
Double XL Review: बात में लोगों को हमेशा वजन चाहिए, मगर मजाल है लोगों को वजनदार लोग पसंद आए. आज से कुछ दशक पहले बॉलीवुड में वजनदार एक्टर्स को एक कॉमिक प्रॉप की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है. टुनटुन जैसी एक्ट्रेसेज को एक ऑब्जेक्ट की तरह परोस लोगों को एंटरटेन किया गया है. शायद यही मानसिकता की वजह से हम अक्सर मोटा, मोटी शब्द को सहजता से इस्तेमाल करते आए हैं. हालांकि समय के साथ मेकर्स और बॉलीवुड भी बदला है, अब बॉडी शेमिंग पर सेंसिबल तरीके से फिल्में बननी शुरू हुई हैं. एक्ट्रेसेज भी इस पर खुलकर बोलने लगी हैं.
बॉडी शेमिंग पर समय-समय पर फिल्में बनती रही हैं. दम लगा के हईशा और भी कई ऐसी फिल्में हैं, जो आपको सीख देती है कि खुद को एक्सेप्ट करना कितना जरूरी है. हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा की डबल एक्सएल भी कहीं न कहीं इस मुद्दे पर बात करती है. फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह आपको दुनिया से नहीं बल्कि खुद के अंदर छिपी कुंठाओं से भी लड़ने की सीख देती है. फिल्म ओवरऑल कैसी रही, यह जानने के लिए पढ़े ये रिव्यू...
कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है मेरठ की रहने वाली राजश्री त्रिवेदी(हुमा कुरैशी) के सपने से, जहां राजश्री शिखर धवन संग डांस करती हैं, वहीं बीच में सपने को आकर तोड़ने वाली मां (अल्का कौशल) की परेशानी है कि बेटी 30 की हो चुकी है लेकिन अब तक शादी के लिए लड़का नहीं मिला है, जिसका मूल कारण वो अपनी बेटी का मोटा होना मानती हैं. हालांकि राजश्री के सपने अलग हैं, उसे क्रिकेट रिप्रेजेंटेटर बनना है. वहीं दूसरी ओर संपन्न परिवार से ताल्लुक रखती सायरा खन्ना फैशन डिजाइनर बनने का सपना देखती हैं. हालांकि अपने वजन की वजह से उसे भी कई ताने सुनने को मिलते रहे हैं. इन दोनों को ही सोसायटी उनके प्रोफेशन के लिए उन्हें मिस-फिट मानती है. तमाम तरह के रिजेक्शन और ताने झेलने के बाद संयोगवश इनकी मुलाकात होती है और वहीं से कहानी लेती है नया मोड़. कैसे राजश्री और सायरा एक दूसरे का सपोर्टर बन अपने सपनों को पूरा करते हैं और दिल्ली, मेरठ से होते हुए लंदन की जर्नी में जोई(जहीर इकबाल) और श्रीकांत(महत राघवेंद्र) कैसे उनकी लाइफ में ट्वीस्ट ऐंड टर्न लेकर आते हैं, ये सब जानने के लिए आपको थिएटर की ओर रूख करना होगा.
डायरेक्शन
फिल्म हेलमेट जैसी फिल्म के बाद डबल एक्सएल के जरिए डायरेक्टर सतराम रमाणी इस फिल्म को लेकर आए हैं. इस कॉन्सेप्ट के मूल कर्ता-धर्ता और फिल्म के राइटर मुदस्सर अजीज ने अपनी कहानी के हिसाब से परफेक्ट कास्टिंग की है. आज के दौर के लिए फिल्म का सब्जेक्ट महत्वपूर्ण है, लेकिन ट्रीटमेंट के मामले में फिल्म में कुछ लूप-होल्स हैं. एक सेंसेटिव टॉपिक पर एंटरटेनमेंट का तड़का फिल्म का मजबूत पक्ष है लेकिन कई बार सीन्स में ओवर डू होने की वजह से मेसेज की संजीदगी पर असर पड़ने लगता है. खासकर फिल्म के कुछ डायलॉग्स जैसे 'किससे पूछ कर देखे हैं सपने', 'कुछ लोगों ने मिलकर एक स्टैंडर्ड सेट किया और न जाने कब हमने उसको नॉर्मल मान लिया', पर आप ताली मारने को मजबूर होते हैं.
कुछेक सीन्स बेहद ही इमोशनल होते हैं. मसलन जब राजश्री के टैलेंट को बिना परखे उनकी बॉडी साइज देखकर रिजेक्ट कर दिया जाता, उसके बाद जो उसकी चीख होती है, वो आपको प्रोवोक करती है. टैलेंट से ज्यादा अपीयरेंस पर तवज्जों देने वाले प्रोफेशन पर कटाक्ष करती यह फिल्म फर्स्ट हाफ में थोड़ी खींची सी लगती है. कहानी को स्टैबलिश करने के चक्कर में इसकी एडिट पर ध्यान नहीं दिया गया. सेकेंड हाफ में फिल्म रफ्तार पकड़ती है और इसी बीच कुछ ऐसे सीन्स या गेस्ट एंट्री है, जो आपको सरप्राइज करते हैं. इस कहानी की एक और खास बात यह है कि समाज में खुद को मिसफिट से फिट कराने की जद्दोजहद के साथ-साथ यह अंदर की छिपी कुंठाओं से भी लड़ने की बात कहती है.
टेक्निकल
फिल्म के सिनेमैटोग्राफर मिलिंद जोग का काम उम्दा है. लंदन का रिप्रेजेंटेशन फ्रेश अहसास दिलाता है. ओवरऑल स्क्रीन पर फिल्म खूबसूरत लगती है. एडिटिंग के मामले में फिल्म पर बहुत काम होना चाहिए. एडिटर अभिषेक आनंद फिल्म के कुछ अनवांटेड व ड्रैग्ड सीन्स पर काम कर इसे क्रिस्प बना सकते थे. म्यूजिक ओवरऑल अच्छी रही है. खासकर आखिरी के सीन में कविता सेठ का एक गाना 'की जाना' कानों को सुखद एहसास देता है.
एक्टिंग
कंधे पर फिल्म का भार लिए एक्ट्रेस हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा की कास्टिंग पर ही फिल्म आधी जंग जीत जाती है. फिल्म के लिए दोनों ही एक्ट्रेसेज ने अपने वजन बढ़ाए थे. हालांकि इस बात में दो राय नहीं है कि फिल्म की आखिर सीन्स में हुए रैंप वॉक में शो टॉपर रहीं हुमा इस फिल्म की भी शोज स्टॉपर होती हैं. एक मीडिल क्लास लड़की और उसकी परेशानियों को हुमा ने अपनी एक्टिंग की जरिए बखुबी उकेरा है. वहीं सोनाक्षी सिन्हा एक अर्बन हाइ क्लास के अवतार में होने के बावजूद आपकी सहानुभूति नहीं जीत पाती हैं. हालांकि उनकी एक्टिंग डिसेंट रही है. वहीं साउथ फिल्मों से आए महत रघुवंशी एक प्रोमिसिंग एक्टर के रूप में आपका दिल जीत जाते हैं. जहीर इकबाल का किरदार फिल्म में फ्लर्टी कूल लड़के का रहा है लेकिन कई बार उनकी ओवरएक्टिंग आपको इरीटेट करती है. मां के रूप में चिढ़चिढ़ी चिंता जाहिर करतीं अल्का कौशल में आप हर वो मिडिल क्लास मॉम को देखते हैं, जो अपने बच्चों के लिए दिनरात परेशान रहती हैं. एक लंबे समय पर शुभा खोटे को स्क्रीन पर देखकर आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आ जाएगी.
क्यों देखें
एक अच्छी नीयत से सेंसेटिव टॉपिक पर बनी इस फिल्म को एक मौका जरूर दिया जा सकता है. कुछेक सीन्स को छोड़कर फिल्म आपको कहीं से बोर नहीं करेगी. एंटरटेनमेंट के साथ-साथ आप एक मेसेज तो जरूर अपने घर लेकर जाएंगे.