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सुशांत सिंह राजपूत पर बोले शेखर सुमन- इस केस में CBI ने हमें बहुत निराश किया है

शेखर सुमन ने कुछ समय से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से दूरी बना ली थी. इस दौरान शेखर पॉलिटिक्स व सोशल मीडिया पर खासे एक्टिव रहें. सुशांत सिंह राजपूत के केस में शेखर काफी वोकल थे.

शेखर सुमन शेखर सुमन
नेहा वर्मा
  • मुंबई ,
  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 9:49 AM IST
  • सुशांत सिंह राजपूत केस पर बोले शेखर सुमन
  • अगर इंडस्ट्री ने दूरी भी बना ली हो, तो फर्क नहीं पड़ता

सुशांत सिंह राजपूत केस में एक्टर शेखर सुमन ने अपनी आवाज बुलंद की थी. यहां तक कि बॉलीवुड से जुड़े कई काले सच को भी उजागर किया था. शेखर ने ग्रुपिज्म और भाई-भतीजावाद की हकीकत को भी कबूला था. 

इस दौरान शेखर ने एंटरटेनमेंट वर्ल्ड से दूरी बना ली थी. अब एक लंबे समय बाद लॉफ्टर शो से शेखर वापसी कर रहे हैं. यहां शेखर अर्चना पूरन सिंह के साथ जज की कुर्सी संभालेंगे. आजतक डॉट इन से शेखर ने शोबिज से अपनी दूरी की वजह बताई है. 

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अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटने वाला 

पिछले कुछ समय में आप बॉलीवुड से जुड़े मुद्दे को लेकर वोकल रहे हैं. आपने ग्रुपिज्म, सुशांत सिंह राजपूत को न्याय जैसी कई इश्यूज पर आवाज उठाई है. तो कहीं बॉलीवुड ने दूरी बना ली है. उसका खामियाजा तो नहीं भुगत रहे हैं? इसके जवाब पर शेखर कहते हैं, हो सकता है, हुआ हो. मैं मानता हूं कि जब आप बेबाकी से बेखौफ होकर अपनी आवाज उठाते हो, तो फिर इन चीजों की परवाह नहीं करते हैं. मतलब आप आगे निकले हैं और पीछे से किसी ने आपका घर जला दिया है, तो कोई बात नहीं, एक नया घर बना लेंगे. आपने मेरी राह उजाड़ दी है, तो मैं एक नया राह बना लूंगा लेकिन मैं अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटने वाला हूं.

किसी को तो आवाज उठानी ही थी 

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शेखर आगे कहते हैं, हम सबकी सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं. हम खाली चुप बैठकर तमाशबीन तो नहीं बन सकते हैं न. किसी न किसी को तो बोलना होगा, किसी न किसी को तलवार तो उठानी होगी. अगर आप नहीं बोलेंगे, तो कोई नहीं बोलेगा फिर खामोश बैठ जाएंगे. ऐसे में समाज में फिर बदलाव कैसे आएगा. चला तो था मैं अकेला ही, लेकिन लोग आते गए और कारवां बनता गया. बोलना बहुत जरूरी है. मैंने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की कि मुझे इससे क्या नुकसान होगा. बस दिल से आवाज आई, तो मैंने किया. रही बात काम की, तो मेरे पास जबतक टैलेंट है, तो कोई काम छीन नहीं सकता है. आप ही देखें न, मैं वापस आ गया. कौन छीन पाया. ज्यादा कुछ होगा, तो मैं खुद निर्माता बन जाऊंगा. मुझे कौन रोकेगे. देखें, देने वाला ईश्वर होता है, आप कौन होते हैं, मेरा काम छीनने वाले.

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ताकि हो फेयर डिसीजन 

अपने लक्ष्य की बात करते हुए शेखर कहते हैं, इंडस्ट्री में जो एक ग्रुपिज्म की दिक्कत है. अपने ही लोगों को काम देते हैं, मुझे उससे दिक्कत थी. आपको बाहर के लोगों के लिए भी रास्ता खोलें न. आप भाई-भतीजावाद करें, लेकिन आउटसाइडर को रोकिए या दबाइए मत. उनकी प्रतिभा को भी आगे बढ़ाएं. आपने एक सीमा खींच ली है कि अब इस ग्रुप में किसी आउटसाइडर को आने नहीं देंगे, जो आएगा उसे बर्बाद कर देंगे, ये गलत है. इसके खिलाफ उठानी जरूरी है. इसे फेयर प्रोसेस रखें, डेमोक्रेटिक तरीके से काम करें. सबके लिए समान मापदंड होना चाहिए. ऐसे टैलेंट को बढ़ावा देना जरूरी है.

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सुशांत के मुद्दे का उदाहरण देते हुए शेखर ने कहा, अब जो सुशांत के साथ हुआ, वो एक बहुत ट्रेजिडी रही है. शायद उसने अपनी जान इन्हीं कारणों से दी है. वो इतना परेशान हो गया था. या तो उसे इन्होंने हटा दिया या फिर उसे लगा कि खत्म कर लेना चाहिए. आप इससे सीख लें और गलती को दोबारा दोहराएं नहीं. मीटू मूवमेंट ने कास्टिंग काउच के काले सच को उजागर किया था, उसे भी तो बंद होना चाहिए. हमारी इंडस्ट्री को अब इस पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है. बॉलीवुड शब्द से भी मुझे कोफ्त है. यह हमारे मेंटल बैंकरप्सी को जाहिर करता है. इंडियन फिल्म इंडस्ट्री जो मेड इन इंडिया है. आपने उसे हाफ हॉलीवुड क्यों कह रहे हैं. ये क्या मजाक है. ये बॉलीवुड क्या है.

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सीबीआई से बहुत उम्मीदें थीं 

सुशांत के वक्त जब एक आंधी चली थी, वो कहीं न कहीं दब सी गई है. क्या लगता है कि कहां कमी रह गई है? इसके जवाब पर शेखर ने सीबीआई पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, देखें, हमारे कंट्रोल में सबकुछ तो नहीं है. न्याय हम नहीं कर सकते हैं. हमारे हाथ में केवल सच्चाई के सपोर्ट में आवाज उठाना. आंधी भी एक वक्त तक रहती है और फिर कहीं और डायवर्ट होकर चली जाती है. शायद ये दबी हुई आंधी है, एक बार फिर से उजागर होगी. ये वक्त की बात है. हमने तो बहुत आवाज उठाई थी. कहा था कि पुलिस इस केस को नहीं संभाल पा रही है. सीबीआई का इंटरवेशन जरूरी है. हम अपनी चीजों में कामयाब भी रहे. सीबीआई से हमें काफी उम्मीदें टिकी थी, वो हमें निराश कर गया. इसके बाद कोई परिणाम ही नहीं निकला, हम किसी सबूत कर पहुंच ही नहीं पाए. ये आवाज उठाते-उठाते हम थक गए थे. हम इंतजार कर रहे हैं और फिर अपनी आवाज बुलंद करेंगे और देखेंगे कि आखिर सच्चाई कब तक छुपाई जा सकती है. इसके बाद हम आगे बढ़ सकते हैं.

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