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Review: पोती से रेप का बदला लेती हैं अज्जी, झकझोर देती है कहानी

फिल्म में कई मौके हैं जब इसकी कहानी एक इंसान के तौर पर झकझोर देने वाली साबित होती है. खासतौर पर दादी और पोती के साथ हुए दुष्कर्म का बदला लेना.

फिल्म का एक सीन फिल्म का एक सीन
अनुज कुमार शुक्ला
  • ,
  • 24 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 2:19 PM IST

फिल्म का नाम: अज्जी  

डायरेक्टर:  देवाशीष मखीजा

स्टार कास्ट:  सुषमा देशपांडे, स्मिता ताम्बे, सरवानी सूर्यवंशी, सुधीर पांडे, अभिषेक बनर्जी

अवधि: 104  मिनट

सर्टिफिकेट: U

रेटिंग: 3 स्टार

'ब्लैक फ्राइडे' में असिस्टेंट डायरेक्टर, असिस्टेंट स्क्रिप्ट राइटर और रिसर्चर, 'बंटी और बबली' में चीफ असिस्टेंट डायरेक्टर और तांडव कई शॉर्ट फिल्मों के राइटर-डायरेक्टर देवाशीष मखीजा ने अब एक फिल्म डायरेक्ट की है 'अज्जी'. अज्जी का मतलब दादी मां से है. फिल्म के जरिए उन्होंने एक खास संदेश देने की कोशिश की है. फिल्म की समीक्षा क्या है, आप भी पढ़िए...

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कहानी

फिल्म की कहानी एक गरीब परिवार की है. जिसमें दादी मां, उनकी बहू-बेटा और अवयस्क पोती एक छोटे से घर में साथ रहते हैं. इस परिवार में अलग-अलग तरह की घटनाएं घटती रहती हैं. एक वक्त ऐसा भी आता है जब अज्जी की मासूम पोती का बलात्कार होता है. दबंग लोकल नेता का बेटा उसका रेप करता है. भ्रष्टाचार की वजह से इस केस को दबाने की कोशिश होती है. कोई भी गरीब परिवार की बात नहीं सुनता है. केस भी नहीं दर्ज हो पाता क्योंकि आरोपी रसूखदार हैं. गरीब परिवार को डराया-धमकाया जाता है. जब गरीब परिवार को न्याय नहीं मिलता, तब पोती मंदा की दादी यानी अज्जी ठान लेती हैं कि वह बदला लेकर रहेगी. इसके लिए वो बहुत सारी चीजें सीखती हैं. वो उम्रदराज हैं. लेकिन तमाम चीजें सीखने के बाद वो पोती के साथ हुए दुष्कर्म का बदला ले लेती हैं. फिल्म में कई मौके हैं जब इसकी कहानी एक इंसान के तौर पर झकझोर देने वाली साबित होती है. खासतौर पर दादी और पोती के साथ हुए दुष्कर्म का बदला लेना. दादी मां किस तरह बदला लेती है और फिल्म में क्या-क्या घटनाएं होती हैं इसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

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क्यों देखें

फिल्म में टाइटल रोल सुषमा देशपांडे ने किया है. उन्होंने बहुत ही उम्दा अभिनय किया है. कह सकते हैं कि टाइटल रोल के साथ सुषमा ने पूरी तरह से न्याय किया है. फिल्म के बाकी किरदार, जैसे - माता-पिता और घर के दूसरे लोगों का अभिनय भी काफी अच्छा है. इन्स्पेक्टर के रोल में विकास कुमार हैं. और अभिषेक बनर्जी ने नेता के बेटे का रोल किया है. फिल्म के लगभग सभी एक्टर ने अपने काम को बखूबी निभाया है. फिल्म का डायरेक्शन कमाल का है. कैमरा वर्क भी दिलचस्प है. लोकेशन बहुत प्यारी है. दिन और रात के शूट बांधे रखने लायक हैं. फिल्म में सुधीर पांडे का भी अहम रोल है. एक तरीके से देखा जाए तो कास्टिंग, कहानी और संवाद के लिहाज से ये एक दिलचस्प फिल्म है. बैक ग्राउंड स्कोर भी बहुत कमाल का है. इसे को बहुत सारे फिल्म समारोहों में दिखाया जा चुका है जहां फिल्म को काफी तारीफ़ मिली है.

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कमजोर कड़ियां

इसके दर्शक काफी लिमिटेड हैं. हो सकता है फिल्म में बहुत बड़े नाम नहीं होने की वजह से दर्शक थियेटर तक न पहुंचे. इसमें आइटम सॉंग नहीं मिलेगा. आम हिंदी फिल्मों की तरह टिपिकल एंटरटेनमेंट भी नहीं है. ये बाते आम दर्शक मिस करते हैं. इसे डार्क फिल्म कह सकते हैं. इस शेड को देखने वाले काफी कम है. इस लिहाज से एक तबका ही थियेटर में फिल्म देखने जाए.

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बजट

फिल्म का बजट डेढ़ से दो करोड़ के बीच बताया जा रहा है. अगर वार्ड ऑफ़ माउथ सही रहा तो ये फिल्म अपनी ऑडियंस जरूर ढूढ़ लेगी. धीरे-धीरे दर्शक भी फिल्म को देखना पसंद करेंगे. क्योंकि दादी और पोती की कहानी काफी बहुत भावुक और दिलचस्प है.

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