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Mere Pyare Prime minister Review: दिल को छू जाती है यह फिल्म

खुले में शौच के विषय पर हलका के अलावा अक्षय कुमार स्टारर टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसी फ़िल्में बन चुकी हैं. लेकिन मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर में खुले में शौच की वजह से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की कहानी को संजीदा तरीके से दिखाया गया है.

मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 5:57 PM IST
फिल्म:Mere Pyare Primeminister
3/5
  • कलाकार :
  • निर्देशक :Rakesh Om Prakash Mehra

भारत में आज लाखों लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं. खुले में शौच की वजह से महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है. देश में जितनी भी दुष्कर्म की घटनाएं होती है उसमें करीब आधी खुले में शौच के लिए घर से बाहर निकली महिलाओं या लड़कियों के साथ होती हैं. यह एक बड़ा मुद्दा है. इस विषय को राकेश ओमप्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी मेरे प्यारे प्राइम मिमिस्टर बेहतरीन तरीके से उठाती है.

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खुले में शौच के विषय पर हलका के अलावा अक्षय कुमार स्टारर टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसी फ़िल्में बन चुकी हैं. लेकिन मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर में खुले में शौच की वजह से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध की कहानी को संजीदा तरीके से दिखाया गया है. फिल्म पूरी तरह से महिलाओं की समस्याओं पर फोकस है. फिल्म में मां और बेटे के रिश्ते को भी निखारा गया है.

क्या है कहानी?

फिल्म की कहानी मुंबई के एक स्लम एरिया पर आधारित है जहां टॉयलेट ही नहीं है. मजबूरी में बस्ती के लोगों को रेल की पटरी या फिर बड़े पाइप पर शौच करना पड़ता है. फिल्म में सरगम का किरदार निभा रहीं अंजली पाटिल के साथ उस वक्त दुष्कर्म होता है जब वह खुले में शौच करके वापस लौट रही होती हैं. यह घटना मां और उसके मासूम बेटे को झकझोर कर रख देती है. घटना के बाद बेटा कन्हैया उर्फ कान्हू (ओम कनौजिया) कुछ बांस की बल्लियां और साड़ी के सहारे एक अस्थायी टॉयलेट बनाता है. लेकिन, वह बारिश में उखड़ जाता है.

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बेटा ठान लेता है कि चाहे जो भी हो जाए वह अपनी मां के लिए टॉयलेट बनाकर ही रहेगा. वह अपने दोस्तों के साथ पहले मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफिस और बाद में प्रधानमंत्री से मिलने के लिए दिल्ली आता है. कन्हैया अपनी मां के लिए टॉयलेट बनवाने को लेकर किस तरह संघर्ष करता है यह जानने के लिए फिल्म देखना होगा.

इंटरवल के पहले तक फिल्म की कहानी बांधकर रखती है. लेकिन सेकेंड हाफ के बाद थोड़ा स्लो हो जाती है. फिल्म का निर्देशन अच्छा है. इंटरवल के बाद स्क्रिप्ट की कसावट ढीली नजर आती है. फिल्म में स्लम एरिया के रियल लोकेशन को दिखाया गया है. एक्ट्रेस अंजली पाटिल ने मां के किरदार के साथ न्याय किया है. वहीं, ओम कनौजिया ने भी जबरदस्त एक्टिंग की है. इसका बैकग्राउंट स्कोर बहुत ही अच्छा है.

सिंगर रेखा भारद्वाज की आवाज में कान्हा रे गाना कानों को सुकून देने वाला है. फिल्म में इमोशंस है तो सिचुएशनल कॉमेडी भी है. मां के लिए बेटे का प्यार और समर्पण बखूबी दिखता है. फिल्म का एक सीन जब बेटा बड़ी मेहनत करके अस्थाई टॉयलेट बनाता है तो यह सब देखकर उसकी मां बहुत भावुक हो जाती है, यह फिल्म का बहुत ही इमोशनल सीन है. कैमरा वर्क भी अच्छा नजर आता है.

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फिल्म में मकरंद देशपांडेय, अतुल कुलकर्णी जैसे शानदार एक्टर भी हैं जिन्होंने बढ़िया काम किया है. फिल्म में कन्हैया के अलावा और भी चाइल्ड आर्टिस्ट है जिनके चुटकीले डायलॉग चेहरे पर मुस्कान ला देते हैं. अंजली पाटिल, ओम कनौजिया के अलावा सभी एक्टर्स के सीन कम है. बावजूद वह अपनी एक्टिंग का असर छोड़ते हैं.

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