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हिट फिल्म से ज्यादा जरूरतमंद के घर भैंस पहुंचाने की होती है खुशी, बोले Sonu Sood

बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद लोगों के लिए 'मसीहा' हैं. लॉकडाउन के दौरान इन्होंने कई प्रवासी मजदूरों की मदद की और उन्हें उनके घर पहुंचाया. हाल ही में आजतक एजेंडा 2021 में सोनू सूद ने बताया कि कई बार उन्हें हिट फिल्म देने में इतनी खुशी नहीं होती, जितनी एक व्यक्ति के घर भैंस पहुंचाने में मिलती है.

सोनू सूद सोनू सूद
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 8:31 AM IST
  • जरूरतमंदों की मदद कर मिलती है खुशी
  • हिट फिल्म के सक्सेस की नहीं होती उतनी खुशी

बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद लोगों के लिए 'मसीहा' हैं. लॉकडाउन के दौरान इन्होंने कई प्रवासी मजदूरों की मदद की और उन्हें उनके घर पहुंचाया. आजतक एजेंडा 2021 में सोनू सूद ने बताया कि कई बार उन्हें हिट फिल्म देने में इतनी खुशी नहीं होती, जितनी एक व्यक्ति के घर भैंस पहुंचाने में मिलती है. सोनू सूद से पूछा गया कि वह जो भी लोगों के लिए कर रहे हैं उससे उन्हें गर्व महसूस होता है या जिम्मेदारी लगती है कि मैं किस तरह इसका निर्वाहन कर पाऊंगा.

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लोगों की मदद कर मिलती है खुशी
सोनू सूद ने कहा कि कमाल की फीलिंग आती है. वह दिन याद आता है, जब मैं मोगा से मुंबई आया था अपने सपने पूरे करने. मैं और जिम्मेदार महसूस करता हूं और लगता है कि मेरी जिंदगी बदल गई है. मुझे याद है कि जब बड़े डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के फोन आते थे. खुशी होती थी कि स्क्रिप्ट कब आएगी, कब सुनूंगा, कब उसे पढ़ूंगा. अब जब स्क्रिप्ट्स आती हैं तो इतना नहीं लगता. अब लोगों की मुश्किलें मैं सुनता हूं और उनका हल निकालता हूं, तो मुझे लगता है कि जो उससे खुशी मिलती है, उससे ज्यादा मेरे लिए कुछ नहीं. यह मैंने पिछले दो साल में एक्स्पीरियंस किया है. 

सोनू सूद आगे कहते हैं कि बिहार के अंदर फ्लड्स आए थे. बहुत सारे परिवार थे, जिन्होंने अपना रोजगार खो दिया था. मैं करीब साढ़े सात लाख लोग के टच में आया था. मैंने छोटे से छोटे कसबे के अंदर अपने वॉलेंटियर्स को भेजा था, जिनके नंबर हमारे पास थे. वे वहां जाते थे और देखते थे कि आखिर वह व्यक्ति जरूरतमंद सच में है या नहीं. हमारा वॉलेंटियर जब एक परिवार को जरूरतमंद देखते हुए एक भैंस के साथ बछड़ा भी खरीदकर देता था तो उस परिवार के चेहरे पर जो खुशी हम देखते थे, वह मेरे लिए सबकुछ होती थी. हिट फिल्म की उतनी खुशी नहीं होती थी, जितनी परिवार को दी गई भैंस को देकर होती थी. लोगों की खुशी अब मेरी जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है. 

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सोनू ने कहा कि हर रोज मुझे महसूस होता है कि मेरे पैरेंट्स मेरे साथ हैं. मेरे पिता की पंजाब में एक कपड़े की दुकान थी और मेरी मां प्रोफेसर थीं. जब मैंने अपनी इंजीनियरिंग खत्म की तो मेरे माता-पिता ने कहा कि जो अपने सपने पूरे कर, लेकिन मैं उनके साथ समय नहीं बिता पाता था. जब मुझे पहली फिल्म मिली तो मेरी मां बहुत कुश हुईं. उन्होंने मुझे कहा कि हम रहे या न रहे, लेकिन तुझे खुश देखकर हम खुश रहेंगे. मुझे यकीन है कि आज भी वह मुझे ऊपर से देख रहे हैं और खुश हो रहे हैं. 

 

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