
कार्तिक आर्यन....शानदार कॉमिक टाइमिंग....बेहतरीन अभिनेता और एक जिंदादिल इंसान. फिल्मों पर नजर दौड़ाइए, कार्तिक की यही इमेज आपके भी मन में आ जाएगी. इस फॉर्मूले से सफल भी हो लिए हैं, ऐसे में करियर भी बुलंदियों को छू रहा है. लेकिन अब पहला रिस्क ले लिया गया है. कॉमिक टाइमिंग छोड़िए, रोमांस छोड़िए, कार्तिक सीरियस किरदार में आ गए हैं. हंसी मजाक की कोई जगह नहीं है, सिर्फ नेचुरल और गंभीर एक्टिंग करनी है. फिल्म का नाम है धमाका, डायरेक्टर हैं राम माधवानी. कार्तिक के लिए रिस्क फायदे का सौदा रहा या नहीं, हम बताते हैं.
कहानी
न्यूज की दुनिया का सबसे बड़ा पत्रकार बन चुका है अर्जुन पाठक ( कार्तिक आर्यन). एंकरिंग करता है, लोगों को सच बताने दावा करता है और अपने चैनल को टीआरपी के मामले में हमेशा सबसे आगे रखता है. लेकिन एक हादसा और एंकरिंग छोड़ उसे रेडियो जॉकी की नौकरी करनी पड़ती है. अब मन में कुछ बड़ा करने की ठान रखी है. जिंदगी पटरी पर नहीं चल रही है, पत्नी सौम्या पाठक ( मृणाल ठाकुर) से डिवोर्स हो चुका है ( क्यों हुआ फिल्म देख पता चल जाएगा). अब उस फेम को वापस पाने का एक ही तरीका है, कोई बड़ा 'धमाका'.
अब अर्जुन की जिंदगी में वो धमाका होता है जब उसे अपने रेडियो के लाइव शो के दौरान एक कॉल आता है. वो कॉल अर्जुन को अपने करियर का सबसे बड़ा मौका दे देता है. वो मौका है एक बम धमाके की खबर. अर्जुन को लाइव शो पर एक शख्स बताता है कि वो धमाका करने वाला है. ऐसा होता भी है और अर्जुन एक ट्रैप में फंसता चला जाता है.
सीन कुछ ऐसा है- Exclusive के चक्कर में अर्जुन इस खबर को अपने दम पर चलाना चाहता है, चैनल की हरी झंडी मिल गई है और जमीन से रिपोर्टिंग कर रही है उसकी पत्नी सौम्या पाठक. अब एक तरफ अर्जुन को चैनल के मुताबिक उस 'कॉलर' से नेगोशिएट करना है. दूसरी तरफ धमाके वाले ब्रिज पर कई लोगों की जान खतरे में है, उसकी पत्नी भी मौत के काफी करीब है. मंत्री के आने में जितनी देर, उतने धमाके. मतलब चारों तरफ से अर्जुन घिरा हुआ है. लोगों की जान बचानी है, चैनल की टीआरपी को बढ़ाना है, खुद के करियर को पटरी पर लाना है, खोए हुए प्यार को वापस पाना है. अब ये सब हो पाता है या नहीं, धमाका देख पता चल जाएगा.
फुल स्पीड में दौड़ी फिल्म
साल 2013 में द टेरर लाइव नाम की कोरियन फिल्म आई थी. बढ़िया रिव्यू मिले थे और कई अवॉर्ड भी जीत लिए. इसी वजह से डायरेक्टर राम माधवानी ने कार्तिक आर्यन संग उस साउथ कोरियन फिल्म का हिंदी रीमेक बनाया. अब रीमेक है लिहाजा कहानी में कोई बदलाव नहीं किया गया है. कुछ बॉलीवुड मसाले डाल दिए गए हैं, लेकिन प्लॉट वहीं है. ऐसे में कहानी को लेकर कोई शिकायत नहीं की जा सकती. काफी क्रिस्प रखा गया है और सबकुछ तेजी से होता रहता है. सिर्फ 103 मिनट में पूरी फिल्म निपटा दी गई है. गाने रखने का कोई स्कोप नहीं है और सिर्फ और सिर्फ ड्रामा देखने को मिलता है.
मेकर्स की सबसे बड़ी चूक
लेकिन इस अच्छी कहानी में कुछ ऐसी चूक हो गई है जिन्हें आप नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे. बेसिक सा फंडा है. चाहे फिल्म हो या फिर कोई खबर. आप अपने दर्शकों को 'क्या, क्यों, कहा, कब और कैसे' का जवाब जरूर देते हैं. पत्रकारिता की भाषा में इसे 5W 1H कहते हैं. लेकिन धमाका देखने के बाद एक सवाल आप सभी के मन में आएगा- ये सब आखिर हुआ 'कैसे'. पूरी फिल्म खत्म हो जाएगी लेकिन मेकर्स इस प्वाइंट को मिस गए हैं. आपने हमे शुरुआत में बताया कि यहां बम लगा है, वहां बम लगा है. लेकिन कब लगा, कैसे लगा, क्या रणनीति रही. ये सब नहीं बताया. मतलब फिल्म का एक सेगमेंट पूरी तरह अंधेरे में रह गया. सस्पेंस होता तो एंड में जाकर खुल जाता, लेकिन धमाका में वैसा भी कुछ नहीं हुआ है.
कार्तिक का एक्टिंग धमाका
मेकर्स की चूक बड़ी है, लेकिन कार्तिक की एक्टिंग बेहतरीन है. शुरुआत के कुछ मिनटों बाद ऐसा लग रहा था कि कार्तिक एक पत्रकार के रोल में नहीं ढल पाएंगे. उनका अलग सा ही स्वैग है, तो ऐसे किरदार में उन्हें देखना अजीब था. लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती गई, कार्तिक ही ड्राइविंग सीट पर बैठ लिए और पूरी फिल्म अपने कंधों पर आगे ले गए. उनके किरदार की सबसे बड़ी चुनौती उस कशमकश को दिखाना था जिससे उनका किरदार जूझ रहा था. वो उसमें कामयाब हो गए, इसलिए किरदार भी हिट रहा.
मृणाल ने भी अच्छा काम किया है. छोटा रोल है, लेकिन अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहीं. रिपोर्टर का किरदार बड़ी संजीदगी से निभा गई हैं. न्यूजरूम के कुछ और किरदार भी हैं जिन्होंने मेकर्स की चूक को कंपेंसेट किया है. अर्जुन की बॉस बनीं अमृता सुभाष भी अपने किरदार में फिट बैठी हैं. उन्हें जो काम दिया गया, वो कर गईं. एंटी टेरर स्कॉड के इंस्पेक्टर बने विकास कुमार भी सही लगे हैं. उनके किरदार को थोड़ा सीमित कर दिया लेकिन इसमें उनकी गलती नहीं कही जा सकती.
वास्तविकता से इतना दूर कैसे!
लेकिन जिनकी गलती है, उन्होंने और भी पहलू पर निराश किया है. डायरेक्टर राम माधवानी ने नीरजा जैसी फिल्म दर्शकों को दी है. उन्हें इमोशन और ड्रामा के साथ अच्छे से खेलना आता है. धमाका में भी उन्होंने वहीं काम किया, बस कई जगह वास्तविकता से दूर हो गए. पहला उदाहरण- आतंकी हमले के बीच न्यूजरूम की बॉस इंसपेक्टर से कह रही है कि हम आपकी बात नहीं मानेंगे. असल में ऐसा हो तो सीधे जेल जाना पड़ जाए. दूसरा उदाहरण- लाइव चैनल पर लाइव रिपोर्टिंग हो रही है और एंकर ग्राउंड पर खड़ी अपनी पत्नी से बात करने में लग जाते हैं. ऐसा हुआ है, आप जब देखेंगे, अजीब लगेगा.
मतलब निचोड़ यही है, कार्तिक का एक्सपेरिमेंट पास हो गया है. उन्होंने अपनी एक्टिंग का धमाका कर दिया है. लेकिन मेकर्स ने अपने स्तर चूक की है. उन्हें नजरअंदाज कर सिर्फ कार्तिक के लिए एक बार फिल्म देखी जा सकती है.