
'मुझे पैसे नहीं चाहिए...मैं अपना क्रेडिट नहीं छोड़ूंगा.' जवाब मिला- कोई एग्रीमेंट है तुम्हारे पास? डायरेक्टर का इतना कहना था, और पीयूष मिश्रा के अंदर गुस्से का सैलाब उमड़ पड़ा था. वो सन्न खड़े थे. अपनी पत्नी-बच्चे को दिल्ली में अकेला छोड़कर मुंबई में इस डायरेक्टर के लिए डेढ़ साल से अपनी चप्पलें घिस रहे थे. और आखिर में मिला क्या...धोखा!!
ये किस्सा है पीयूष मिश्रा का, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. वो एक्टर, लिरिसिस्ट, प्ले राइटर, म्यूजिक कम्पोजर, सिंगर और स्क्रीनराइटर भी हैं. कम ही लोग जानते हैं, कि उन्हें मुंबई नगरी में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ी थी. मुंबई से उन्हें नफरत थी. इसकी सारी वजह उन्होंने अपनी किताब 'तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा' में लिखी हैं. ऐसा ही एक किस्सा हम आपको बताने जा रहे हैं, जो बॉलीवुड की दुनिया में आज भी 'पेट्रोल कांड' के नाम से मशहूर है. ये नाम भी खुद एक्टर ने अपनी किताब में दर्ज किया है.
पत्नी के कहने पर फिर गए मुंबई
पीयूष मिश्रा को मुंबई कभी रास नहीं आई, वो हमेशा से दिल्ली में ही रहना चाहते थे. उन्हें पैसों का बहुत लालच नहीं था. एक एक कर उनके सारे थियेटर के साथी मुंबई चले गए. ये बात पीयूष को बहुत खलती थी. वो दिल्ली रहकर ही थियेटर करते रहना चाहते थे. लेकिन एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था कि उन्हें एक बड़े डायरेक्टर की तरफ से ऑफर मिला है. फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने का. पीयूष का परिवार बहुत खुश हुआ. क्योंकि एक तो ऑफर सामने से आया, दूसरा अमाउंट बड़ा मिलना था. घर की तंग हालत और पत्नी-मां की मान-मन्नोवल पर पीयूष इस ऑफर को एक्सेप्ट करने और दिल्ली छोड़कर मुंबई जाने के लिए राजी हो गए.
पीयूष मुंबई पहुंचे तो डायरेक्टर से पहली मुलाकात अच्छी नहीं रही. लेकिन वो परिवार की खातिर रुके रहे. पीयूष का लेखन शुरू हो गया था. ये मुंबई में उनके पसंद का पहला काम था. पीयूष सुबह 7 बजे लिखने बैठते तो एक बजे तक लगातार लिखते. फिर खाना खाते, उसके बाद फिर पांच बजे तक लिखते. फिर डायरेक्टर के पास जाकर नैरेशन देते. रात के दस बजे वहां से निकलते, शराब खरीदते और फिर वापस लोखंडवाला (डायरेक्टर का गेस्ट हाउस, जहां पीयूष के रहने का इंतजाम किया गया था) पहुंच जाते. डेढ़ साल तक उनका यही रूटीन रहा. घर पर भी उन्होंने खत लिखकर बता दिया कि यहां सब टकाटक है.
पीयूष के मन में हमेशा से मलाल रहा कि उन्होंने अपनी पत्नी का कभी पूरी तरह से साथ नहीं दिया. उन्हें हमेशा दर्द ही दिया, इसलिए वो किसी भी कीमत पर इस प्रोजेक्ट को पूरा कर नाम और पैसा दोनों कमाना चाहते थे. ताकि पत्नी के आगे गर्व से खड़े हो सके.
डायरेक्टर ने एग्रीमेंट नहीं, बस दिया भरोसा
आखिर वो दिन आया जब स्क्रिप्ट पूरी हुई. लेकिन इस बीच जब भी पीयूष ने एग्रीमेंट का जिक्र किया, डायरेक्टर ने हमेशा टाल दिया. कभी भरोसा रखने के नाम पर, कभी दूसरे प्रोजेक्ट में बिजी होने के नाम पर, पीयूष को अटकाए रखा. पीयूष को भी इल्म ना था कि इतना बड़ा डायरेक्टर कभी कुछ उनके साथ गलत करेगा. कमर्शियल और बिजनेस की दुनिया से दूर पीयूष ने पूरी मेहनत और दिल से स्क्रिप्ट को पूरा किया. फिल्म के डायलॉग से लेकर स्क्रीनप्ले तक लिखा. लेकिन इस बीच एक अनहोनी घट गई. पीयूष के चाचा का निधन हो गया. वो वापस दिल्ली लौटे, लेकिन थोड़े दिनों में खबर मिली की फिल्म को लेकर बड़ी मीटिंग है.
पीयूष मुंबई पहुंचे तो बड़ा दरबार सजा था. कई लोग इकट्ठा थे. प्रोडक्शन, डायरेक्शन से लेकर कैमरा, सेट के लोग सब मौजूद थे. पता चला कि आज स्क्रिप्ट का फाइनल है. पीयूष ने भी फाइल निकाल ली कि आज नैरेशन देना पड़ेगा. उस डायरेक्टर ने इंट्रोडक्शन देना शुरू किया...पीयूष ने भी फाइल खोल ली कि अब उसका नाम आएगा. लेकिन डायरेक्टर ने उस स्क्रिप्ट का क्रेडिट किसी और दे दिया. पीयूष सन्न रह गए. उनके पैरों तले धरती खिसक गई. उनके सामने परिवार का चेहरा घूमने लगा. उनकी डेढ़ साल की मेहनत उनके सामने थी...किसी और की आवाज में, किसी और की शक्ल लिए. स्क्रिप्ट रीडिंग पूरी हुई, खूब तालियां बजी, लेकिन पीयूष के लिए नहीं, उस दूसरे राइटर के लिए.
पहले टीचर फिर 8 साल बड़ी लड़की से प्यार, विरोध में काटी कलाई, विवादास्पद है पीयूष मिश्रा की लव लाइफ
डेढ साल की मेहनत, मिला धोखा
पीयूष ने डायरेक्टर को पकड़ा और उनसे सवाल किया. डायरेक्टर ने पूछा- एग्रीमेंट है तुम्हारे पास? और कल ऑफिस में आने का बोल के टाल दिया. पीयूष ने उस रात खूब शराब पी. उनकी आंखें गुस्से में लाल थी. नशे में धुत्त, मन में भावनाओं का बवंडर और दिमाग में गुस्से का उबाल लिए अगले दिन पीयूष डायरेक्टर के ऑफिस पहुंचे. पीयूष ने ठान लिया था कि कुछ भी करूंगा पर क्रेडिट लेके रहूंगा. ''अगर कीचड़ में रहना है तो कीचड़ में रहकर ही निबटेंगे.' पीयूष डायरेक्टर के ऑफिस के अंदर घुसे तो उसने खुद ही स्टाफ को हिदायत दी कि कोई अंदर ना आए.
पीयूष ने अब अपनी बात की और कहा कि- मुझे क्रेडिट चाहिए. स्क्रिप्ट मैंने लिखी है. डायरेक्टर ने कहा - कोई सबूत है. कोई एग्रीमेंट. पीयूष ने कहा- ठीक है, मैं किसी और को ये स्क्रिप्ट दे दूंगा. इंडस्ट्री इस थीम पर चार फिल्में बन रही हैं. डायरेक्टर घबरा गया, बोला- तुम ऐसा नहीं कर सकते. तुमने मेरे लिए काम किया है. पीयूष ने कहा- कोई सबूत है. कोई एग्रीमेंट. डायरेक्टर चीखा- तुम ब्लैक लिस्ट हो जाओगे. पीयूष बोले- तुझे खत्म करके जाउंगा. औरों की फिल्म बने ना बने, तेरी नहीं बनेगी. इतने तक पीयूष का पारा गर्म हो चुका था. डायरेक्टर ने कहा- मैं देखता हूं, क्या हो सकता है. यकीन करो. पीयूष ने कहा- अब तक वही कर रहा था.
...और लगा दी आग
पीयूष ने अपने बैग से पेट्रोल की बोतल निकाली और डायरेक्टर की टेबल पर खाली कर दी. फिर माचिस निकालकर आग लगा दी. डायरेक्टर चीखने के सिवा कुछ ना कर पाया. उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसे आज भी फिल्म इंडस्ट्री प्रसिद्ध या कुप्रसिद्ध पेट्रोल कांड के नाम से याद रखती है.
लेकिन इसके बाद पीयूष मिश्रा को क्रेडिट मिल गया, उतना नहीं जितना मिलना चाहिए था. लेकिन कुछ ना होने से बेहतर था. उनके प्ले का नाम भी स्क्रीन पर क्रेडिट में दिया गया. वो भी थैंक्स के साथ. साथ में साढ़े चार लाख रुपये भी दिए गए. इसके बाद दिल्ली पहुंचते ही वो अपनी पत्नी को गले लगाकर खूब रोए थे.