
'OMG 2' को वैसे तो कॉमेडी-सोशल ड्रामा कहना ठीक रहेगा. लेकिन रिलीज से पहले अक्षय कुमार और पंकज त्रिपाठी की इस फिल्म को लेकर जैसा माहौल बना उसमें कॉमेडी जैसा तो कुछ भी नहीं था. हां, ड्रामा बहुत था. सेंसर बोर्ड और मेकर्स के बीच फिल्म में बदलावों को लेकर जितने डिस्कशन होने की रिपोर्ट्स आईं उनसे एक बात समझ आ रही थी- सेंसर बोर्ड को कहानी में कुछ ऐसा दिख रहा था जिससे जनता की भावनाएं आहत होने का डर था.
बाद में रिपोर्ट्स में सामने आया कि सेंसर बोर्ड ने मेकर्स को फिल्म में कुछ बदलाव के साथ 'A' रेटिंग दी है. अगर आपकी नजरें बारीक डिटेल्स पर फोकस करती हैं तो थिएटर्स में 'OMG 2' देखते हुए आप ये बदलाव बड़े आराम से नोटिस कर सकते हैं. कहीं पर डबिंग थोड़ी सी ऑफ दिखेगी, कहीं डायलॉग में दो वर्ड्स का वॉल्यूम बाकी लाइन से अलग लगेगा.
ये चीजें हैं बहुत छोटी, और फिल्म देखने के एक्सपीरियंस को बहुत ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करतीं. लेकिन 'OMG 2' को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या फिल्म में कुछ डिस्टर्बिंग है? क्या कहानी में कुछ ऐसा है जिससे वाकई कोई आहत हो सकता है? अगर आपने फिल्म नहीं देखी है, तो यहां से आगे अपने रिस्क पर पढ़ें, क्योंकि आगे 'OMG 2' की कहानी से जुड़े कुछ बड़े स्पॉइलर हैं.
OMG 2 की कहानी में ऐसा क्या है?
अगर आप वार्निंग से आगे बढ़ ही आए हैं तो बता दें कि 'OMG 2' की कहानी कांति शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) से शुरू होती है. कांति का बेटा विवेक, हॉस्पिटल में है. और उसके हॉस्पिटल जाने की वजह है उसका एक सेक्सुअल एडवेंचर. कहानी आगे बताती है कि असल में उसके एक साथी ने, उसके प्राइवेट पार्ट के साइज को लेकर उसे बुली किया और यहां से उसका कॉन्फिडेंस टूट गया. बुली करने वाला टीनेजर लड़का उस तरह के अधकचरा ज्ञान से प्रेरित है, जो हमारी सोसाइटी में 'सेक्स की बेसिक एजुकेशन' बनकर एक कान से दूसरे कान घूमता है. और टीनेजर विवेक तो उससे भी भोला है.
'सेक्स' शब्द सुनते ही नाक-भौंह सिकोड़ने वाले लोगों के बीच विवेक को कौन बताता कि उसके साथ जो हुआ उसमें क्या सही है और क्या गलत? इस टॉपिक को एकमात्र बार स्कूल में बायोलॉजी के टीचर कभी-कभार छू लेते हैं, लेकिन वो भी ऐसे जैसे बच्चे मरी मकड़ी को लकड़ी से उठाकर फेंकने ले जाते हैं. 'OMG 2' में ये सीन है कि विवेक अपने बायोलॉजी टीचर से एक जिज्ञासा पूछने गया है और वो बच्चे को ही 'निर्लज्ज' कहकर भगा देता है. इस बच्चे की अंतिम शरणस्थली वही जगहें बनती हैं जिनका पता लिखे विजिटिंग कार्ड, बस की खिड़की में धीरे से फेंक दिए जाते हैं. जिनके प्रचार रेलवे लाइन के किनारे दीवारों पर और ट्रेन के टॉयलेट में लिखे मिलते हैं. अपने 'कूपमंडूक' संसार में जी रहे हम समझदार लोग ये समझ कर खुश रहते हैं कि इस तरह की 'सेक्सुअल जानकारी की यूनिवर्सिटी' के ये प्रचार किसी के काम नहीं आते. अगर नहीं आते, तो ये अबतक चलते क्यों रहते, सोचा है?
इन प्रचार से फायदा उठाने पहुंचे लोगों में से एक, हमारा टीनेजर विवेक भी है. सेक्सुअल हेल्थ का डिस्टेंस लर्निग कोर्स करने चला विवेक, मास्टरबेशन एडिक्ट हो जाता है. इसी एडिक्शन ने उसे हॉस्पिटल पहुंचाया है और इसी एडिक्शन के चलते स्कूल के वाशरूम से बना उसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. स्कूल से उसे सस्पेंड कर दिया गया है. और अब वो समाज में 'अनैतिकता' का चेहरा बन चुका है. क्लासमेट्स से लेकर, पड़ोसियों तक और यहां तक कि अपने खुद के घर में विवेक के हिस्से बस एक स्टिग्मा बचा है, एक शर्मिंदगी, एक गिल्ट. और इस गिल्ट में वो दो बार आत्महत्या करने की कोशिश भी करता है.
क्या है अक्षय कुमार का किरदार?
इस कहानी में अक्षय कुमार को भगवान शिव का किरदार निभाना था, लेकिन सेंसर बोर्ड की कृपा से वो अब वो भगवान शिव के उन दूतों में से एक हैं, जिन्हें शिवगण कहा जाता है. फिल्म के मुद्दे में उनका काम बस ये है कि वो अपने भक्त कांति को लगातार सच्चाई के साथ खड़े होने की शिक्षा देते हैं. अक्षय का किरदार कहानी में सेक्स एजुकेशन की जरूरत या विवेक के पूरे मिस-एडवेंचर पर कुछ नहीं कहता. वो बस कांति को ये बताता है कि उसका बेटा एक स्टिग्मा में है और लोगों की बुद्धि ख़राब होने का नतीजा भुगत रहा है. वो एक तरह की कोड लैंग्वेज में कांति को स्कूल पर कोर्ट केस करने के लिए गाइड करता है.
उसी कोड लैंग्वेज में वो 'सत्य' को लेकर जो कुछ ज्ञान देता है, फिल्म वही दिखाती है. कांति के केस का मुद्दा ये है कि स्कूल अगर स्टूडेंट्स को सेक्स एजुकेशन देता, तो विवेक के साथ ये सब न होता. इस केस में कांति अपनी बात को कैसे प्रूव करता है उसपर बहुत सारे सवाल किए जा सकते हैं. लेकिन अगर सपका सवाल ये था कि भगवान शिव जैसे गेटअप वाले अक्षय के किरदार से, फिल्म में कुछ भी विवादित कहलवाया गया है? तो इसका जवाब है- नहीं.
फिल्म पूरे मसले को कैसे ट्रीट करती है उसपर सवाल हो सकते हैं. वो तरीका अपने आप में बहुत सारी दिक्कतों से भरा है. इनपर अलग से बात करना बहुत जरुरी है. लेकिन इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो किसी समझदार व्यक्ति को आहत कर सकता हो. स्कूली शिक्षा में सेक्स एजुकेशन की जरूरत को लेकर चल रहे केस के बीच एक सीन आता है जब एक बच्ची को 'गुड टच-बैड टच' समझ आता है और वो अपने दादाजी को समझा पाती है कि उसका मामा उसे 'बैड टच' करता है. अगर 'OMG 2' की कहानी में कुछ आहत करने वाला है तो ये फैक्ट कि हमारे बच्चों के पास वो शब्दावली ही नहीं है कि वो अपने साथ हो रही ऐसी हरकत को जाहिर कर सकें. आहत इस बात पे होना चाहिए कि हमारे पास हमने अपने बच्चों से इस तरह की बातें करने का स्पेस नहीं डेवलप किया.
2011 में आई 'OMG' में भगवान कृष्ण के रोल में नजर आए अक्षय कुमार का एक सीन था. इसमें अक्षय को सूट-बूट पहने देखकर कांजी भाई (परेश रावल) को यकीन नहीं होता कि ये भगवान हैं. अक्षय कहते हैं कि मानव को अपने ईश्वर का भी अपडेटेड वर्जन नहीं पसंद आता. ऐसा ही एक डायलॉग 'OMG 2' में भी है. फिल्म की रिलीज से पहले ही अगर सेंसर बोर्ड जैसी अथॉरिटी ये मानती है कि शायद लोगों को एक ही लाइन में 'भगवान' और 'सेक्स एजुकेशन' सुनने का आईडिया नहीं पसंद आएगा. शायद लोग इससे आहत हो जाएंगे. लेकिन क्या ये आहत होने वाली बात नहीं है कि हमें अपने देवताओं का, मॉडर्न सोशल समस्याओं के हल निकालने का आईडिया नहीं पचता?
'OMG 2' की कहानी जिस टॉपिक को छूती है, उसपर बात करने की जरूरत टीनेजर्स में सबसे ज्यादा है. इस एज-ग्रुप की ऑडियंस का इस फिल्म के लिए थिएटर्स में जाना सबसे जरूरी था. लेकिन 'A' सर्टिफिकेट ऑडियंस को लिमिट कर देता है और केवल 18 साल या उससे ज्यादा के व्यक्ति ही फिल्म देख पाएंगे. लोगों के 'आहत' होने के डर से सोशल मैसेज देने वाली 'OMG 2' के साथ होने से एक बात तो सच साबित होती है... शायद सेक्स-एजुकेशन जैसे टॉपिक्स पर बात करने के लिए हमें किसी ईश्वर के ही साक्षात धरती पर आने की जरूरत है!