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OMG 2: सेक्स एजुकेशन पर बात लेकिन कई मुद्दों पर चूक गई फिल्म!

अक्षय कुमार और पंकज त्रिपाठी की 'OMG 2' बिना किसी शक इस साल की सबसे बहादुर फिल्मों में से एक है. फिल्म ने बड़े पर्दे पर एक ऐसा मुद्दा उठाया, जिसे लोग आम बातचीत में शामिल करने से बचते हैं. लेकिन 'OMG 2' इस मुद्दे को जिस तरह ट्रीट करती है, उसमें कई समस्याएं हैं. कैसे? आइए बताते हैं...

'OMG 2' में अक्षय कुमार, आरुष वर्मा 'OMG 2' में अक्षय कुमार, आरुष वर्मा
सुबोध मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 19 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

पिछले शुक्रवार रिलीज हुई 'गदर 2' जहां बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड्स बना रही है, वहीं इसके साथ ही थिएटर्स में पहुंची 'OMG 2' जनता का दिल जीत रही है. अक्षय कुमार और पंकज त्रिपाठी स्टारर 'OMG 2' को जितने अच्छे रिव्यू मिले, उतनी ही इसे जनता की तारीफ भी मिली. और इस तारीफ में कुछ गलत भी नहीं है. क्योंकि 'सेक्स' शब्द से असहज हो जाने वाले समाज में बच्चों के लिए 'सेक्स एजुकेशन' पर बात करना, वो भी बड़े पर्दे पर, एक बहादुरी भरा काम तो जरूर है.  

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'OMG 2' की कहानी का कनफ्लिक्ट, बड़े पर्दे पर एक बहादुरी भरा अटेम्प्ट जरूर है. लेकिन इस अटेम्प्ट में कहानी जिन रास्तों से होकर गुजरती है उसमें कई बड़ी दिक्कतें हैं. फिल्म रिलीज होने के एक हफ्ते बाद इस बारे में बात करने का मकसद ये है कि अबतक काफी लोग फिल्म देख चुके होंगे. और एक बार फिल्म देखने के बाद ये बात समझना ज्यादा आसान होगा. 

कहानी में मुद्दा क्या है?

'OMG 2' में एक बच्चा है, विवेक (आरुष वर्मा) जो अभी जवानी की तरफ कदम रख रहा है. उसे बुली करने के लिए, उसके साथ पढ़ने वाला एक लड़का उसके प्राइवेट पार्ट के साइज पर कमेन्ट कर देता है. किसी तरह विवेक के दिमाग में ये बात बैठ जाती है कि उसकी 'ग्रोथ' नॉर्मल नहीं है और इस बारे में उसे कुछ करना होगा. सेक्सुअल हेल्थ जैसी चीज से बिल्कुल अनजान विवेक तरह-तरह की चीजें आजमाने लगता है और इसी एक्स्परिमेंट में उसे मास्टरबेशन की लत लग जाती है. विवेक को बुली करने वाले उसके साथी, इसी का फायदा उठाते हैं और स्कूल के टॉयलेट में उसका वीडियो रिकॉर्ड करके फैला देते हैं. 

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'OMG 2' का एक सीन (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

वायरल वीडियो विवेक की इमेज का ऐसा नुक्सान करता है कि उसे स्कूल से निकाल दिया जाता है. विवेक का पिता कांति शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) भी शुरू में पूरे मुद्दे को वैसी ही, 'अनैतिक हरकत' की नजर से देखता है जैसे सारी दुनिया देखती है. लेकिन भगवान शिव के एक दूत (अक्षय कुमार) की प्रेरणा से उसे समझ आता है कि उसे अपने बेटे के लिए लड़ना चाहिए. कांति अब स्कूल और सेक्सुअल हेल्थ के नाम पर लोगों को गुमराह करने वाले डॉक्टर-केमिस्ट समेत, खुद अपने नाम भी मानहानि का नोटिस भेजता है. और फिर शुरू होता है एक कोर्ट केस जो 'OMG 2' की कहानी का पूरा मैसेज डिलीवर करता है. लेकिन इस मैसेज को जनता तक पहुंचाने में फिल्म जिन बातों को बतौर टूल्स इस्तेमाल करती है, वो अगर बारीकी से देखें जाएं तो काफी समस्याएं नजर आती हैं. 

मैसेज नहीं, मीडियम में झोल

कोर्ट रूम ड्रामा, किसी मैसेज को कहानी के जरिए जनता तक पहुंचाने का एक अच्छा मीडियम होता है. जैसे तापसी पन्नू, अमिताभ बच्चन की फिल्म 'पिंक' को ही ले लीजिए. इस तरह के स्टोरी डिजाईन में एक पीड़ित होता है, जिसकी साथ घटी घटना मुद्दे को स्थापित करती है. विक्टिम के पक्ष में खड़ा वकील एक बदलाव की उम्मीद में उस मुद्दे की पॉजिटिव साइड रखता है और दूसरे पक्ष का वकील असल में मुद्दे की नेगेटिव साइड बताता है. 'OMG 2' में विवेक का वकील खुद उसका पिता है और दूसरे पक्ष से वकील हैं कामिनी माहेश्वरी (यामी गौतम). 

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'OMG 2' में पंकज त्रिपाठी (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

'OMG 2' में केस का मुद्दा है विवेक का स्टिग्मा. लेकिन जैसे-जैसे केस आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे कहानी का मुद्दा इस पॉइंट पर शिफ्ट होने लगता है कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन क्यों जरूरी है. इस 'क्यों' के पक्ष में कांति की दलीलें बड़े बचकाने तरीके से शुरू होती हैं. यहां सबसे बड़ा पॉइंट ये है कि स्कूल अगर सही सेक्स-एजुकेशन बच्चों तक पहुंचाता तो शायद विवेक के साथ ये सब न होता. लेकिन कांति की बहस कुछ ही देर में इस पॉइंट से भटक जाती है और यहां पहुंच जाती है कि हमारे धार्मिक-सांस्कृतिक साहित्य में 'कामशास्त्र' को कितना महत्त्व दिया गया था.

एक पॉइंट पर 'OMG 2' में इस कनफ्लिक्ट का फोकस 'कामसूत्र' और उसमें बताए गई विविध क्रियाओं और मुद्राओं पर चला जाता है. इस शिफ्ट में सबसे बारीक गड़बड़ ये है कि सेक्सुअल-हेल्थ की परिभाषा 'सेक्स' की क्रिया तक ही लिमिट हो जाती है. जबकि यहां मामला एक टीनेजर को उसकी बॉडी के बारे में सही जानकारी न होने का है. 

'OMG 2' में आरुष वर्मा, पंकज त्रिपाठी (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

सेक्सुअल हेल्थ को 'सेक्स' तक लिमिट कर देने की ये गड़बड़ फिल्म में इस हद तक चली जाती है कि एक पॉइंट पर कोर्ट के कटघरे में खड़ी एक महिला सेक्स-वर्कर से कांति ये सवाल भी करता है कि उसके पास जो मर्द पहुंचते हैं, क्या वो महिलाओं के सेक्सुअल सैटिस्फैक्शन के बारे में जानते हैं? स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की जरूरत पर जोर देने के लिए शुरू हुए इस केस में, कांति उस सेक्स-वर्कर से पूछते हैं कि क्या वो अपने बेटे को, महिलाओं की शारीरिक जरूरतों से अनजान उन मर्दों की तरह बड़े होते देखना चाहती हैं जो उसके क्लाइंट हैं?

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ये संतुष्टि क्या वही 'प्रोडक्ट' नहीं है जिसे संदिग्ध टाइप के दिखने वाले क्लिनिक में, कोडवर्ड में बात करने वाले कथित 'डॉक्टर' बेचते आ रहे हैं? या जिनके इश्तेहार वाले विजिटिंग कार्ड्स चुपके से बसों की खिड़कियों से सीट पर फेंक दिए जाते हैं और ट्रेन के टॉयलेट में चिपके रहते हैं? 

'OMG 2' के महिला किरदारों का ट्रीटमेंट 

एक सोचने वाला सवाल ये है कि कहानी में चल रहे केस में, कांति के अपोजिट महिला वकील क्यों है? शायद एक महिला के सामने 'सेक्स' शब्द के इस्तेमाल में आने वाली असहजता को हाईलाइट करना यहां एक मकसद हो. महिला सेक्स वर्कर वाला पॉइंट ऊपर हमने डिस्कस किया ही है. विवेक का वीडियो कितनी असहज चीज है ये प्रूव करने के लिए एक पॉइंट पर कामिनी, कांति की बेटी और पत्नी को भी कटघरे में बुलाती हैं. कामिनी की कोशिश ये साबित करना है कि स्कूल टॉयलेट में विवेक की हरकत और उसका वीडियो इतनी घटिया चीज हैं कि उसके अपने घर की महिलाएं इससे असहज हैं. 

'OMG 2' में यामी गौतम (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

कांति की बेटी, दमयंती (अन्वेषा विज) हिंदी के सधे हुए शब्दों में 'मास्टरबेशन' यानी हस्त-मैथुन की परिभाषा कोर्ट में सुना देती है. और जैसा शायद राइटर्स ने भी चाहा होगा, इस सीन पर थिएटर्स में खूब तालियां बजीं. ऐसा ही कुछ तब भी होता है जब कांति की पत्नी, इंदु को कोर्ट में हाजिर किया जाता है. कामिनी उनसे पूछती हैं कि शादी वाली रात क्या हुआ था? इस सवाल से फिल्म के पूरे प्लॉट में कुछ खास हासिल नहीं होता, सिवाय इसके कि इंदु के जवाबों को 'कामिनी की झंड करने' वाले स्टाइल में दिखाया गया है. यानी सेक्स-एजुकेशन की बात करने वाली असहजता को महिला वर्सेज महिला में ट्रांसफर कर दिया गया है. जबकि पूरा केस टीनेजर्स और मर्दों में इस मुद्दे पर सहजता डेवलप करने को लेकर था.

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फिल्म के टोन और नैरेटिव को डिकोड करने पर इन किरदारों का इंटरेक्शन यही दिखता है कि जहां एक महिला स्कूलों में 'सेक्स एजुकेशन' की जरूरत को गलत बता रही है, वहीं दो इसपर सहजता से बात कर रही हैं. लेकिन फिल्म में सेक्स एजुकेशन की जरूरत का नैरेटिव सिर्फ लड़कों, यानी एक जेंडर तक सीमित रहता है. यहां फिल्म अपने कड़े सांस्कृतिक खोल से बाहर नहीं निकल पाती. बल्कि आखिरी सीक्वेंस में, खुले परिसर में चलती अदालत में जब ढेर सारे लड़के मास्टरबेशन करने और सेक्स एजुकेशन की जरूरत पर आवाज उठा रहे हैं, तो सिर्फ एक लड़की हाथ उठाती है और कहती है- पीरियड्स पर बात होनी चाहिए. 

यानी सेक्सुअल हेल्थ की जरूरत पर बात तो की जाएगी, लेकिन इसमें एक ही जेंडर पर फोकस रहेगा. महिलाओं के लिए इसकी जरूरत पर एक लाइन भी नहीं कही जाएगी. लेकिन मर्दों की सेक्सुअल हेल्थ पर बात करने के लिए महिला किरदारों को टूल की तरह यूज जरूर किया जाएगा! पीरियड्स पर खुलकर बात करने के लिए तो 2018 में अक्षय की ही फिल्म 'पैड मैन' की खूब तारीफ़ हुई थी. लेकिन आज 5 साल बाद जब एक फिल्म किसी तरह सेक्स-एजुकेशन की बात कर रही है, तो इसमें दूसरे जेंडर को भी थोड़ा स्पेस तो दिया ही जा सकता था. 
 

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कुछ और बड़ी गलतियां 

विवेक के साथ जो कुछ भी हुआ उसमें सबसे बड़ा रोल एक वायरल वीडियो का है, जिसे विवेक के साथियों ने चोरी से शूट किया. इस एक बात को पूरी फिल्म जैसे भूल ही जाती है. स्कूल के टॉयलेट में एक बच्चे का वीडियो चोरी से बना लिया जाना, इतनी गैर जरूरी बात हो जाती है कि एक भी किरदार, एक भी मिनट के लिए इसपर बात ही नहीं करता. 

एक पॉइंट पर बात यहां तक पहुंच जाती है कि कांति का किरदार, 'स्कूलों में सेक्स एजुकेशन कैसे पढ़ाई जाए' टॉपिक पर लेक्चर देने लगता है. और इस बारे में बात करते हुए उसके उदाहरण में शुद्ध हिंदी में महिला के रूप की तारीफ करना शामिल है. शायद पॉइंट ये बताना है कि सही भाषा हो तो पुरुष कितनी सहजता से, सही शब्दों में महिला के सौंदर्य की तारीफ कर सकते हैं. लेकिन कोर्ट में खड़ी एक सुपर कॉन्फिडेंट महिला वकील, जो अपने ज्ञान और टैलेंट के दम पर एक अचीवर है, उसकी तारीफ को उसके शारीरिक सौंदर्य तक लिमिट करने की कोशिश एक गलत चीज नहीं है? 

इसी सीक्वेंस में हिंदी समझने में कमजोर जज को, कोर्ट का एक ऑफिशियल इशारे से समझा रहा है कि कांति कैसे, कामिनी के शरीर की बात कर रहा है. हवा में हाथ के इशारों से 8 जैसा फिगर बनाने का ये पूरा उपक्रम देखने में बहुत भद्दा लगता है. ये पूरा सीक्वेंस कैजुअल मिसोजिनी यानी 'अरे मजाक है जी' बोलकर महिलाओं पर भद्दे कमेंट कर देने का सबसे बेहतरीन उदाहरण है. 

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सेक्स एजुकेशन पर बात करने की जरूरत से शुरू हुई कहानी, अंग्रेजी शिक्षा की आलोचना तक पहुंच जाती है. प्राचीन भारतीय शिक्षा का इतिहास तक डिस्कस हो जाता है. लेकिन एक बच्चे के साथ जो हुआ, जिस मेंटल हैरेसमेंट से वो गुजरा, उसे पूरे केस में कोई एड्रेस ही नहीं करता. उसकी काउंसलिंग जैसी बात कहीं नहीं उठती. विवेक के बुली होने, चोरी से उसका वीडियो रिकॉर्ड होने को फिल्म पूरी तरह भुला देती है. 

पूरे केस की सुनवाई में कांति का ये स्टैंड है कि उसके बेटे ने जो किया वो गलत किया, मगर सेक्स-एजुकेशन की कमी की वजह से वो इस तरफ गया. जबकि दूसरी तरफ से केस लड़ रही कामिनी का पॉइंट ये है कि स्कूल में ऐसा करना गलत है. कांति की दलीलें और सबमिशन एक बार के लिए जिस तरह सेक्स पर खुलकर बात करने को कहता है, वो रियलिटी में बहुत सारी महिलाओं के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है. और कोर्ट केस की पूरी बहस में एक ऐसा वक्त भी आता है जब विलेन की तरह ट्रीट की जा रही कामिनी का किरदार ज्यादा सेंसिबल साउंड करता है. 

मेनस्ट्रीम हिंदी फिल्में अगर कोई भी अच्छा मैसेज लेकर आती हैं, तो यकीनन वो ज्यादा लोगों तक पहुंचता है. जैसे अक्षय कुमार की 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' को ही देख लीजिए. लेकिन इस मैसेज को अगर एक ऐसे ट्रीटमेंट के साथ पेश किया जाए, जिसमें जेंडर का भेद न हो, जिसमें महिला किरदारों को सिर्फ टोकन रिप्रेजेंटेशन न मिले और मुद्दे में उनके पॉइंट ऑफ व्यू को भी शामिल किया जाए, तो क्या बेहतर नहीं होगा? और किसी चीज को शामिल करने पर जोर न भी दिया जाए, तो कम से कम जो चीजें बातों को हल्का करती हों, उनसे तो बचा जा ही सकता है.

 

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