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क्या है FCAT? जिसके खत्म होने पर मुकेश भट्ट बोले- इंडिया तो चाइना हो गया

ये जंग उस आजादी को लेकर है जो पिछले कई सालों से भारतीय फिल्ममेकर्स को मिल रही थी- अपनी पसंद का कंटेंट दर्शकों तक परोसना. लेकिन हाल ही में सरकार के एक फैसले ने इस आजादी पर गहरी चोट कर दी है

मुकेश भट्ट संग महेश भट्ट मुकेश भट्ट संग महेश भट्ट
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 10:59 AM IST
  • FCAT को लेकर क्यों बवाल
  • फिल्ममेकर्स के लिए क्या है FCAT?
  • FCAT का फिल्मों में योगदान

देश में इस समय फिल्ममेकर्स और सरकार के बीच जंग छिड़ गई है. ये जंग उस आजादी को लेकर है जो पिछले कई सालों से भारतीय फिल्ममेकर्स को मिल रही थी- अपनी पसंद का कंटेंट दर्शकों तक परोसना. लेकिन हाल ही में सरकार के एक फैसले ने इस आजादी पर गहरी चोट कर दी है जिस वजह से तमाम फिल्ममेकर्स नाराज हैं और जबरदस्त विरोध हो रहा है.

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सरकार से क्यों नाराज फिल्ममेकर्स?

ये सारा विरोध Film Certificate Appellate Tribunal (FCAT) के खत्म होने को लेकर है. कुछ दिन पहले कानून मंत्रालय की तरफ से जारी एक आदेश में कहा गया कि अब FCAT को निरस्त किया जा रहा है. फिल्ममेकर्स के लिए उसका निरस्त होना ही उनकी आजादी का छिनना है. लेकिन आखिर क्या है ये FCAT? काम क्या करता है FCAT? फिल्मों में FCAT का योगदान क्या है?

आखिर क्या है ये FCAT?

आसान शब्दों में जो काम CBFC करता है, ऐसा ही कुछ FCAT भी करता दिखता है. वैसे तो फिल्मों को सर्टिफिकेट और पारित करने की सारी पॉवर CBFC के पास होती है, लेकिन कई बार जब फिल्ममेकर CBFC के फैसले से खुश नहीं होते, तो उनके पास FCAT के पास जाने का मौका होता है. वहां भी कई अनुभवी लोगों का पैनल होता है, फिल्म इंडस्ट्री के भी लोग होते हैं. वो सभी फिर उस फिल्म पर चर्चा करते हैं, CBFC के तथ्यों को समझते हैं और फिर कोई निर्णय देते हैं. अब इस वजह से कई बार जो फिल्में CBFC की तरफ से नकार दी जाती हैं, उन्हें FCAT मंजूरी दिलवा देता है. ऐसे में फिल्ममेकर्स के लिए ये बड़ी राहत की बात रहती है.

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सही में फिल्ममेकर्स की आजादी छिन गई?

लेकिन अब जब FCAT नहीं रहेगा, तो क्या फिल्ममेकर्स की फिल्म बनाने की आजादी पूरी तरह छिन जाएगी? जवाब है नहीं. असल में एक नहीं कई सारी बॉडी साथ में काम करती हैं, उसके बाद किसी फिल्म को पारित या फिर नकारा जाता है. Indian Film Certification की तीन बॉडी होती हैं- एग्जामिनिंग कमेटी, रिवाइजिंग कमेटी और FCAT. अब होता ये है कि पहले फिल्ममेकर एग्जामिनिंग कमेटी का दरवाजा खटखटाता है. अगर उनके फैसले से फिल्ममेकर खुश नहीं होता तो फिर रिवाइसिंग कमेटी के पास जाया जाता है. वहां भी अगर बात नहीं बनती, तब जाकर FCAT की बारी आती है. वहीं अगर कोई भी बॉडी फिल्ममेकर को संतुष्ट नहीं कर पाती, तो फिर कोर्ट जाने का रास्ता बनता है.

सिनेमा के लिए काला दिन क्यों?

अब सरकार के नए फैसला से हुआ ये है कि फिल्ममेकर्स के पास समाधान ढूंढने का एक दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया है. अब उनकी CBFC और कोर्ट दोनों पर निर्भरता ज्यादा बढ़ गई है. CBFC ने  मनमानी की तो सीधे कोर्ट ही जाना पड़ेगा, जहां पर टाइम भी ज्यादा जाएगा और फिल्ममेकर्स के संसाधन भी ज्यादा इस्तेमाल में आ जाएंगे. इसी वजह से भारतीय फिल्ममेकर्स केंद्र सरकार के इस फैसले को सिनेमा के लिहाज से काला दिन बता रहे हैं. इसलिए सोशल मीडिया पर तमाम सेलेब्स इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं.

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डायरेक्टर्स क्या कह रहे हैं?

डायरेक्टर मुकेश भट्ट ने इस फैसले की तुलना चीन के तानाशाही रवैये से कर दी है. उनकी नजरों में ये फैसला अब फिल्ममेकर्स की क्रिएटिविटी को हमेशा के लिए खत्म कर देगा. स्कैम 1992 के डायरेक्टर हंसल मेहता ने भी अपने तर्क दे डाले हैं. ट्वीट में कहा गया है- कोर्ट के पास इतना टाइम है कि वो हमारी परेशानियों को सुन पाएगा? FCAT का खत्म होना दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा फैसला लिया ही क्यों गया है? अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा जैसे दूसरे दिग्गज भी मैदान में कूद गए हैं. सभी एक सुर में सरकार के इस फैसले की निंदा कर रहे हैं.

FCAT के बड़े फैसले

वैसे अगर इन तमाम सेलेब्स के बयानों पर नजर डालें, तो समझ आता है कि सही मायनों FCAT ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन किया था. कई ऐसी फिल्में हैं जो दर्शक सिर्फ और सिर्फ FCAT की वजह से देख पाए हैं. फिर चाहे वो लिपस्टिक अंडर माय बुर्का हो या फिर वो अनुराग कश्यप की उड़ता पंजाब. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा और मेकर्स को या तो CBFC के सामने झुकना होगा या फिर उन्हें लगातार कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.
 

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