
कहते हैं किसी करीबी को खोना मुश्किल होता है. लेकिन अगर वो करीबी आपकी मां हो तो दर्द कई गुना बढ़ जाता है. अमिताभ बच्चन और रश्मिका मंदाना की फिल्म में इसी दर्द को दिखाया गया है.
ये कहानी भल्ला परिवार की है जिनकी घर पर सबकी प्यारी गायत्री भल्ला का देहांत हो गया है. गायत्री जिंदादिल इंसान थीं, जो अपने बच्चों और पति से बेहद प्यार करती थीं. लेकिन जिंदगीभर इन बच्चों का ख्याल उन्होंने रखा वो उनके मरने पर उनके साथ तो क्या उनका फोन उठाने के लिए भी नहीं थे. बिना किसी से कुछ कहे, ना किसी से कोई बात किये गायत्री अचानक सभी को छोड़कर चली गईं.
पीछे छोड़ गईं अपने बच्चों के लिए मलाल कि हमने क्यों अपनी मां का कॉल नहीं उठाया, क्यों उनके साथ और समय नही बिताया. पीछे छोड़ गईं एक नाराज पति जिसने गायत्री से प्यार तो बहुत किया लेकिन उनसे कभी नहीं पूछा कि वो मरने के बाद क्या चाहती हैं. कैसे मुक्ति पाना चाहती हैं. जिंदगी के आखिरी मोड़ पर रहते हुए उन्हें क्या चाहिए.
डायरेक्टर विकास बहल की इस फिल्म की कहानी जब लिखी गयी होगी तो पन्ने जरूर भारी हो गए होंगे, लेकिन दिल के उस भारीपन को पर्दे पर वो इतने अच्छे तरीके से नहीं उकेर पाए कि आपके दिल पर चोट लगे. गुडबाय में को इमोशनल पल हैं जिनमें से कुछ ही आपके मन में जाकर लगते हैं और आपको दर्द महसूस होता है. फिल्म में कुछ हल्के और फनी पल भी हैं. उनका भी यही हाल है जो सीरियस पलों के होता है.
परफॉरमेंस की बात करें तो गुडबाय में एक से बढ़कर एक एक्टर को लिया गया है. पुष्पा एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना की ये पहली फिल्म है. हम सभी को पता है कि रश्मिका बढ़िया एक्ट्रेस हैं. लेकिन यहां उन्होंने कुछ भी खास नहीं किया है. अमिताभ बच्चन, बॉलीवुड के महानायक हैं. अपने परेशान और गुस्सा बाप का रोल उन्होंने अच्छे से निभाया है. उनका अपनी मरी हुई बीवी से बात करना सबसे दुखभरा था, लेकिन फिर भी इस सीन का असर आपके ऊपर कम ही होता है. पवेल गुलाटी के किरदार का भी यही हाल है. उनका ज्यादातर काम बेसिक है, लेकिन उनका एक सीन है जो सही में आपके दिल तक पहुंचता है. नीना गुप्ता, सुनील ग्रोवर की परफॉरमेंस अच्छी है. दोनों जितनी देर स्क्रीन पर थे अच्छा लगा.
गुडबाय बहुत बिखरी हुई फिल्म है. किसी को खो देने के दर्द का एहसास इस फिल्म को करवाना था, लेकिन इमोशन्स के ही मामले में ये फ़िल्म फीकी निकली.