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Dhaakad Review: सही मायनों में एक्शन क्वीन निकलीं कंगना, बस कहानी धोखा दे गई

Dhaakad Review: कंगना रनौत फुल ऑन एक्शन अवतार में आ गई हैं. ऐसा एक्शन होने का दावा है जो आपने स्क्रीन पर पहले नहीं देखा है. लेकिन अब दावों का वक्त खत्म...फिल्म रिलीज हो चुकी है...जानते हैं कैसी बनी है.

Dhaakad Review: Kangana Ranaut Dhaakad Review: Kangana Ranaut
सुधांशु माहेश्वरी
  • नई दिल्ली,
  • 20 मई 2022,
  • अपडेटेड 1:46 PM IST
फिल्म:धाकड़
2.5/5
  • कलाकार : कंगना रनौत, अर्जुन रामपाल
  • निर्देशक :रजनीश घई
  • Dhaakad Review: एक्शन सीन्स ने किया कमाल
  • कंगना रनौत का फिर दमदार अवतार दिखा
  • कहानी की तलाश करना बेईमानी लगेगा

मैं बेस्ट हूं...मुझसे बेहतर कोई नहीं कर सकता. मैं गेमचेंजर साबित हो जाऊंगी.....ये कंगना रनौत हैं. हमेशा कुछ साबित करने की आग...कुछ अलग करने का जुनून और  इतिहास के पन्नों में खुद को दर्ज करवाने वाली एक ललक. कंगना की कोई भी बड़ी फिल्म उठा लीजिए..उनकी कोशिश हमेशा इसी दिशा में दिखी है. क्वीन ने वो कर दिखाया था....थलाइवी में फिर सब को हैरत में डाला और अब बारी है धाकड़ की. एक्शन फिल्म है, एक्ट्रेस कर रही है, लीड रोल में है. मतलब फिर कुछ नया है, ऐसा जो आपने सक्रीन पर बहुत कम देखा है. अब धाकड़ के साथ कंगना इतिहास बना रही हैं या इसी में गुम हो जाएंगी, आइए जानते हैं.

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कहानी

यूरोप से लेकर भारत तक मानव तस्करी का एक बड़ा बिजनेस चल रहा है. ऐसा बिजनेस जो बस बढ़ता ही जा रहा है. इस पूरे बिजनेस की कमान रुद्रवीर (अर्जुन रामपाल) ने संभाल रखी है, जो वैसे  कोयले बेचने का काम करता है, लेकिन मेन धंधा जिस्मफरोशी का करता है. उसकी एक साथी भी है रोहिणी (दिव्या दत्ता) जो इस पूरे बिजनेस का हिसाब देखती है. लड़कियों को लाने का काम भी कर रही है. बस ये कांड है और इसका पर्दाफाश करने के लिए भारत की सीक्रेट एजेंसी रॉ सक्रिय हो गई है.

मिशन को लीड कर रही है अग्नि उर्फ ड्रैगन गर्ल (कंगना रनौत). अग्नि एक माहिर एजेंट है जो तलवारबाजी से लेकर गोलीबारी तक, हर मामले में एक्सपर्ट बन चुकी है. कहानी आपको यही बताएगी कि उससे बेहतर कोई नहीं. अग्नि के ऊपर एक बॉस (सास्वत चटर्जी) भी है जो उसे ऑर्डर दे रहा है. तो किस तरीके से इस मिशन को अंजाम दिया जाता है, अग्नि के सामने क्या चुनौतियां आती हैं, यही धाकड़ की कहानी है.

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नो स्टोरी ओनली एक्शन

एक्शन फिल्म किसे कहते हैं....वो जिसमें एक्शन है....खूब सारी मार-धाड़ है. मोटा-मोटा तो मामला यही रहता है. लेकिन क्या अकेले एक्शन के दम पर कोई फिल्म चल सकती है? जवाब होगा नहीं. क्या धाकड़ के मेकर्स इस को बात समझ पाए? जवाब फिर से नहीं. धाकड़ की समीक्षा करने से पहले मेकर्स का मन टटोलना जरूरी हो जाता है. इस फिल्म को बनाने का उदेश्य क्या था? पहला कंगना रनौत को बतौर एक्शन हीरो स्थापित करना. दूसरा ये परसेप्शन क्रिएट करना कि एक लीड एक्ट्रेस भी एक्शन कर सकती है. अब क्योंकि मेकर्स का फोकस इन्हीं दो पहलुओं पर रहा इसलिए धाकड़ में कहानी की तलाश करना भी आपको बेईमानी लग सकता है. कहने को तो एक मुद्दा छेड़ा है, लेकिन वो तो सिर्फ एक सहारा है जिसके जरिए कंगना के एक्शन सीन्स के लिए स्टेज सेट किया जा रहा है. इसलिए नो कहानी, ओनली एक्शन.

हॉलीवुड वाला एक्शन दिया गया

अब बात एक्शन सीन्स की करें तो वाह!! कहानी ना होने या ना के बराबर होने के बावजूद भी अगर बंदा पूरी फिल्म देख रहा है. मतलब कोई एक पहलू तो कमाल का रहा है. धाकड़ में भी है. उसका एक्शन, बेमिसाल एक्शन. ऐसा एक्शन जो हम हॉलीवुड फिल्मों में देखते हैं. कोई हिचक नहीं है ये कहने में कि एक्शन सीन्स ने गर्दा मचाया है. जिन्होंने किया उन पर तो चर्च होगी, लेकिन जिनकी देखरेख में हुआ उनकी तारीफ पहले बनती है. धाकड़ के एक्शन डायरेक्टर परवेज शेख हैं जिन्होंने अपने डिमार्टमेंट को बखूबी संभाला है. उनका साथ कई दूसरे एक्शन कॉर्डिनेटर्स ने भी दिया है, जिस वजह से हर एक्शन सीन स्क्रीन पर गजब का लगा है.

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कंगना ने फिर कर दिखाया!

वैसे ये एक्शन सीन्स स्क्रीन पर शानदार इसलिए दिखे क्योंकि कंगना रनौत और अर्जुन रामपाल ने उन्हें ठीक तरीके से एग्जीक्यूट किया. हर रोल में खुद को आसानी से ढालने वाली कंगना रनौत ने फिर कुछ नया तो किया है. इससे पहले किसी दूसरी बॉलीवुड एक्ट्रेस को इस दर्जे का एक्शन करते नहीं देखा. जिस आसानी से वे ऐसा खतरनाक एक्शन कर गई हैं, इस बात के लिए पूरे नंबर बनते हैं. विलेन वाले रोल में अर्जुन रामपाल खूंखार कहे जाएंगे. उनका बोलने का अंदाज जरूर वीयर्ड सा लगा, इतना बनावटी अंदाज में क्यों बोल रहे थे, वो भी समझ से परे रहा, लेकिन एक्शन और खौफ पैदा करने के मामले में वे किसी से पीछे नहीं दिखे. फिल्म की लेडी विलेन दिव्या दत्ता भी अपने रोल में छा गई हैं. उनका किरदार इसलिए ज्यादा सही लगा क्योंकि उन्हें डायलॉग दमदार दिए गए हैं. सपोर्टिंग रोल में सास्वत चटर्जी, शारिब हाशमी का काम भी ठीक ठाक रहा है.

सब अच्छा....फिर कहां फेल हो गए?

अच्छे एक्शन और दमदार एक्टिंग को जस्टिफाई करने के लिए मजबूत निर्देशन की दरकार थी. इस मामले में धाकड़ फिर कमजोर हुई है. धाकड़ का डायरेक्शन रजनीश घई ने किया है. उन्होंने शुरुआत तो ठीक की लेकिन कह सकते हैं एक नींव तो मजबूत रखी गई, जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी डायरेक्शन में बिखराव साफ देखने को मिला. पोस्ट इंटरवल में तो किसी तरीके से उन्होंने कहानी को सिर्फ क्लाइमेक्स तक खींचा है जिससे एंड में एक बड़ा धमाका किया जा सके. लेकिन ओवरऑल इमपैक्ट फीका रहा है.

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ऐसे में अब धाकड़ की रेटिंग करना अपने आप में थोड़ा टेढ़ा काम है. दमदार एक्शन और एक्टिंग के लिए फुल नंबर. लेकिन नो कहानी और कमजोर डायरेक्शन से निराश. इतना ही कह सकते हैं कि एक्शन के मामले में इस फिल्म का जवाब नहीं और कहानी. सॉरी कहानी तो है ही नहीं.

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