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Pratik Babbar: मैंने गुस्से में खुद को तबाह कर लिया था, इसका जिम्मेदार मां को ही ठहराता था 

प्रतीक बब्बर हमेशा से अपने करियर और मां स्मिता पाटिल के बारे में बात करते आए हैं. जल्द ही प्रतीक, डायरेक्टर मधुर भंडारकर की फिल्म लॉकडाउन इंडिया में नजर आने वाले हैं. ऐसे में उन्होंने फिल्म को करने की वजह, अपनी परवरिश और ब्रेकडाउन मोमेंट्स के बारे में बात की.

प्रतीक बब्बर और मां स्मिता पाटिल प्रतीक बब्बर और मां स्मिता पाटिल
नेहा वर्मा
  • नई दिल्ली ,
  • 22 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:44 PM IST

प्रतीक बब्बर जल्द ही मधुर भंडारकर की फिल्म लॉकडाउन इंडिया में नजर आने वाले हैं. प्रतीक इसमें अपनी मेट्रो सिटी बॉय की इमेज के विपरीत एक माइग्रेंट वर्कर के किरदार में हैं. इंटरव्यू के दौरान प्रतीक ने बताया कि वे इस किरदार को अपनी मां के लिए ट्रिब्यूट करना चाहते हैं. इसी बीच प्रतीक हमसे अपनी जर्नी, अप्स ऐंड डाउन और मां स्मिता पाटिल से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से शेयर करते हैं. 

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फिल्म को हामी भरने की कोई खास वजह?
-किरदार ऐसा था कि जिसे इनकार किया ही नहीं जा सकता था. हालांकि जब मधुर भंडारकर सर मेरे पास यह स्क्रिप्ट लेकर आए, तो मुझे हैरानी जरूर हुई थी. क्योंकि अभी तक मैंने ऐसा कोई किरदार निभाया नहीं था. यह मेरी इमेज के विपरीत सा किरदार है. हम माइग्रेंट वर्कर्स की जिंदगी से वाकिफ हैं. उनकी रोजानी की दिक्कतों को हम जानते हैं.अपने परिवार को चलाना उनके लिए बहुत बड़ा स्ट्रगल होता है. खासकर जब लॉकडाउन हुआ था, उस वक्त सबसे ज्यादा असर किसी पर पड़ा था, तो वो इसी तबके के लोग थे. मुसीबत इतनी थी कि उन्होंने अपने घर पहुंचने के लिए पैदल चलना शुरू कर दिया था. मुझ पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी कि मैं इस कम्यूनिटी को सही तरीके से प्रोजेक्ट कर सकूं. पूरी शूटिंग का एक्स्पीरियंस बहुत कमाल का रहा है. एक और कारण यह भी था कि मेरी मां (स्मिता पाटिल) ने ऐसे किरदारों को परदे पर निभाया है. उनके कई रोल्स से जमीन से जुड़े हुए रहे हैं. मैं उनको अपने तरीके से ट्रिब्यूट देना चाहता था. 

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मां का जिक्र आपने किया है. जाहिर सी बात है लोग आपकी तुलना करते रहेंगे, कभी इसका प्रेशर लिया है?
-हां बहुत, मैं प्रेशर में ही रहता हूं. हालांकि इसी प्रेशर से मुझे एनर्जी भी मिलती है. मैं इससे और कॉन्फिडेंट हो जाता हूं. मुझे लगातार याद दिलाया जाता है कि मैं कितनी प्रतिभाशाली एक्टर का बेटा हूं. मेरे लिए उनकी तरह बनना बड़ा अचीवमेंट होगा. 

मां के बारे हमेशा दूसरों से ही सुना है, उनके साथ से वंचित रहे. ऊपरवाले पर गुस्सा आता है?
- जब भी मां के बारे में सोचता हूं, उनकी फिल्में या तस्वीरें देखता हूं, तो उस वक्त क्या महसूस करता हूं, उसे शायद मैं बयां न कर पाऊं. मां से जुड़ी बातें कीमती होती हैं. उनसे जुड़े किस्से कहानियां जब लोग आकर सुनाते हैं, तो मुझे उन लोगों से जलन होती है. हालांकि मैं उनका शुक्रगुजार हूं कि उनकी वजह से मां को जान पाया हूं. मैं बहुत लकी हूं कि स्मिता पाटिल को मैं उनकी फिल्मों के जरिए भी जानता हूं. पता है, वो मेरे साथ नहीं हैं लेकिन अब लगता है कि मैं उनको अच्छी तरह से जान गया हूं. लेकिन वो काश... काश...वाली जो बात है, वो मुझे अक्सर तकलीफ देता है. काश.. वो होतीं मेरे साथ, काश मुझे उनके साथ जीने का मौका मिलता, काश मां का वो प्यार मिल पाता. पर सोचता हूं कि उनका साया तो जरूर मेरे साथ होगा, वो मुझे ऊपर से गाइड करती रहेंगी. रही बात गुस्से की, तो हां, बहुत गुस्सा आता है. उस गुस्से की वजह से ही तो मेरी करियर लगभग खत्म हो गया था. मां के गुस्से से मैंने अपने आपको और अपनी जिंदगी को लगभग खत्म ही कर दिया था. अब वो गुस्सा थोड़ा कम हुआ, जब मेरे नाना-नानी गुजर गए. तब मैं थोड़ा सा जमीन से जुड़ गया. 

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खुद को तबाह करने से कैसे बचाया?
-खुद की आवाज ने ही बचाया है. कहीं न कहीं वो आपके अंदर से आती है, और मेरे साथ भी ठीक वैसा ही हुआ. मैंने अपने गुस्से की वजह से बहुत भुगता है. मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि मैं सारे सिचुएशन को समझ पाया हूं. अब मैंने चीजें स्वीकारना शुरू कर दी हैं. सबसे ज्यादा गुस्सा इसी बात पर आता था कि वो क्यों नहीं है यहां मुझे गाइड करने के लिए, मैं सही या गलत कर रहा हूं, वो क्यों नहीं बताती है. मैं क्या कर रहा हूं, इसके बारे में कौन बात करेगा. मैं तो हमेशा ऊपर देखकर यही कहता था कि मैं ऐसा इसलिए हूं, क्योंकि तुम नहीं थी. तुम्हारी वजह से मैंने खुद को ऐसा किया है. मैंने  खुद से सवाल करता कि क्या मैं इसलिए इतना गलत कर रहा हूं क्योंकि मेरी मां नहीं है. मेरी परवरिश नॉर्मल लोगों सी क्यों नहीं है. 

फिल्मी परिवार से होने के बावजूद आपकी परवरिश आम लोगों जैसी रही है. स्टारकिड्स या आउटसाइडर क्या कहलाना पसंद करते हैं?
- यह दिलचस्प सवाल है. मेरी पैदाईश स्टार किड की हुई क्योंकि मैं स्मिता पाटिल और राज बब्बर का बेटा हूं. लेकिन परवरिश एक टिपिकल मराठी मिडिल क्लास फैमिली वाली रही. मुझे जानबूझ कर फिल्मी दुनिया से दूर रखा गया था. मैं कहूंगा कि मैं दोनों की जिंदगी समझता हूं. मेरी प्रीविलेज्ड परवरिश नहीं रही है. इनफैक्ट मेरे कोई फिल्मी दोस्त नहीं रहे हैं. स्टारकिड्स के साथ मैं नहीं पला बढ़ा हूं. जबकि मेरे भाई-बहन आर्या और जूही ने बचपन से वही देखा है. आज भी मैं फिल्मी स्टार्स को अपना दोस्त कहने से हिचकता हूं. आउटसाइडर्स की ही तरह कई बार रिजेक्ट हुआ और कई बार ऐसा एहसास भी होता था कि मुझे बाकियों की तरह ट्रीट नहीं किया जाता है. हालांकि मुझे इससे कभी फर्क नहीं पड़ा. उल्टा लगता था कि यार मैं तो यूनिक हूं, मेरे जैसा कोई नहीं हो सकता है. मेरी जर्नी बहुत अलग है क्योंकि मेरी कहानी अलग है. 

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एक एक्टर के तौर पर आपने खुद को साबित तो किया है लेकिन जब फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल पाती हैं, तो इसका दर्द होता है?
- बहुत फर्क पड़ता है. मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई भी ऐसा एक्टर होगा, जो ये कहेगा कि मुझे बॉक्स ऑफिस से लेना देना नहीं है. जब फिल्में नहीं चलती हैं, तो बहुत धक्का लगता है. मैं अपने प्रोफेशन को इतना प्यार करता हूं या कह ले इतना ज्यादा ऑबसेस्ड हूं कि मेरी कोशिश कभी बंद नहीं होने वाली है. हालांकि मेरा मकसद बाकि एक्टर्स से थोड़ा अलग है. किसी को पैसे कमाने हैं, किसी को बहुत पॉप्युलर होना है और किसी को सुपरस्टार बनना है, लेकिन मेरा मकसद है कि मैं अपनी मां की लिगेसी को न्याय दे सकूं. उनकी बॉडी ऑफ वर्क को मैं जस्टिस देना चाहता हूं. अगर मैं उस रास्ते पर चलते हुए स्टारडम और पैसे आ जाते हैं, तो सोने पर सुहागा. लेकिन मेरी प्राथमिकता यही रहेगी कि मां के काम को आगे बढ़ाना है. 

फिल्म को करते वक्त कोई ब्रेकडाउन मोमेंट रहे?
- लॉकडाउन में जिस तरह से उन्होंने कठिनाईयां झेली हैं, उसकी तो हम कल्पना नहीं कर सकते हैं. मेट्रो सिटीज से हजारों मिल अपने घर चलकर जाना, ये कौन सोच सकता है. लेकिन लॉकडाउन ऐसी मजबूरी बन गई थी, जो इनके सामने कोई ऑप्शन ही नहीं बचा था. शूट करते वक्त मेरे कई सारे ब्रेकडाउन मोमेंट्स रहे हैं. मैं असल में रोया हूं, अब उनके स्ट्रगल को मैं महसूस कर पा रहा था. क्योंकि न्यूजपेपर में उनके स्ट्रगल को देखना और जानना अलग बात है. हम कभी नहीं जान पाएंगे कि उन्होंने क्या भोगा है. इस शूटिंग ने मुझे एक अलग एक्स्पीरियंस दिया है, जिसे मैं जिंदगीभर सहेज कर रखूंगा. मैंने इसके लिए काफी कुछ अनलर्न किया है. मैं बस्तियों में जाकर इन माइग्रेंट वर्कर्स से मुलाकात की है. मैं उन झुग्गीयों में रहा. उनका लहजा, तरीकेकार सबकुछ अपनाया है. इसके अलावा मैंने अपनी मां की कई फिल्में देखीं, उनके काम को समझा. आक्रोश, चक्र जैसी फिल्में देखीं. मैंने इसमें अपने मां से इंस्पीरेशन ली है.

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