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'गंगाजल' से पहले बिहार के हाल पर बनी वो फिल्म जिसकी फीस नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने खाना खाकर वसूली!

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने 90s में मुंबई आने के बाद मुंबई में जिस तरह स्ट्रगल किया, उसकी कहानी आज लोगों को मोटिवेशन देती है. लेकिन छोटे-छोटे किरदारों की फीस के लिए प्रोड्यूसर्स ने उन्हें बहुत दौड़ाया. एक फिल्म की फीस तो नवाज को आजतक नहीं मिली, बल्कि उस फीस को उन्होंने प्रोड्यूसर के ऑफिस में खाना खाकर बराबर किया.

'शूल' फिल्म में मनोज बाजपाई, नवाजुद्दीन सिद्दीकी (क्रेडिट: यूट्यूब) 'शूल' फिल्म में मनोज बाजपाई, नवाजुद्दीन सिद्दीकी (क्रेडिट: यूट्यूब)
सुबोध मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 05 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:49 AM IST

बिहार के एक जिले में एक नया पुलिस ऑफिसर ट्रांसफर होकर आया है. नई जगह कदम रखते ही उसका सामना अपने से एक जूनियर पुलिसवाले के साथ होता है, जो उसे नहीं पहचानता. कमान संभालते ही पता चलता है कि उसका महकमा एक करप्ट नेता के इशारे पर चलता है, जिसका सरनेम देश की राष्ट्रीय राजनीति में ऊंचा कद रखने वाले एक चर्चित नेता से मेल खाता है.

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इस कहानी का नायक पुलिस वाला एक नेता के बेटे को, लड़की से बदतमीजी के लिए सबक सिखाता है. लेकिन उसका अपना ही सीनियर बड़े नेता की धुन पर फैसले लेने वाला निकलता है. पूरी तरह करप्ट हो चुके इस सिस्टम के खिलाफ इस पुलिस ऑफिसर की जीत अंत में एक ऐसे तरीके से होती है, जिसकी इजाजत पुलिस मैनुअल तो हरगिज नहीं देता. क्या आप ये फिल्म पहचान पा रहे हैं? अगर आपका जवाब 'गंगाजल' है तो आप गलत हैं. आज यहां बात 'शूल' की हो रही है! 

'शूल' फिल्म में मनोज बाजपाई (क्रेडिट: यूट्यूब)

शिल्पा शेट्टी के आइटम नंबर से है याद  

5 नवंबर 1999 को रिलीज हुई 'शूल' को कुछ लोग 'गंगाजल बिफोर गंगाजल' भी कहते हैं. इसकी सीधी वजह यही है कि दोनों कहानियों के बेसिक प्लॉट में बहुत कुछ लगभग एक जैसा लगता है. लेकिन सिनेमा का कमाल देखिए कि दोनों ही फिल्में आज अपनी जगह कल्ट हैं और दोनों के ही फैन बहुत हैं. हालांकि, ये जरूर है कि बिहार के करप्ट पुलिस-राजनीति सिस्टम पर बनी फिल्मों के मामले में, 2003 में बनी 'गंगाजल' के मुकाबले 'शूल' का नाम लोगों को थोड़ी देर बाद याद आता है. और कई बार तो सिर्फ शिल्पा शेट्टी के आइटम नंबर 'मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने' की वजह से याद आता है.

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मगर कमाल ये है कि जहां 'शूल' को सामाजिक-राजनीतिक सिस्टम की नाकामी दिखाने के लिए 'बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी' का नेशनल अवार्ड मिला. वहीं 4 साल बाद आई 'गंगाजल' को भी नेशनल अवार्ड मिला, सामाजिक मुद्दों पर बनी सोशल बेस्ट सोशल फिल्म का.  

'शूल' में लीड किरदार निभाया था मनोज बाजपेयी ने. अगर 'सत्या' में मनोज का किरदार सपोर्टिंग माना जाए तो 1999 में ही आई 'कौन?' के बाद, 'शूल' बतौर लीड हीरो उनकी दूसरी फिल्म थी. और बतौर हीरो पहली कामयाब फिल्म. उनकी पत्नी के रोल में रवीना टंडन थीं जो अब अपनी 'ऑनस्क्रीन डीवा' वाली इमेज को तोड़ कर, अपनी एक्टिंग की धार आजमाने लगी थीं.

'शूल' फिल्म में रवीना टंडन (क्रेडिट: यूट्यूब)

साथ में विलेन के रोल में सयाजी शिंदे थे, जो मराठी सिनेमा में बहुत तारीफ़ बटोर रहे थे और उनपर एक आर्टिकल पढ़ने के बाद मनोज बाजपाई ने प्रोड्यूसर राम गोपाल वर्मा को उनका नाम सुझाया था. इनके अलावा सपोर्टिंग रोल में विनीत कुमार, नंदू माधव और राजपाल यादव जैसे दमदार कलाकार तो थे ही, और यशपाल शर्मा भी थे जिन्हें बाद में 'गंगाजल' में नेगेटिव रोल के लिए कई अवार्ड मिले. 

'शूल' फिल्म में यशपाल शर्मा (क्रेडिट: यूट्यूब)

अनुराग कश्यप कनेक्शन 

'सत्या' और 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' जैसा सिनेमा बना चुके अनुराग कश्यप बॉलीवुड फिल्मों में कई बड़े बदलावों की वजह हैं. खासकर 90s के सिनेमा में तो उनकी छाप इतनी जगह है कि उसे एक जगह समेटकर लिख पाना भी मुश्किल है. 'शूल' के प्रोड्यूसर राम गोपाल वर्मा थे और अनुराग फिल्म लिख रहे थे. एक इंटरव्यू में अनुराग ने बताया है कि बाद में क्रिएटिव डिफ़रेंस की वजह से वो फिल्म से अलग हो गए थे. और तब ईश्वर निवास ने इसे डायरेक्ट किया. 

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नवाजुद्दीन सिद्दीकी को नहीं मिली फीस 

आज बॉलीवुड के सबसे दमदार एक्टर्स में गिने जाने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मुंबई आने के बाद कितना कड़ा संघर्ष किया है, इसकी कहानी वो खुद कई इंटरव्यूज में बता चुके हैं. 90s के उस दौर में नवाज कई फिल्मों में छोटे-छोटे रोल कर रहे थे. लेकिन कई बार प्रोड्यूसर्स से फीस मिलने में बड़ी दिक्कत आती थी. 'शूल' भी उन फिल्मों में से एक है, जिनमें आप छोटे से रोल में नवाज को देख सकते हैं. फिल्म के एक सीन में मनोज अपनी पत्नी और बेटी को खाना खिलाने होटल ले जाते हैं और वहां जो वेटर उनकी टेबल सर्व करता है, उस रोल में नवाज हैं. 

'शूल' फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी (क्रेडिट: यूट्यूब)

बाद के एक इंटरव्यू में नवाज ने बताया कि इस रोल के लिए उन्हें 2500 रुपये बतौर फीस मिलने थे, जो कभी नहीं मिले. लेकिन उन्होंने एक अनोखे तरीके से ये फीस वसूली. नवाज ने बताया कि वो पैसे लेने जाते थे तो फीस नहीं मिलती, लेकिन खाना मिल जाता था. फिर उन्होंने चालाकी दिखाई और खाने के टाइम पर ही उनके ऑफिस पहुंच जाते. वहां उन्हें कहा जाता, 'पैसे तो नहीं मिलेंगे, पर तू खाना खा ले आजा.' नवाज ने इस तरह एक डेढ़ महीने खाना खाकर अपनी फीस बराबर की.

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हालांकि, एक इंटरव्यू में अनुराग ने बताया कि उन्होंने नवाज को ये रोल करने से मना किया था. उन्हें लगा कि ये रोल नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से पढ़कर आए एक्टर के हिसाब से बहुत छोटा है और टाइम की बर्बादी है. अनुराग ने कहा, 'मैंने उन्हें काम करते नहीं देखा था, तो बहुत समय तक मैंने उन्हें सीरियसली नहीं लिया था.' 

 

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