
नेशनल अवॉर्ड जीत चुकीं फिल्म राइटर जूही चतुर्वेदी, शनिवार को लखनऊ में साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद थीं. लखनऊ में ही पली-बढ़ीं जूही ने बताया कि उनके लिए ये शहर कितना मायने रखता है. 'पीकू', 'अक्टूबर' और 'गुलाबो सिताबो' जैसी बेहतरीन फिल्में लिख चुकीं जूही चतुर्वेदी ने बताया कि लखनऊ में गुजारे वक्त के अनुभव, आज भी उनकी राइटिंग में काम आते हैं.
अपनी फिल्मों और जिंदगी पर बात करते हुए जूही ने कहा, 'लखनऊ में एक फुर्सत है, एक तसल्ली है... और ये शहर अपने-आप में एक खयाल है.' साहित्य आजतक में बात करते हुए जूही ने बताया कि उनकी पहली फिल्म 'विक्की डोनर' की स्क्रिप्ट कई एक्टर्स ने रिजेक्ट कर दी थी.
विक्की डोनर रिजेक्ट करने वालों को कहा शुक्रिया
जूही चतुर्वेदी ने बातचीत में बताया कि विक्की डोनर की स्क्रिप्ट कई एक्टर्स ने रिजेक्ट की थी और कईयों के लिए फिल्म का टॉपिक उनकी पसंद से बहुत अलग था. लेकिन जूही ने फिल्म रिजेक्ट करने वालों का शुक्रिया भी अदा किया. उन्होंने कहा, 'अगर वो लोग रिजेक्ट नहीं करते, तो हमें आयुष्मान खुराना नहीं मिलते. वो अपनी पहली फिल्म करने के लिए डेस्पिरेट थे. मैं भी अपनी पहली फिल्म बनने के लिए डेस्पिरेट थी.'
लड़की होकर 'ऐसे' टॉपिक पर लिखना
जूही ने बताया कि 'विक्की डोनर' की कहानी से बहुत लोग हैरान हुए थे कि वो लड़की होकर स्पर्म-डोनेशन जैसे टैबू टॉपिक पर लिख रही थी. उन्होंने कहा कि लिखने में, राइटर के जेंडर से कोई फर्क नहीं पड़ता मगर उसमें सेंसिटिविटी होनी चाहिए. जूही ने 'गाइड' फिल्म का उदाहरण दिया, जिसमें लीड महिला किरदार शादीशुदा है और उसे दूसरे आदमी से प्यार हो जाता है. 'गाइड' के राइटर आर के नारायण थे और उन्होंने पुरुष होकर भी महिला किरदार की सेंसिटिविटी को बहुत बारीकी से उतारा था.
जूही ने लखनऊ के बारे में कहा कि हर राइटर को लिखने के लिए एक रॉ मैटीरियल चाहिए जो उन्हें इस शहर से मिला. उन्होंने कहा कि आज भले वो मुंबई में काम कर रही हैं और वहां ज्यादा एक्टिव हैं, मगर उनके अनुभव लखनऊ से ही सहेजे हुए हैं. जब उनसे पूछा गया कि वो कितनी 'मुंबई वाली' हो गई हैं? तो जूही ने कहा कि अब वो 'दाएं-बाएं' की बजाय 'बाजू में' बोलने लगी हैं.