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किसी भी डायरेक्टर को रामायण पर फिल्म नहीं बनानी चाहिए, इसका बाजारीकरण करना बंद करें - दीपिका चिखलिया 

दीपिका चिखलिया मानती हैं कि आज के मेकर्स को रामायण जैसे सेंसिटिव मुद्दे पर फिल्म बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. रामायण जैसे सब्जेक्ट को कमर्शल प्रॉफिट के लिए इस्तेमाल करना उन्हें सही नहीं लगता है.

नेहा वर्मा
  • मुंबई,
  • 04 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:56 PM IST

मौजूदा हाल को देखा जाए, तो बॉलीवुड इंडस्ट्री में इन दिनों धार्मिक फिल्मों का खासा क्रेज देखने को मिलता है. हाल ही में आदिपुरुष ने वीएफएक्स के इस्तेमाल से रामायण की कहानी को दिखाने की कोशिश की थी, वहीं नितेश तिवारी भी रणबीर कपूर के साथ रामायण पर फिल्म बना रहे हैं. दीपिका चिखलिया से जब इस ट्रेंड पर हमने बात की, तो उनका कहना था कि माइथॉलोजी खासकर रामायण पर मेकर्स को फिल्में नहीं बनानी चाहिए. 

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दीपिका कहती हैं, मैं आदिपुरुष के बारे में कभी बात नहीं करना चाहती थी. मैं इतना ही कहूंगी कि हर फिल्म मेकर का अपना विजन और कहानी को लेकर एक सोच होती है. मुझे लगता है कि यह जरूरी नहीं है कि हर बार उनका विजन हमारे ऑडियंस से मेल खाए. मैं स्ट्रॉन्गली यह मानती हूं कि रामायण को नहीं बनाना चाहिए. अगर आप बनाने की सोच भी रहे हैं, तो तुलसीदास या वाल्मिकी जी की रामायण बनाएं क्योंकि रामायण के बहुत से वर्जन रहे हैं. हर वर्जन में कहीं न कहीं कहानियों में ट्विस्ट आती है. मैं मानती हूं कि आप कुछ भी दिखाकर आने वाली जनरेशन को गुमराह न करें. अगर नहीं बना सकते हैं, तो फिर इसे मत छुएं. देखिए, जो बन चुका है, वो बन चुका है. लोगों को पढ़ना लिखना आता है, तो वो पढ़ सकते हैं. अगर उन्हें रामायण देखनी ही है, तो हमारा वाला रामायण देख सकते हैं. यहां हमने असल वाले रामायण को ही दिखाया है.

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दीपिका आगे कहती हैं, हां, मैंने सुना रणबीर कपूर की भी रामायण आ रही है. बस मेरा यही कहना है कि इसके साथ छेड़छाड़ न करें. क्योंकि यह एंटरटेनमेंट का विषय नहीं है. यह पूरी तरह से श्रद्धा और भक्ति का विषय है. इसे कैपटेलाइज कर इसे बिजनस न बनाएं. मुझे नहीं लगता है कि किसी को भी इससे छेड़खानी करनी चाहिए. रामायण हमारी संस्कृति का रूटबेस है, जिससे हमारे कल्चर को ठेस पहुंच सकता है. 

क्या दीपिका कभी रामायण को दिखाने की कोशिश करेंगी. इसके जवाब में वो कहती हैं, 'मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मैं कभी रामायण बनाऊंगी. यह बहुत ही सेंसिटिव विषय है. मुझे नहीं लगता है कि मैं उस माइंडफ्रेम में हूं, जहां इसके बारे में कुछ भी प्लान करूं. वो जो एक दौर था, बहुत डर लगता था. मैं 17 या 18 साल की रही होऊंगी, जहां लोग मेरे पैर छूने आ जाते थे. मैं 35 साल से यही देखती आ रही हूं. मैंने अंदर से ही इस बात को स्वीकार कर लिया है कि लोगों के जेहन में अगर कोई सीता जी हैं, तो वो शायद मैं ही हूं. हालांकि इसके लिए कितनी कुर्बानियां देनी पड़ी हैं, उससे तो सभी वाकिफ हैं. हालांकि मैं पूरी कायनात की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने सीता के लिए मुझे चुना है.'

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