की मुन्नी के प्यार में है. मुन्नी की शादी होती है और दूसरी तरफ गोट्या का जनेऊ संस्कार. लेकिन उसके बाद कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जिससे गोट्या की जान चली जाती है. कहा जाता है कि अगर किसी लड़के की मौत जनेऊ संस्कार के 10 के अंदर हो जाए, तो किसी पेड़ के नीचे उसकी अस्थियों को गाड़ दिया जाता है और उसकी आत्मा को पेड़ से बांध दिया जाता है. नहीं तो लड़के की आत्मा ब्रह्मराक्षस बन जाती है, जिसे मुंजा कहते हैं. ये ब्रह्मराक्षस उस परिवार के आगे के वंश के लोगों को दिखाई भी देता है.

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सालों बाद पुणे में रहने वाले बिट्टू (अभय वर्मा) को आप देखते हैं. सीधा-साधा, भोला-भाला बिट्टू यूएस से कॉस्मेटोलॉजी पढ़ना चाहता है. अपनी पंजाबी मां पम्मी (मोना सिंह) के साथ वो उनके पार्लर में साथ बंटाता है. बिट्टू और उसकी मां के साथ उसकी अज्जी यानी दादी (सुहास जोशी) भी रहती हैं. दादी और मां ने दुलार से बिट्टू को बड़ा किया है, लेकिन उसके पिता के बारे में उसे कुछ नहीं पता. वो सुनता रहता है कि उसके पिता ऐसे थे, उसकी ये हरकत उसके पिता जैसी है, वो आदत पिता जैसी है, लेकिन असल में उनके बारे में नहीं जानता और न ही उसे कोई कुछ बताता है.

उसकी जिंदगी में है बेला (शरवरी वाघ), जिससे वो बचपन से प्यार करता है. लेकिन कभी बोल नहीं पाया. और उसका दोस्त और कजिन स्पीलवर्ग (तरणजोत सिंह), जो काफी मजेदार लड़का है. एक और अजीब चीज जो बिट्टू के साथ होती है, वो है उसे अचानक से किसी अनजान जगह के विजन दिखना. बिट्टू किसी जंगल को अपने सपनों में देखना है और जब वो वापस होश में आता है तो उसकी सांसें रुकने लगती हैं. ऐसा क्यों है, वो नहीं जानता. लेकिन किस्मत उसे उसके सपनों के राज से जल्द मिलवाने वाली है. इसके बाद उसकी जिंदगी में आएगा तूफान, जिसे संभालना बिट्टू के लिए बड़ी मुश्किल बन जाएगा.

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परफॉरमेंस

एक्टर अभय वर्मा ने बिट्टू के किरदार को काफी अच्छे से निभाया है. बिट्टू के भोलेपन के साथ-साथ उसकी परेशानी, उसका दर्द और उसका प्यार सबकुछ अभय काफी आराम से पर्दे पर उतारते दिख रहे हैं. उनकी मां के रोल में मोना सिंह भी कमाल हैं. मोना का रोल छोटा था, लेकिन उन्होंने उसे अच्छे से निभाया है. शरवरी वाघ, बेला के किरदार में काफी क्यूट लगी हैं. उनकी परफॉरमेंस भी ठीक थी. सुहास जोशी, तरणजोत सिंह, सत्यराज, अजय पुरकर जैसे एक्टर्स को इस फिल्म में सपोर्टिंग कास्ट में देखा गया है. सभी ने अपने काम को बढ़िया तरीके से किया. तरणजोत की कॉमिक टाइमिंग बढ़िया रही. मुंज्या का सीजीआई किरदार भी काफी डरावना है.

डायरेक्शन और म्यूजिक

'मुंज्या' का स्क्रीनप्ले काफी हद तक वीक है. फिल्म की शुरुआत एक दिलचस्प लोककथा से होती है, लेकिन आज के वक्त में आते-आते कहानी थोड़ी ढीली पड़ने लगती है. बिट्टू और मुंज्या के मिलने का तरीका काफी डरावना है, जिसे देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन इसके बाद मुंज्या, बिट्टू का जीना मुहाल कर देता है और आपको इरीटेट. इसी के साथ फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी काफी लाउड है. बड़े और डरावने सीन्स को तगड़ा फील देने के लिए ऐसा किया गया होगा, लेकिन आप सीन को एन्जॉय करने से ज्यादा म्यूजिक से अपने कानों को बचाने पर ध्यान देते हैं. फिल्म के VFX और विजुअल इफेक्ट्स काफी शानदार हैं.

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फिल्म में ढेर सारे ऐसे सीन्स हैं जो आपको धप्पा करके डराने की कोशिश करते हैं और आपके दिल की धड़कने बढ़ाते हैं. लेकिन डायरेक्टर आदित्य सरपोतदार ने इसमें कॉमेडी का बैलेंस भी अच्छे से रखा है. मूवी के एक भयानक सीन से ही सबसे फनी डायलॉग निकलकर आता है. फिल्म में कई लूप होल्स हैं. लेकिन ये आपको डराने और हंसाने में कामयाब होती है. मूवी के अंत में एक एंड क्रेडिट सीन है, जिसे बिल्कुल भी मिस न करें. शरवरी वाघ का गाना 'तरस' काफी बढ़िया है, जो आपको मूवी से निकलने के बाद भी याद रहता है.

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