
भारत सरकार से सिनेमा में योगदान के लिए मिलने वाला 'दादा साहब फाल्के अवार्ड' बहुत ऊंचा दर्जा रखता है. देश के राष्ट्रपति के हाथों मिलने वाला इस अवार्ड के लिए जिसे चुना जाए वो अपने आप में भारतीय सिनेमा का एक आइकॉन बन जाता है. 'महानायक' कहे जाने वाले, हिंदी फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन को ये अवार्ड 2019 में मिला था.
उनसे 14 साल पहले, 2005 में इंडियन सिनेमा की सबसे चर्चित एक्ट्रेसेज में से एक को भी ये अवार्ड ऑफर हुआ था. बताया जाता है कि इस एक्ट्रेस की एक बंगाली फिल्म को हिंदी में अमिताभ बच्चन और रेखा की यादगार जोड़ी के साथ बनाया जाना था. लेकिन ऑरिजिनल फिल्म देखने के बाद बच्चन साहब ने पूरे सम्मान के साथ हाथ जोड़कर कहा था- 'ये मुझसे नहीं होगा.'
उस लेजेंड एक्ट्रेस को जब अवार्ड ऑफर हुआ तो खास नोट भेजा गया कि आपको खुद अवार्ड लेने आना होगा. रिपोर्ट्स बताती हैं कि तब सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे प्रिय रंजन दासमुंशी बहुत शिद्दत से चाहते थे कि ये एक्ट्रेस अपना अवार्ड लेने खुद आएं. मगर उस एक्ट्रेस ने भारत के सबसे प्रतिष्ठित सिनेमा सम्मान को छोड़कर, जनता की नजरों से दूर, अपने एकांत में रहना चुना. ये थीं 'महानायिका' सुचित्रा सेन. 6 अप्रैल 1931 को पैदा हुईं सुचित्रा को 'किवंदंती नायिका' के नाम से भी जाना जाता है.
सबसे आइकॉनिक एक्ट्रेसेज में से एक सुचित्रा जब जनता की नजरों के सामने आखिरी बार आईं तो 47 साल की थीं. उनके चेहरे पर बढ़ती उम्र के कुछ निशान जरूर मौजूद थे. लेकिन उनकी पहचान वही खूबसूरती थी जिसने 25 साल लंबे करियर में दर्शकों को पलकें झपकाए बिना, देखते रहने पर मजबूर किए रखा था. 2014 में जब सुचित्रा ने संसार को अलविदा कहा, तो वो 82 साल की थीं. मगर लोगों को आज भी वो ज्यादा से ज्यादा 47 साल की ही याद हैं, क्योंकि उसके बाद कभी लोग उन्हें सामने से देख ही न सके. उनकी अंतिम यात्रा में भी नहीं! आइए बताते हैं 'किंवदंती' सुचित्रा सेन के बारे में...
सुचित्रा- एक मिथक की शुरुआत
कलकत्ता के बड़े रईस आदिनाथ सेन अपने बेटे दिबानाथ की शादी के लिए लड़की खोज रहे थे. इसी सिलसिले में उन्हें 1947 के बंटवारे में, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के पाबना जिले से पश्चिम बंगाल आया एक परिवार मिला. 16 साल की रमा दासगुप्ता में आदिनाथ ने ऐसा क्या देखा जो उसे बहू बनाने का फैसला ले लिया, ये कोई नहीं जानता. लेकिन किस्से बताते हैं कि रमा के आने के बाद, आदिनाथ के बेटे दिबानाथ की जिंदगी बदल गई, जिसे पार्टियां शराब और जुए की लत लगने लगी थी.
शादी के अगले ही साल रमा को एक बेटी भी हो गई जिसका नाम मुनमुन सेन रखा गया, जिसने भारत में कई भाषाओं की फिल्में कीं और बड़ी एक्ट्रेस बनी. लेकिन इससे पहले मुनमुन की मां, रमा खुद सिनेमा की आइकॉन बनने निकली थीं. 50 के दशक में एक शादीशुदा और एक बच्चे की मां का एक्टिंग में कदम रखना एक बहुत बड़ी बात थी. मगर रमा ने ये बड़ा कदम उठाया और स्क्रीन पर उन्हें सुचित्रा सेन के नाम से जाना गया. उनकी पहली बंगाली फिल्म 'शेष कोथाय' (1952) थी, लेकिन कभी रिलीज नहीं हुई. मगर इसके बाद जो हुआ उसने जैसे सुचित्रा की तकदीर ही बदल दी.
सिनेमा की सबसे आइकॉनिक जोड़ी
सुचित्रा की जो पहल फिल्म थिएटर्स में रिलीज हुई उस नाम था 'सात नंबर कैदी' (1953). ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई, जिसके बाद तरुण मुखर्जी की फिल्म 'एटम बम' में सुचित्रा ने एक बैकग्राउंड या कहिए कि 'एक्स्ट्रा' रोल में काम किया. ये फिल्म बनी 1951 में थी मगर रिलीज 1954 में हुई. मगर इससे पहले 1953 में उनकी फिल्म 'Sharey Chuattor' (साढ़े चौहत्तर) थिएटर्स में खूब चलने लगी.
इस फिल्म में सुचित्रा पहली बार उत्तम कुमार के साथ नजर आईं, जिन्हें बंगाली सिनेमा का 'महानायक' भी कहा जाता है. ये फिल्म बड़ी हिट बनी और फिर उत्तम-सुचित्रा की जोड़ी ऐसी पॉपुलर हुई कि अलग-अलग डायरेक्टर्स ने करीब 20 सालों तक इस जोड़ी को फिल्मो में खूब रिपीट किया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि अपने करियर की 60 फिल्मों में से, सुचित्रा ने 30 उत्तम कुमार के साथ की थीं.
'देवदास' की सबसे पॉपुलर पारो
बिमल रॉय की नेशनल अवार्ड से सम्मानित फिल्म 'देवदास' (1955), सुचित्रा की डेब्यू हिंदी फिल्म थी. रॉय ने पहले मीना कुमारी को इस किरदार के लिए अप्रोच किया था, मगर उनके पति कमाल अमरोही ने कुछ ऐसी शर्तें रखीं जो उन्हें स्वीकार नहीं थीं. तबतक सुचित्रा बंगाली में उत्तम कुमार के साथ 'अग्निपरीक्षा' (1954) जैसी सुपरहिट फिल्म दे चुकी थीं. कहते हैं कि यहीं से बिमल दा ने सुचित्रा को पारो के रोल के लिए अप्रोच किया. 'देवदास' में चंद्रमुखी के रोल के लिए वैजयंतीमाला को 'बेस्ट एक्ट्रेस' का नेशनल अवार्ड ऑफर हुआ, लेकिन उन्होंने ये कहते हुए अवार्ड लेने से इनकार कर दिया कि फिल्म में सुचित्रा और उनका रोल बराबर था!
ब्रिटिश फिल्म क्रिटिक डेरेक मैल्कम ने एक जगह कहा है कि वो सुचित्रा के 'एक्टिंग' के हुनर को बहुत शानदार नहीं मानते. बल्कि उनके हिसाब से सुचित्रा के चेहरे पर एक 'स्थायी भाव' था जो किरदारों को अलग रंग दे देता था. सुचित्रा के साथ 'सात पाके बांधा' में काम कर चुके एक्टर सौमित्र चैटर्जी ने भी ये बात कही है कि 'वो खूबसूरत तो थीं लें मैं उन्हें बेहतरीन एक्ट्रेस नहीं मानता.' सुचित्रा अपने किरदारों को कुछ इस तरह निभाती थीं, जिसे आज सिनेमा में 'अंडरप्ले' करना कहा जाता है. हिंदी में सुचित्रा ने कुल मिलाकर 7 फिल्मों में काम किया. इसमें से कुछ हिट रहीं, कुछ फ्लॉप. मगर उनके किरदार हमेशा बाकी एक्ट्रेसेज से अलग रहे.
ताकतवर किरदार और हीरो से ज्यादा फीस
'सप्तपदी' में सुचित्रा एक शराबी एंग्लो-इंडियन महिला सैनिक थीं. 'उत्तर फाल्गुनी' में उन्होंने एक वेश्या और उसकी वकील बेटी का डबल रोल किया. 'दीप जेले जाय' में उन्होंने एक नर्स का किरदार निभाया जो दिमागी परेशानी से जूझ रहे हीरो की मदद करने के लिए उसकी पत्नी होने का नाटक करती है. 1950-60 के दशक में इस तरह के किरदार पर्दे पर निभाना, अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी.
सुचित्रा ने न सिर्फ पर्दे पर दमदार किरदार निभाए, बल्कि पर्दे के बाहर भी अपने लिए सॉलिड पहचान क्रिएट की. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 1962 में आई फिल्म 'बिपाशा' के लिए सुचित्रा ने बतौर फीस एक लाख रुपये लिए थे. ये पहली बार था जब किसी बंगाली एक्टर ने इतनी फीस चार्ज की थी. ये भी बताया जाता है कि अपनी कई फिल्मों के लिए सुचित्रा ने फिल्म के हीरो से ज्यादा फीस चार्ज की थी. और ये नाहक ही नहीं था, यकीनन पर्दे पर लोग उन्हें देखने के लिए इस तरह जुटा करते थे कि फिल्म में उनका होना अपने आप में एक चर्चा की बात हो चुकी थी.
एक 'आंधी'
हिंदी सिनेमा के दर्शक और किसी किरदार से सुचित्रा को पहचानते हों या नहीं, मगर 1975 में आई गुलजार की फिल्म 'आंधी' उन्हें जरूर याद होगी. इस फिल्म में सुचित्रा ने एक फीमेल पॉलिटिशियन का किरदार निभाया था. ऐसा कहा गया कि फिल्म की कहानी और ये किरदार, उस समय भारत की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी से प्रेरित था. लेकिन असल में सिर्फ सुचित्रा के किरदार का सिर्फ लुक ही उनसे प्रेरित था.
सुचित्रा को जिस एक ऑनस्क्रीन खूबी के लिए बहुत याद किया जाता है, उसमें से एक है गानों पर उनकी एक्टिंग. 'आंधी' में भी उनपर फिल्माए 'तेरे बिना जिंदगी से' और 'तुम आ गए हो नूर आ गया है' बहुत आइकॉनिक थे. इन दोनों गानों को आज भी खूब पसंद किया जाता है.
रिजेक्ट कीं टॉप फिल्ममेकर्स की फिल्में
इंडियन सिनेमा के इतिहास में जिन्हें लेजेंड फिल्ममेकर्स कहा जाता है, उनमें सत्यजित रे का नाम भी शामिल है. विदेशों तक में, आज भी बड़े फिल्ममेकर्स सत्यजित से इंस्पायर होने की बात स्वीकारते हैं. इन्हीं सत्यजित रे ने तय किया 1960 के दशक में बंगाली नॉवेल 'देवी चौधरानी' पर फिल्म बनाने का फैसला किया और लीड रोल लेकर सुचित्रा के पास पहुंचे. कभी दो साल में 20 फिल्मों पर काम करने के लिए चर्चा में रहीं सुचित्रा से, रे ने कहा कि उनकी फिल्म के दौरान वो किसी और फिल्म पर काम नहीं करेंगी.
रिपोर्ट्स बताती हैं कि सत्यजित रे ये भी चाहते थे कि सुचित्रा उनकी फिल्म के लिए अपना लुक बदलें. लेकिन सुचित्रा को ये दोनों बातें स्वीकार नहीं थीं और उन्होंने साफ इनकार कर दिया. सत्यजित भी अपनी फिल्म को लेकर इतने पर्टिकुलर थे कि सुचित्रा ने इनकार करने के बाद उन्होंने ये प्रोजेक्ट ही बंद कर दिया और कभी ये फिल्म नहीं बनाई. इसी तरह एक बार सुचित्रा ने राज कपूर को भी फिल्म के लिए मना कर दिया था. बताया जाता है कि जब वो नहीं मानीं, तो राज साहब उनसे मिलने कोलकाता पहुंच गए. अपने मस्त मिजाज के लिए मशहूर राज कपूर ने घुटनों पर बैठकर सुचित्रा को फूलों का बुके दिया.
बताया जाता है कि उनका ये 'फिल्मी' अंदाज सुचित्रा को पसंद नहीं आया. रिपोर्ट्स बताती हैं कि सुचित्रा ने फिल्म के लिए मना करने के बाद अपने एक आदमी से कहा, 'एक आदमी को औरत के सामने इस तरह झुकने की क्या जरूरत है!' सुचित्रा की बायोग्राफी लिखने वाले गोपाल कृष्ण रॉय कहते हैं- 'वो बहुत मूडी थीं और हमेशा अपने मूड के हिसाब से चलती थीं. लेकिन एक व्यक्ति के तौर पर वो बहुत खुश रहने वाली और प्यारी थीं.'
स्क्रीन से मोहभंग और एकांतवास
1978 में सुचित्रा की फिल्म 'प्रणय पाशा' रिलीज हुई और फ्लॉप हो गई. इसके बाद उन्हें कभी स्क्रीन पर नहीं देखा गया. उन्होंने पब्लिक की नजरों से खुद को दूर कर लिया और जैसे किसी एकांतवास में रहने लगीं. जब उन्होंने स्क्रीन से दूर होने का फैसला लिया तो राजेश खन्ना के साथ उनकी फिल्म 'नती बंदिनी' पर काम शुरू हो चुका था, मगर सुचित्रा के फैसले की वजह से इसे बीच में ही बंद करना पड़ा.
ऐसा भी कहा जाता है कि 1980 में अपने मशहूर स्क्रीन पार्टनर, उत्तम कुमार के निधन के बाद उन्होंने जनता की नजरों से खुद को ज्यादा दूर कर लिया था. रिपोर्ट्स बताती हैं कि उत्तम कुमार ने दुनिया को अलविदा कहने से पहले सुचित्रा को फोन किया था और उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की थी. लेकिन सुचित्रा ने उन्हें कह दिया 'मैं बिजी हूं, बाद में मिलती हूं.'
रामलाल नंदी, जिन्हें सुचित्रा अपने बेटे की तरह मानती थीं, ने बाद के एक इंटरव्यू में बताया, 'एक दिन 1978 में उन्होंने कहा- अब स्टूडियो नहीं जाऊंगी. तब मैं इस स्टेटमेंट की वैल्यू समझने लायक समझदार नहीं था.' नंदी के अंकल असित चौधरी छायाबानी प्रोडक्शन कंपनी चलाते थे और सुचित्रा के काफी करीबी थे. असित ने ही सुचित्रा को उनके दीक्षा-गुरु रामकृष्ण मिशन के प्रेजिडेंट भरत महाराज से मिलवाया था.
अपने आखिरी दिनों में, लोगों की नजरों से दूर सुचित्रा रामकृष्ण मिशन को समय दिया करती थीं और बागबानी, पढ़ाई वगैरह में मन लगाकर समय बिताती थीं. उनके बायोग्राफर, रॉय ने एक इंटरव्यू में बताया, 'उन्होंने अपने अनगिनत फैन्स के दिल में अपनी यंग इमेज को ही बनाए रखने के लिए ऐसा किया था. उनके साथ दो फिल्मों में काम कर चुके देवानंद ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि उन्होंने सुचित्रा से मिलने की कोशिश की थी, मगर उनके करीबियों ने ये कहकर मना कर दिया कि 'वो किसी से नहीं मिलतीं.'
आखिरी सफर भी नजरों से दूर
दिसंबर 2013 में लंग इन्फेक्शन की शिकायत के साथ सुचित्रा को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था. जनवरी के पहले हफ्ते में खबरें आईं कि उनकी हालत में सुधार है. लेकिन उनकी तबियत फिर बुरी तरह बिगड़ी और 17 जनवरी 2014 को सुचित्रा का निधन हो गया. उनके ट्रीटमेंट के दौरान भी इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि प्राइवेसी बनी रहे. बंगाल की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बेहद गुपचुप तरीके से उनसे मिलने हॉस्पिटल पहुंचीं.
साउथ कोलकाता के एक श्मशान में जब सुचित्रा की बॉडी को अंतिम संस्कार के लिए लाया गया, तो उनका शव एक ऐसी गाड़ी में था जो सफेद फूलों से ढंकी थी और जिसके शीशे काले थे. रास्ते भर में खड़े लोग, न्यूज़ चैनल के कैमरे और उनके निधन की खबर सुनकर आया कोई भी व्यक्ति नहीं देख सका कि आखिरी समय में सुचित्रा आखिरी दिखती कैसी थीं. गाड़ी से उनका शव एक ताबूत में निकाला गया और उसे ऐसी जगह चिता पर रखा गया जो पब्लिक की नजरों से छिपी हुई थी.
सुचित्रा के बारे में मशहूर है कि उन्होंने एक बार कहा था, 'मैं एक एक्ट्रेस हूं और मुझे सिर्फ स्क्रीन पर ही देखा जाना चाहिए.' अंतिम समय तक उनके परिवार ने भी इस बात का पूरा ध्यान रखा कि सुचित्रा लोगों को वैसी ही याद हैं, जैसा उन्हें स्क्रीन पर देखा गया था!