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'फिल्म तो तरीके से देखने दो यार', स‍िनेमाहाल में हंगामे का कौन जिम्मेदार? मैनेजमेंट या फैन्स

पिछले कुछ समय में सिनेमा थिएटर्स में दर्शकों की मनमानी बढ़ती नजर आई है. हद तो तब हो गई, जब थिएटर के अंदर ही फैंस पटाखे जलाने लगे. हालांकि इससे पहले भी थिएटर्स के अंदर फैंस अपनी मनमानी करते नजर आते रहे हैं. पेश है ये रिपोर्ट...

सलमान खान- मालेगांव थिएटर सलमान खान- मालेगांव थिएटर
नेहा वर्मा
  • मुंबई,
  • 18 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:01 PM IST

सलमान खान और शाहरुख खान जैसे सुपरस्टार की फिल्में जब रिलीज होती हैं, तो थियेटर्स में फैंस का उत्साह भी चरम पर होता है. इस उत्साह में कुछ फैंस कई बार होश भी खो बैठते हैं. टाइगर-3 की रिलीज के बाद मालेगांव के थिएटर में हुई आतिशबाजी इसका लेटेस्ट उदाहरण है. वैसे यह पहली बार नहीं है, जब फैंस की दीवानगी इस हद तक पहुंची है. इससे पहले भी कई ऐसे वाकये हुए हैं, जहां फैंस लिमिट क्रॉस करते नजर आए हैं. इससे थिएटर हॉल के सुरक्षित होने पर सवाल उठने लगे हैं. 

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ये तो हद ही हो गई जब टाइगर 3 के दौरान, जब मालेगांव के थिएटर में पटाखे छोड़े जा रहे थे, तो उस वक्त कोई बड़ी दुर्घटना भी हो सकती थी. थिएटर में आग लग जाती तो दर्शकों की जान-माल का नुकसान होता.  सोशल मीडिया पर एक और वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें टाइगर 3 देखने की होड़ में लाइन में लगे फैंस धक्का-मुक्की कर रहे हैं. ऐसी धक्का-मुक्की किसी को भी चोटिल कर सकती है. गदर के डायरेक्टर अनिल शर्मा एक घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं, उनकी फिल्म की रिलीज के दौरान कई थिएटरों में कांच की बोतल फेंककर मारी गई. साउथ के ट्रेड एनालिस्ट रमेश बाला बताते हैं, फैंस की दीवानगी के मामले में साउथ के फैंस भी कुछ कम नहीं हैं. कई ऐसे मौके रहे हैं, जब ऑडियंस ने अपने फेवरेट थलाइवा को देखने के चक्कर में थिएटर की स्क्रीन पर स्क्रैच कर दिया था. इसके अलावा डांस करते वक्त उनका उत्साह इतना बढ़ जाता था कि वो जिस कुर्सी पर बैठकर फिल्म देखते हैं, उसे ही कई बार तोड़ डालते हैं. गाना बजते ही पॉपकॉर्न उड़ा-उड़ाकर थिएटर को गंदा करना आम बात होती है. कई थिएटर्स में आज भी पैसे फेंकने का चलन बरकरार है. पान-गुटखा, सिगरेट जैसी चीजों को दर्शक छिपाकर थिएटर के अंदर ले जाते हैं और सिल्वर स्क्रीन को देखते हुए धुएं का छल्ला बनाकर अपना टशन जाहिर करते हैं. 

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नारेबाजी और हुड़दंग करता है डिस्टर्ब
सिनेमा स्टूडेंट राहुल हमेशा फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने में यकीन रखते हैं. हालांकि फिल्म को इंजॉय करते वक्त राहुल इस बात से बहुत खीझ जाते हैं, जब उनके आस-पास के लोग हूटिंग करते हैं. अपने एक्सपीरियंस पर राहुल कहते हैं, 'सवाल यह उठता है कि क्या थिएटर हॉल में नारेबाजी करना और चिल्ला चिल्लाकर हूटिंग करना हुड़दंग की कैटिगरी में नहीं आता? कई सिनेमाप्रेमी हैं, जिन्हें फिल्म देखते वक्त किसी तरह की डिस्टर्बेंस पसंद नहीं है, ऐसे में थिएटर में बिना वजह गूंजने वाले नारे इसकी कम्यूनिटी व्यूविंग वाले मजे को भंग करते हैं. कुछ सीन्स पर हूटिंग या क्लैपिंग सही लगती है, लेकिन सीट से उठकर हर गाने पर नाचने लगना, अपने फेवरेट एक्टर का नाम चीख-चीखकर पुकारना कहां से सही है.' बता दें, पिछले साल रिलीज हुई फिल्म द कश्मीर फाइल्स के रिलीज के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए थे, जहां थिएटर में लगातार धार्मिक नारे गूंज रहे थे, जिस वजह से कई ऑडियंस को फिल्म के डायलॉग्स तक सुनाई नहीं दे रहे थे. 

मल्टीप्लेक्स की तुलना में सिंगल थिएटर्स में होते हैं कांड 
क्रिटिक और ट्रेड एक्सपर्ट तरण आदर्श यह सवाल उठाते हुए कहते हैं, 'पिछले कुछ समय में जितनी भी तोड़-फोड़ या प्रॉपर्टी डैमेजिंग वाली घटनाएं रही हैं, ज्यादातर सिंगल थिएटर्स की रही हैं. खासकर साउथ के सिंगल थिएटर जाकर आप देखें, तो उनका हाल बद से बदतर होता जा रहा है. हद तो यह है कि यहां प्रॉपर लेवल पर चेकिंग नहीं होने के कारण दर्शकों का मन बढ़ा होता है. मालेगांव में फायरक्रैकर की घटना अभी लाइमलाइट में आई है, लेकिन यहां के दर्शकों का कहना है कि यहां अक्सर थिएटरों में इस तरह के कारनामे होते हैं. थिएटर के अंदर बिखरे पॉपकॉर्न, टूटी सीट्स इस बात की गवाही देती हैं कि यहां दर्शकों की मनमानी की सुध लेने वाला कोई नहीं है.' 
क्या सिंगल थिएटर में नहीं होती है चेकिंग?
सिंगल थिएटर में लगातार होते इस तरह के हादसे इनकी सिक्यॉरिटी पर सवाल खड़े करते हैं. रुपबनी सिनेमा के सीईओ विशेक चौहान कहते हैं, 'क्राउड उतनी ही लिबर्टी लेती है, जितना मैनेजमेंट वाले लेने देते हैं. सिंगल थिएटर में अक्सर यह होता है कि किसी बड़ी फिल्म के दौरान मौजूद क्राउड राउडी हो जाती है. कई बार मारपीट करने लगती है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सिंगल थिएटर्स में सिक्योरिटी की ढील है. कई जगह महिला स्टाफकर्मी नहीं होने की वजह से साथ में आए कपल्स महिलाओं को सिगरेट व गुटखे का पैकेट दे देते हैं. हद तो तब हो जाती है कि जब दर्शक अपने अंडरवियर के अंदर लाइटर, सिगरेट जैसी चीजों को लेकर प्रवेश कर जाते हैं. मैं सिंगल थिएटर ओनर होने के नाते कई बार झेलता रहा हूं, लेकिन मैनेजमेंट टाइट करने के बाद से मेरे थिएटर में ये इंसीडेंट कम हुए हैं. बात यहां सिंगल या मल्टीप्लेक्स की है नहीं, यहां सारा खेल मैनेजमेंट के रवैये का है. मालेगांव में हुई घटना यह जाहिर करती है कि मैनेजमेंट को बस पैसे कमाने से मतलब है, वो अपनी थिएटर में होने वाली चीजों को लेकर पूरी तरह से लापरवाह है.'

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ट्रेड एक्सपर्ट गिरीश जौहर इसके लिए एक्टर्स को भी जिम्मेदार मानते हैं. गिरीश कहते हैं, 'बॉलीवुड स्टार्स अपनी फिल्म की रिलीज के बाद कई बार थिएटर से वायरल वीडियो को शेयर करते रहते हैं. पठान रिलीज के दौरान भी शाहरुख खान ने थिएटर के अंदर डांस करने वाले दर्शकों के वीडियो शेयर करते हुए उनका शुक्रिया अदा किया था. ऐसे में फैंस भी अपने फेवरेट एक्टर्स का ध्यान अपनी ओर खींचने के मकसद से इस तरह की हरकतें कर गुजरते हैं. भीड़ से अलग दिखने की चाह में कई बार उनके हाथों कुछ ऐसा हो जाता है, जिसका खामियाजा उनके साथ बैठे दर्शकों तक को भुगतना पड़ता है.'

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