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'प्यार कचरे को सोना बना देता है' लेकिन सड़क-2 को संजय दत्त भी नहीं बना पाए 'सोना'

संजय दत्त, आलिया भट्ट और आदित्य रॉय कपूर स्टारर फिल्म सड़क 2 डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है. इस फिल्म में बदले की आग, प्यार और रिश्तों की कहानी को दिखाया गया है. देशभर से फिल्म के ट्रेलर को काफी निंदा मिली थी. कई दिनों से चर्चा में रही सड़क 2 कैसी फिल्म है? जानिए हमारे रिव्यू में.

आलिया भट्ट, संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर आलिया भट्ट, संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर
अमित राय
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST

सुना है प्यार कचरे को सोना बना देता है- आज देख भी लिया. इसी डॉयलाग के साथ फिल्म सड़क 2 शुरू होती है. फेक गुरु का पर्दाफाश करने निकलीं आलिया भट्ट (आर्या) को प्यार तो मिलता है लेकिन उसमें कहीं सोने की महक नहीं दिखाई देती. मां को खो चुकी लड़की इसके लिए गुरु को जिम्मेदार मानती है और उससे बदला लेना चाहती है. जिस बाप को वह दिलोजान से चाहती है वह गुरु घंटाल से भी बड़ा कसाई निकलता है. जिससे प्रेम करती है वह मारने के लिए भेजा गया गुंडा है. मासी ने बाप से शादी कर ली है और किसी भी तरह आर्या को खत्म करना चाहती है. जब तक उसे अपनी गलती का अहसास होता है बहुत देर हो चुकी होती है. आर्या की मदद के लिए आगे आता है रवि (संजय दत्त) जिससे उसका कोई रिश्ता नहीं है, लेकिन यह फिल्म संजय दत्त की न होकर वैसे ही उनकी हो जाती है. जैसे आर्या के कुछ न होते हुए भी वह उसके लिए पिता से भी बड़े हो जाते हैं.

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कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी और उसके किरदार

पत्नी की एक्सिडेंट में मौत के बाद उसके प्रेम में पागल रवि (संजय दत्त) के जीने का मकसद खत्म हो चुका है. वह आत्महत्या करना चाहता है लेकिन परिस्थितियां उसका साथ नहीं देतीं. पंखे पर लटकने की कोशिश करता है तो उसका हुक ही टूट जाता है. उसका दोस्त उसे डॉक्टर के पास ले जाता है. जहां आलिया (आर्या) को लाया गया है.

आर्या गुरु का पोस्टर जलाते पकड़ी गई थी और उसकी सौतेली मां उसे पागल करार कराना चाहती है क्योंकि 21 साल की होने पर सारी जायदाद उसकी होने वाली है. उसकी मां की लंग कैंसर से मौत हो चुकी है लेकिन वह उसके लिए गुरु और अपनी सौतेली मां जो उसकी मासी ही है को जिम्मेदार मानती है. वह अस्पताल से भागकर सीधे पूजा टूर एंड ट्रैवल्स पहुंचती है जहां पर रवि फिर अपना जीवन दांव पर लगाने की तैयारी कर रहा होता है. काफी जद्दोजहद और पूजा के नाम पर रवि, आर्या को कैलाश ले जाने के लिए तैयार हो जाता है.

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रास्ते में जब वह अपने प्रेमी को साथ ले जाने की बात करती है तब कहानी एक बार फ्लैशबैक में जाती है जहां पता चलता है कि कैसे आर्या, विशाल ( आदित्य रॉय कपूर) को अपना दिल दे बैठी. आर्या को बचाने के चक्कर में उसके हाथ से खून हो गया है और जेल से निकलकर सीधे आर्या और रवि को ज्वाइन करता है. उसके साथ एक तोता भी है कुंभकरण जो वह साथ ले आता है. किस जेल में तोता साथ रखने की इजाजत होती है यह महेश भट्ट ही बता सकते हैं.

सफर आगे बढ़ता है. आर्या चाहती है रवि के साथ ही सफर जारी रहे लेकिन विशाल को यह मंजूर नहीं. वह अपने दोस्त के माध्यम से गाड़ी बदलना चाहता है लेकिन उसका दोस्त गुरु के आदमियों से मिलकर दोनों को उसके हवाले कर देता है. दूसरी ओर रवि की गाड़ी में विशाल का तोता रह जाता है. वह जब उससे देने पहुंचता है तो उन्हें गुंडों से बंधा पाता है. तोते की उपयोगिता यहां पर दिखाई गई है जहां रवि और तोता मिलकर आर्या और विशाल को बचाते हैं.

किस मंजिल तक जाता है सड़क 2 का सफर?

इसके बाद रवि के साथ ही आगे का सफर शुरू होता है. यहां पर विशाल आर्या को बताता है कि वह गुरु का आदमी है और उसे जान लेने के लिए भेजा गया है. आर्या की बातों ने उसका मन बदल दिया है और कभी झूठे प्रेम का नाटक करने वाला विशाल अब सच में आर्या से प्रेम करने लगा है. यहां कशमकश की स्थिति है. आर्या समझ नहीं पा रही कि वह विशाल को छोड़ दे या उसका साथ ले. यहां रवि उसे समझाता है कि ‘सच को सच होने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है. एक जो सच बोल सकता है और एक वो जो सच सुन सकता है. अपनों का सच जानने के बाद हम उसे छोड़ नहीं देते. वह तुम्हें मारने आया था और खुद के डेथ वॉरंट पर साइन कर बैठा. या तो उसे मार दो या गले लगा लो’ और आर्या उसे गला लेती है. 

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बहुत पुरानी कहानी फिर आगे बढ़ती है. रवि का दोस्त सुझाव देता है कि आर्या को उसके पिता को सौंप दो, रवि पिता को फोन करता है लेकिन जहां पहुंचने की बात होती है, वहां पर गुंडे पहले पहुंच जाते हैं. यहां पर आर्या को पहली बार पता चलता है कि उसका बाप ही उसकी हत्या कराना चाहता है. वह अपने पिता से कहती है ‘बाप को अपनी बेटी को क्यों मारना पड़ता है. पैसा और पावर के लिए, अरे मांग लेते मैं दे देती. तुमने एक नहीं मेरी दो मांओं को मारा है’. यहां टूटने के हालात हैं लेकिन आलिया अपनी आंखों और चेहरे पर वह भाव लाने में नाकाम रही हैं जो ऐसे हालात में होने चाहिए. 

अब रवि आर्या के मकसद को अपना मकसद बना लेता है और विदेश भागने की फिराक में लगे गुरु को खत्म कर देता है. रवि आर्या के पिता को भी खत्म कर देता है लेकिन अपनी जान भी गंवा देता है. फिल्म का खात्मा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस से होता है जिसमें आर्या कहती है कि मुल्क की तकदीरें ऐसे नहीं बदलतीं. हम सबको मिलकर इस अंधविश्वास के खिलाफ खड़ा होना होगा. और दूसरी बात जो दिल को छू जाती है कि बाप एक अहसास है. मैं अग्नि रवि को दूंगी. 

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इस तरह फिल्म खत्म हो जाती है. यह फिल्म देखने के बाद ऐसा महसूस होता है कि यह पूरी देख कैसे गया. जवाब मिलता है कि संजय दत्त के कारण. पूरी फिल्म उनके कंधों पर चली है. प्रेमिका-पत्नी की याद में मर जाने की छटपटाहट, जिंदगी का बेमतलब हो जाना, जीना तो किसके लिए जीना फिर जिंदगी को एक मकसद मिल जाना. हर जॉनर में उन्होंने जोरदार अभिनय किया है. लेकिन कहानी इतनी कमजोर है कि उनकी मेहनत भी फिल्म को पार नहीं लगा पाई. 

आदित्य राय कपूर प्यार का नाटक कर असली प्यार में पड़ जाते हैं. जिन्हें मारने के लिए निकले हैं उसे बचाने के लिए जान की बाजी लगा देते हैं. लेकिन उनके प्यार में वो तड़प कहीं दिखाई नहीं देती जो संजय दत्त की आंखों में दिखाई देती है. आदित्य रॉय कपूर को देखकर ऐसा लगता है कि उनसे अभिनय की अपेक्षा करना ठीक नहीं होगा. आलिया भट्ट ने कोशिश की है लेकिन कहीं पर भी छाप छोड़ने में असफल रही हैं. राजी के बाद उनमें जो संभावनाएं देखी गई थीं उस हिसाब से वह निराश करतीं दिखीं. 

कहानी में रह गई कमी, महेश भट्ट का डायरेक्शन भी कमजोर

फिल्म का सबसे कमजोर पहलू है कहानी, जो एकदम घिसी पिटी है. नए दौर में अगर 40 साल पहले की बात दिखाई जाएगी तो वह आज के दर्शक को कैसे मंजूर हो सकती है. जिस फेक गुरु की बात की जा रही है उसने ज्यादातियां क्या की हैं. लोगों का शोषण किस तरह किया है. यह दिखाया ही नहीं गया. मकरंद देशपांडे फर्जी बाबा के रोल में कोई छाप भी नहीं छोड़ पाए, न अभिनय में न आवाज में न संवाद में. जिस मां के मरने का बात की जा रही है उसकी भी झलक नहीं दिख पाई. कुल मिलाकर माहौल नहीं बन पाया. कहानी सड़क पर चलती रह गई उसे मंजिल नहीं मिल पाया.   

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महेश भट्ट को कम बजट की अच्छी फिल्मों के लिए याद किया जाता है. उनकी फिल्में प्यार, इमोशंस और सस्पेंस भरी होती थीं. लीक से हटकर बनाई उनकी फिल्में खूबसूरत गानों की वजह से हिट हो जाती थीं. लेकिन कुछ साल पहले उन्होंने घोषणा की अब वह डायरेक्ट नहीं करेंगे, काश अगर वह अपनी बात पर कायम रहते. उनके चाहने वालों के लिए यह अच्छा होता. सड़क 2 रिलीज होने के पहले उन्होंने एक स्टेटमेंट जारी किया था कि अगर फिल्म अच्छी रही तो आपकी अगर ठीक न लगी तो मेरी. महेश भट्ट साहब यह आपकी ही फिल्म रहेगी. 

एक ऐसी फिल्म जो रिलीज होने के पहले ही डिसलाइक की वजह सुर्खियां बटोर चुकी थी. उसे देखना जरूरी लगा. इसे और बेहतर बनाकर उन लोगों को जवाब दिया जा सकता था जो नेपोटिज्म का विरोध करते हैं. लेकिन फिल्म देखकर कहीं से ऐसा नहीं लगा कि इसके लिए कोई अतिरिक्त प्रयास किया गया है. इससे बहुत बेहतर थी सड़क जिसके डायलॉग, गाने और इमोशंस आज भी नहीं भूलते. सड़क-2 खत्म होने के बाद सड़क का ही एक गाना ‘हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते’ याद रहता है इससे बड़ी असफलता क्या होगी?

 

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