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'एनिमल' पर विवाद: इन सीन को समझने की जरूरत, आप भी कहेंगे एक्शन नहीं कॉमेडी है पूरी

'एनिमल' को लेकर इतनी हाइप थी कि लग रहा था जाने क्या देखने जा रही हूं. पहले ख्याल आया कि बहुत कमाल फिल्म, फिर लगा कि काफी खराब फिल्म है. अब जब देख ली है तो समझ आया है कि 'एनिमल' काफी बोरिंग और फनी मूवी है. कैसे? ये आर्टिकल पढ़िए, पता चल जाएगा.

फिल्म 'एनिमल' के एक सीन में रणबीर कपूर फिल्म 'एनिमल' के एक सीन में रणबीर कपूर
पल्लवी
  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 10:14 AM IST

रणबीर कपूर की फिल्म 'एनिमल' अपनी रिलीज के बाद से इंटरनेट पर चर्चा का विषय बनी हुई है. अपने वायलेंस, मिसोजिनी, डायलॉग और सेक्स सीन्स के साथ-साथ एक्टर्स की परफॉरमेंस को लेकर अलग-आग सोशल मीडिया यूजर्स अपनी बातें रख रहे हैं. इंटरनेट का एक हिस्सा डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा की इस फिल्म को देखकर नाराज है तो दूसरा इसकी तारीफ करते नहीं रुक रहा. अभी तक 'एनिमल' के बारे में हम बहुत कुछ सुन चुके हैं. अच्छा भी और बुरा भी. ऐसे में हां-ना करते हुए मैंने भी ये फिल्म देख ही ली.

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इस पिक्चर को लेकर इतनी हाइप थी कि लग रहा था जाने क्या देखने जा रही हूं. पहले ख्याल आया कि बहुत कमाल फिल्म, फिर लगा कि काफी खराब फिल्म है. अब जब देख ली है तो समझ आया है कि 'एनिमल' काफी बोरिंग और फनी मूवी है. कैसे? आगे पढ़ते जाइए पता चलता जाएगा. उससे पहले बता दूं कि इस आर्टिकल में फिल्म 'एनिमल' के स्पॉइलर हैं. अगर इंटरनेट पर कुछ देखने से बच गए हैं तो इस आर्टिकल में पता चल जाएगा. अपने हिसाब से सोचकर आगे बढ़ें.

'एनिमल' की शुरुआत बूढ़े रणबीर कपूर से होती है. वो एक राजकुमारी और बंदर की कहानी सुना रहे हैं. इसके बाद रणविजय के बचपन की शुरुआत होती है. ये बच्चा अपने पापा के प्यार में इतना पागल है कि उनके बर्थडे पर क्लास में जबरदस्ती पिटाई खाकर घर पहुंच जाता है. घर में बाप नहीं मिलता तो वो फैक्ट्री ही पहुंच जाता है. पिता अनिल जाने कहां थे कि वो कहीं उसे मिलते ही नहीं हैं. इस बच्चे को अपने पापा से इतना ऑब्सेशन है कि वो अपने पिता के लिए अपने प्यार को प्रूव करना चाहता है. 

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होटल में घुसे बॉडीगार्ड 

पिक्चर में कई बेतुकी चीजें हैं. जैसे रणबीर का रश्मिका को कहना कि तुम्हारा प्राइवेट पार्ट बड़ा है, तुम हेल्दी बच्चे पैदा कर पाओगी. क्या मतलब था इस बात का? अर्जन वेल्ली गाने में अकेले रणबीर कपूर होटल में घुस आए मास्क पहने लोगों से लड़ रहे हैं और उनके बॉडीगार्ड भाई पीछे से गाना गा रहे हैं. वो बालकनी से कूदकर नीचे जाते हैं और लोगों पर गोलियां बरसाते हैं, तो भाई ऊपर बालकनी में खड़े गाना गा रहे हैं. रणबीर को खत्म करने आए सारे मुश्टंडों ने मास्क पहना हुआ है और जिस बंदे को सही में अपना मुंह छुपाना चाहिए था वो मास्क हटाकर विजय को मारने आया है. ये सब देखकर आपको हंसी तो आएगी ही, साथ ही आप सोचते हैं कि भई हो क्या रहा है.

जासूस के नाम पर कलंक है जोया का किरदार 

जोया बनीं तृप्ति डिमरी जासूस बनकर विजय को धोखा देने आई है, लेकिन उसे ढंग की ट्रेनिंग किसी से नहीं दी गई. एक छोटी-सी ट्रिक से उसने विजय के सामने अपने प्लान का पूरा चिट्ठा खोलकर रख दिया. वो आई थी विजय को बेवकूफ बनाने और बेचारी खुद ही लल्लू बनकर चली गई. इतना खराब जासूस कौन है भाई? और इसी सीक्वेंस को लेकर एक और बात जो खटकती है वो ये कि यही विजय अपने भाइयों के सामने ज्ञान दे रहा था कि अपनी बीवी से लॉयल रहना चाहिए. जब उसके भाई लड़कियां घर उठाकर लाते हैं तो विजय उन्हें गलत बताता है और फिर खुद ही जोया को न सिर्फ अपने दादा के घर पर रखता है, उसके साथ रिलेशन बना रहा है बल्कि भाइयों से उसे भाभी 2 मानने को भी कह रहा है. उसके चक्कर में अपने बीवी-बच्चे तो भुला ही बैठा है. जब बीवी को अफेयर का पता चलता है तो दुहाई दी जाती है कि वो जासूस थी इसल‍िए पापा को बचाने के लिए उसके साथ सोना पड़ा. इसे देखकर यही लगता है वेकअप मैन, बेवकूफ खुद इसका मतलब ये नहीं की पब्ल‍िक भी बन जाएगी. 

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पापा के साथ पचका हो गया

सोशल मीडिया पर लगातार लोग सवाल उठा रहे हैं कि रणबीर का किरदार इतना टॉक्सिक है, इतनी वायलेंस कर रहा है, इतनी मार-काट, खून-खराबा कर रहा है, फिर भी एक बार भी पुलिस नहीं आती. दोस्तों, देखो... वो ये सब अपने पापा के लिए कर रहा है. और वो भी नहीं आ रहे, तो पुलिस क्या खाक आएगी. पूरी पिक्चर विजय के अपने पापा के प्यार और उससे बने पागलपन पर बेस्ड है, लेकिन विजय ही वो बेटा है जो उसके बाप को नहीं चाहिए. वो दुनिया में कुछ भी कर ले, उसके पिता को कुछ कुबूल नहीं है. और जिस पिता को बचाने और सुरक्षित रखने के लिए वो इतनी मार-काट मचा रहा है बाद में जिंदगी उसी को सबक सिखा देती है. ये सभी पल फिल्म में ह्यूमर के लिए डाले नहीं गए हैं, लेकिन आपको इनपर हंसी आती है. सबसे बड़ी बात आब्सेशन को प्यार नहीं कहते हैं. बेटे व‍िजय को जब प‍िता खुद क्र‍िमनल मानता है तो सीधी सी बात है. बेटे को इलाज की जरूरत है.  

पापा नहीं आ तो पुलिस कहां से आएगी

'एनिमल' में इतने लूपहोल हैं कि आप उसमें तुक ढूंढते-ढूंढते थक जाएंगे. अब तो वो सीन भी वायरल हो गया है, जिसमें विजय अपनी पत्नी गीतांजलि के सामने अपने बेडरूम में बंदूक ताने खड़ा है. फिर वो गन को फायर कर देता है और उसके बच्चे रोने लगते हैं. आप इतने बड़े बाप के बेटे हो कि फ्यूचर प्राइम मिनिस्टर तक आपकी पहुंच है, आपका कहना है कि आपके परिवार ने देश के लिए काफी कुछ किया है और आपके बंगले में बच्चों के लिए अलग कमरा नहीं है. और तो और विजय के पिता एकदम चहलकदमी करते हुए कमरे में आते हैं और बहुत ही आराम से उससे कहते हैं कि बेडरूम में तो बंदूक मत लाया करो. जैसे ये कोई बड़ी बात नहीं है. मैं कहूंगी- विजय के पापा जी आपका अपने बेटे को समझाने का तरीका काफी कैजुअल है. 

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रणविजय को असल में बहुत सारी थेरेपी की जरूरत है. क्योंकि फिल्म के सेकंड हाफ में उसके अंदर का अल्फा मेल भी उसके शरीर में डले किसी पाइप से बाहर आ गया. ये मैं नहीं कह रही, यही सवाल विजय की बीवी गीतांजलि उससे पूछती है. विजय का किरदार अपने आप में बहुत टॉर्चर्ड शख्स है, जिसे मदद की जरूरत है. वो भले ही शेर बन रहा है लेकिन अंदर से एकदम खोखला है. उसकी वायलेंस देखते हुए आप किसी न किसी पॉइंट पर जाकर बोर होने लगते हैं. पूरी फिल्म में ऐसे कई पल है जब आप सोचते हैं मैं क्यों इस पिक्चर को देखने आई. पूरी फ‍िल्म में बस गोल‍ियां चल रही हैं, लोग मर रहे हैं. लेकिन पुल‍िस का कहीं नाम नहीं अता पता. ऐसे कौन सा देश होता है जहां क्राइम हो और पुल‍िस नहीं. कम से कम यही दिखा देते वाहवाही में कि कानून हम जेब में लेकर चलते हैं. 

इंटरव्यू में कही बातें 

हां, फिल्म में कई परेशान करने वाली सीन्स हैं, जो फिल्म की कहानी में फिट होते हैं. अंत में ये एक फिल्म ही है. लेकिन असली दुनिया में एक्टर्स का अपने इंटरव्यू में मैरिटल रेप जैसे सीन्स को जस्टिफाइ करना, पहले से लगी हुई आग को भड़काने का काम करता है. फिल्म को डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने जरूर अच्छी नीयत से बनाया होगा. रणबीर कपूर ने इसमें काफी बढ़िया परफॉरमेंस दी है. अनिल और बॉबी देओल का भी जवाब नहीं. लेकिन जिन चीजों की मैं बात कर रही हूं, उन्हें भी आप नजरअंदाज तो नहीं कर सकते.

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आख‍िरी में यही कह सकते हैं कि एनिमल के किरदारों को अल्फा मेल, बहादुर, जाबांज यहां तक की क्र‍िमनल भी कहना सहीं नहीं. सब मानस‍िक रूप से बीमार हैं जिन्हें सख्त इलाज की जरूरत है.

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