
'पाताल लोक' को भारत के ओटीटी स्पेस से निकले सबसे बेहतरीन शोज में गिना जाता है. 5 साल पहले आए इस शो के पहले सीजन ने एंगेजिंग, रियलिटी से जुड़ी और जबरदस्त सस्पेंस वाली कहानी डिलीवर करने का ऐसा पैमाना सेट किया जिसे मैच कर पाना ओटीटी शोज के लिए एक भारी काम रहा है.
अब 'पाताल लोक' का दूसरा सीजन आ चुका है और जनता एक बार फिर से इस शो के प्यार में डूब रही है. सोशल मीडिया से लेकर क्रिटिक्स तक कई लोग दूसरे सीजन को, पहले सीजन से भी बेहतर बता रहे हैं. 'पाताल लोक 2' के इतने दमदार लगने की वजह कई ऐसे फैक्टर्स हैं, जो असल में आजकल ट्रेंड में चल रही फिल्ममेकिंग स्टाइल के हिसाब से एक बहादुरी भरी चॉइस लगते हैं. कैसे? आइए बताते हैं...
खून-खच्चर की कमी, सेक्स-सीन्स से परहेज
पिछले कुछ समय में फिल्में हिंसा के भयानक सीन्स दिखाने के मामले में एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ कर रही हैं. ओटीटी पर भी लगभग हर नए प्रोजेक्ट में स्क्रीन पर चल रही वायलेंस नए लेवल पर पहुंचती नजर आ रही है. ओटीटी पर एक अलग क्रिएटिव लिबर्टी मिलती है लेकिन इस लिबर्टी को हिंसा और सेक्स सीन्स के मामले में ही अप्लाई करने की कोशिश नजर आती है. कई बार तो इस तरह के सीन्स कहानी में गैर-जरूरी लगते हैं. हर दर्शक में इतना हाई लेवल का खून-खराबा पचाने की क्षमता नहीं होती.
ऊपर से ओटीटी कंटेंट टीवी पर खूब देखा जाता है इसलिए घर पर शोज देखते हुए सेक्स-सीन्स के समय बन जाने वाले ऑकवर्ड माहौल से बचने के लिए बहुत लोग रिमोट हाथ में पकड़े बैठे रहते हैं. इससे कंटेंट देखने के एक्सपीरियंस पर असर पड़ता है. 'पाताल लोक' के पहले सीजन में भी ऐसे सीन्स थे, लेकिन दूसरे सीजन में किसी दर्शक को, किसी भी सीन से बचने के लिए रिमोट पर हाथ रखकर बैठने की जरूरत नहीं है.
पॉलिटिकल कमेंट्री से दूरी
'पाताल लोक' के दोनों सीजन्स को एक दूसरे से बिल्कुल अलग करने वाला सबसे बड़ा पॉइंट पॉलिटिक्स है. पहले सीजन की कहानी में कई पॉलिटिकल मुद्दों को सीधा और प्रमुखता से एड्रेस किया गया था. शो में किरदारों और प्लॉट को पॉलिटिक्स के जरिए गहराई देने के अलावा, एक तरह की पॉलिटिकल कमेंट्री भी साथ में चल रही थी. सामुदायिक हिंसा, धर्म को लेकर पॉलिटिक्स में चलने वाली टेंशन और राजनीति में जाति का गणित पहले सीजन में काफी नजर आया था. पॉलिटिकल मुद्दे भी उस तरह के ज्यादा थे जो उत्तर भारत या हिंदी पट्टी का समाज बहुत अच्छे से समझता है.
सीजन 2 की कहानी में पॉलिटिक्स का दखल बहुत सीधा नहीं है, इशारों-इशारों में है. इस बार शो में कहानी की लोकेशन यानी नागालैंड की पॉलिटिक्स को एक्सप्लोर करने पर उतना ही फोकस है, जितने की जरूरत किरदारों के बर्ताव और उनकी सोच की गहराई दिखाने के लिए है. नागालैंड या देश के नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में चलने वाले हिंसक कनफ्लिक्ट को साधारण तौर पर दो हिस्सों में बांटकर देखा जा सकता है- हथियार उठा चुके समूहों का आपसी संघर्ष और भारत सरकार से उनके कनफ्लिक्ट. 'पाताल लोक 2' में जो पॉलिटिक्स दिखती भी है, वो पहले हिस्से तक सीमित है.
शो की कहानी में पॉलिटिक्स का दखल लिमिटेड रखने के दो फायदे हैं. नागालैंड और नॉर्थ-ईस्ट के दूसरे हिस्सों की पॉलिटिक्स समझने वाले लोग जानते हैं कि इसे एक कहानी के सब-प्लॉट में समेटना बहुत टेढ़ा काम है. क्योंकि इसमें इतनी परतें हैं कि इनकी डिटेल में जाना शो की कहानी को एक लेक्चर बना सकता था. या फिर जनरलाइज करके देखने में कुछ ना कुछ ऐसा जरूर छूटेगा जो जनता में शिकायतें पैदा करेगा.
दूसरा फायदा है कि सिनेमा के कंटेंट में पॉलिटिक्स आते ही सोशल मीडिया पर बैठी जनता इसका एक्स-रे करने के लिए तैयार बैठी रहती है. फिर जो माहौल बनता है उसमें दर्शक का ध्यान कहानी और स्टोरी-टेलिंग पर उतना नहीं बचता, जितना पॉलिटिक्स को एनालाइज करने और रियलिटी से इसके पैरेलल जोड़ने में लग जाता है. ये चीज आजकल अक्सर फिल्मों और सीरीज से जुड़े गैर-जरूरी विवादों की वजह भी बनती है.
कास्ट में नॉर्थ-ईस्ट के एक्टर्स
'पाताल लोक 2' की कहानी का बड़ा हिस्सा नागालैंड में घट रहा है. जैसे ही कहानी दिल्ली से निकलकर नागालैंड पहुंचती है, कहानी के किरदारों में नॉर्थ-ईस्ट के एक्टर्स की भरमार नजर आने लगती है. प्रशांत तमांग, बेंडांग वॉलिंग, जानू बरुआ, रोजेल मेरो, एल सी सेखोजे जैसे कलाकारों के साथ शो में एक-एक सीन के लिए आए कई किरदार भी उसी इलाके के एक्टर्स ने निभाए हैं. शो के नागालैंड चैप्टर की कास्ट में तमाम ऐसे चेहरे हैं जो बॉलीवुड की रेगुलर नॉर्थ-ईस्ट कास्ट में नहीं होते.
ये चेहरे दर्शकों के लिए नए हैं और कहानी की सेटिंग के हिसाब से लोकल लगते हैं. इससे ऑथेंटिसिटी तो आती ही है, साथ ही इनके एक्सप्रेशन नए लगते हैं. इनकी बॉडी लैंग्वेज अलग है. ये नयापन शो को दिलचस्प ही नहीं बनाता, बल्कि कहानी को सूट करने वाला एक रहस्यमयी फील भी तैयार करता है. क्योंकि दर्शक को इसका कोई पूर्वानुमान नहीं है कि किसी एक सिचुएशन में वो किस तरह का एक्सप्रेशन या रिएक्शन देने वाले हैं. जबकि लगातार दिखने वाले चेहरों में दर्शक ये पूर्वानुमान लगा लेते हैं.
नागालैंड की लोकेशन
'पाताल लोक 2' के ट्रेलर से, इस शो में दिलचस्पी जगाने वाली जो वजहें दर्शकों को मिली थीं उनमें से एक थी- हाथीराम का एक बिल्कुल नए संसार में जाकर इन्वेस्टिगेशन करना.
'पाताल लोक 2' रिलीज होने से पहले इसके राइटर सुदीप शर्मा ने कहा था कि ये शो, नागालैंड में शूट करने वाला पहला बड़ा फिल्म क्रू था. ऐसे में शूट के भी अपने चैलेंज थे. वहां ऐसे बड़े शूट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था, मौसम की लिमिटेशन थीं और नागालैंड में शूट के लिए तरह-तरह की परमिशन भी चाहिए होती हैं. मुंबई, दिल्ली, पंजाब या उत्तर प्रदेश की कई लोकेशंस पर हमेशा फिल्में शूट होती रहती हैं. यहां की लोकेशंस पर शूट करने में ऐसे बहुत सारे चैलेंज कम हो सकते थे, जो 'पाताल लोक 2' की टीम को नागालैंड में फेस करने पड़े होंगे. मगर नागालैंड में कहानी सेट करना, शो को कई लेवल पर दिलचस्प बनाता है.
हाथीराम चौधरी जनता के फेवरेट पुलिस ऑफिसर किरदारों में से एक है और पहले सीजन ने ये पक्का कर दिया था कि दिल्ली पुलिस का ये किरदार, दिल्ली की नस-नस समझता है. ऐसे में हाथीराम का अपनी पहचानी हुई टेरेटरी से बाहर जाकर, अनजान जगह पर अपनी दबंगई को कंट्रोल में रखते हुए इन्वेस्टिगेशन करना, शो का एक दिलचस्प पॉइंट था. कहानी में इस पॉइंट को दिलचस्प बनाने में नागालैंड की लोकेशन का बहुत बड़ा रोल है.
कहानी में चल रही इन्वेस्टिगेशन जैसे ही नागालैंड पहुंचती है, वहां एक अंतिम संस्कार का सीन चल रहा है. लोकेशन का कहानी में योगदान यहीं से शुरू हो जाता है. नागालैंड की संस्कृति के हिसाब से हो रहा ये फ्यूनरल ही आपको चकित करता है. कहानी में आगे भी नागालैंड की संस्कृति, वहां की परम्पराएं, वहां का सामाजिक माहौल और लोकेशंस की खूबसूरती कहानी में योगदान देते हैं. स्क्रीन पर कम एक्सप्लोर की गई ये लोकेशन एक थ्रिलर इन्वेस्टिगेशन को लगातार एक रहस्यमयी माहौल देती है, क्योंकि दर्शक के तौर पर आपको भी इस जगह की बहुत जानकारी नहीं है. और शो में नागालैंड की खूबसूरती देखने के बाद आप भी वहां घूमने के बारे में सोचने लगेंगे.
किरदारों को मारने का फैसला (स्पॉइलर अलर्ट)
'पाताल लोक' के पहले सीजन से हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत) के पक्के साथी रहे इमरान अंसारी (इश्वाक सिंह) की, दूसरे सीजन में मौत हो चुकी है. इस किरदार की मौत एक शॉक की तरह आती है. आप देखते हैं कि अंसारी की कार पर गोली चली है और कार एक पहाड़ी सड़क पर डिवाइडर से टकराकर पलट गई है. लेकिन दर्शक को एक उम्मीद लगी रहती है कि शायद घायल हो चुका अंसारी अभी सरकता हुआ कार से बाहर निकलेगा और गोली चलाने वाले से उसका सामना होगा. लेकिन सीन में कैमरा घूमकर कार के सामने आता है और आपको दिखता है कि गोली अंसारी के माथे पर बीचोंबीच लगी है.
तब आपको एहसास होता है कि यहां से तो ये किरदार वापस खड़ा नहीं हो सकता. इसी तरह सीजन 2 की कहानी में एक और बड़े किरदार, मेघना बरुआ (तिलोत्तमा शोम) की मौत होती है. जिस तरह ये सीन तैयार किए गए हैं, ये दर्शक को स्तब्ध कर देने वाला ऐसा असर छोड़ते हैं कि मुंह खुला रह जाता है. दोनों ही किरदारों की मौतों से पहले ऐसे सीन हैं जिनसे जनता इन किरदारों को थोड़ा और प्यार करने लगती है.
किसी भी कहानी में किरदारों की मौत, राइटिंग का एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला होता है. इस फैसले में अक्सर दो बड़ी कमियां होती हैं- किरदारों की मौत कहानी की जरूरत ना होकर 'शॉक वैल्यू' पैदा करने की कोशिश लगने लगती है. या फिर कहानी में जरूरत पूरी होने के बावजूद किरदारों को इसलिए जिंदा रखा जाता है क्योंकि वो जनता को पसंद आने वाले किरदार हैं. आजकल चल रहे ट्रेंड में अक्सर शो या फिल्म के अगले पार्ट के लिए किरदार बचाकर रखे जाते हैं. लेकिन 'पाताल लोक' के राइटर सुदीप शर्मा ने जिस तरह इन किरदारों को मारना चुना और इनकी मौत को कहानी उलझाने के लिए इस्तेमाल किया, वो अपने आप में राइटिंग की बहादुरी और कला दोनों है.
फिल्म मेकिंग एक मुश्किल बिजनेस है. बहुत सारी कहानियों को शूटिंग या फैन्स को आसान लगने के हिसाब से प्रोडक्शन के स्टेज पर बदला जाता है. ऐसे में कहानी की गंभीरता और उसका रस बचाए रखने लिए जब एक टीम मुश्किल लगने वाले कुछ फैसले लेती है, तो कहानी का लेवल ऊंचा हो जाता है. यही वजह है कि 'पाताल लोक' का सीजन 2 बहुत सारे लोगों को पहले सीजन से भी ज्यादा मजेदार लग रहा है.