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Film Review: हॉलीवुड की कॉपी है 'फोर्स 2', देखने के लिए चाहिए दम

देश पर मर-मिटने का जज्बा और इसके नाम पर खूब सारा एक्शन, इस पर कई फिल्में बनीं और हिट हुई हैं. क्या इसी थीम पर बनी 'फोर्स 2' में हिट होने का फॉर्मूला पूरा है?  आइए रिव्यू में जानते हैं...

'फोर्स 2' 'फोर्स 2'
मेधा चावला/सिद्धार्थ हुसैन
  • मुंबई,
  • 18 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 10:36 AM IST

नाम: फोर्स 2
डायरेक्टर: अभिनय देव
स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, सोनाक्षी सिन्हा, ताहिर राज भसीन, पारस अरोड़ा, नरेंद्र झा
अवधि: 2 घंटा 07 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2.5 स्टार

जॉन अब्राहम और सोनाक्षी सिन्हा की 'फोर्स 2' उस वक्त रिलीज हुई है, जब दर्शक ये सोच रहे हैं कि 1000 और 500 रुपये के पुराने बंद हुए नोट कैसे वापस किए जाएं.

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सरकार सही है या गलत, ऐसे सवालों से घिरे हुए लोग फिल्म देखने के कितने मूड में हैं ये अंदाज़ा लगाना कोई बड़ी बात नहीं है. इसका असर फिल्म की ओपनिंग पर जरूर पड़ेगा. हालांकि अच्छी फिल्म फिर भी दर्शकों को खींच ही ले जाती है. वहीं, पिट गई तो सारा ब्लेम नोट बंदी पर आ जाएगा.

कैसा है कहानी का सस्पेंस
'फोर्स 2' एक्शन थ्रिलर है जिसका पहले पार्ट 'फोर्स' से कोई मतलब नहीं है सिवाय इसके कि यहां भी जॉन बिना वर्दी के पुलिस ऑफि‍सर हैं और रॉ से जुड़ी हैं सोनाक्षी सिन्हा. चीन में किस तरह एक-एक कर रॉ एजेंट मारे जाते हैं और उनमें से एक जॉन यानी एसीपी यशवर्धन के बचपन का दोस्त होता है और फिर दोस्त की मौत का बदला लेने के लिए जॉन अब्राहम, सोनाक्षी सिन्हा के साथ बुडापेस्ट जाते हैं और साजिश रचने वाले को पकड़ने में कामयाब होते हैं.

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इंटरवल के बाद सुस्त रफ्तार
फिल्म की शुरुआत हॉलीवुड एक्शन फिल्मों की तरह है. जरा सा भी सोचने का मौका नहीं देती. जबरदस्त एक्शन और बुडापेस्ट की लोकेशन, दिलचस्प लगती हैं लेकिन इंटरवल आते-आते लगने लगता है इस फिल्म में सिवाय एक्शन के कुछ भी नहीं है. इंटरवल के बाद क्या होनेवाला है, पहले से ही अंदाजा हो जाता है और साधारण क्लाइमैक्स के साथ फिल्म खत्म होती है.

कंफर्ट जोन में सभी सितारे
जॉन अब्राहम का एक सा अभिनय, ढेर सारा एक्शन और घिसीपिटी कहानी इस फिल्म की कमजोर कड़ियां हैं. जॉन अब्राहम को अलग कि‍स्म की कहानियों पर ध्यान देना चाहिए वरना हर फिल्म में वो 20-25 गुंडों के साथ मार धड़ करते ही दिख रहे हैं. एक सीन बिना शर्ट के और अंत में विलेन को हराने के अलावा उनके पास कोई काम नहीं है. कंफर्ट जोन किसी भी कलाकार के लिए अच्छा नहीं होता.

निर्देशक अभिनव देव ने कहानी से ज्यादा फोकस तकनीक पर रखा है. ये सब इंटरवल तक बर्दाश्त होता है लेकिन इसके बाद फिल्म बोझिल हो जाती है.

विलेन ताहिर भसीन की य‍ह दूसरी फिल्म है और ऐसा लगता है कि वह अपनी पहली फिल्म 'मर्दानी' का किरदार निभा रहे हैं. उनका अभिनय बुरा नहीं है लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जिसे बहुत अच्छा बोला जाए. वहीं, सोनाक्षी सिन्हा औसत हैं.

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काम अच्छा है लेकिन हॉलीवुड की कॉपी लगती है
इमरे जुहाज और मोहना क्रिश्ना का कैमरा वर्क लाजवाब है. परवेज़ शेख और जसमीत हीन की लेखनी पर एक्शन हावी होता है. अमिताभ शुक्ला की एडिटिंग अच्छी है लेकिन कुल मिलाकर 'फोर्स 2' हॉलीवुड की एक्शन पैक फिल्मों की नकल लगती है.

 

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