
हिंसा और नफरत से कभी किसी का भला नहीं होता, होता है तो बस नुकसान. सत्य व्यास की लोकप्रिय उपन्यास 'चौरासी' से प्रेरित वेब सीरीज ग्रहण डिज्नी-हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है. सीरीज 1984 के बोकारो सिख दंगों के बीच मनु-ऋषि की प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है.
कहानी भारत के दो अलग-अलग समय की घटनाओं को साथ लेकर चलती है जिसकी कड़ी एक दूसरे से जुड़ी हुई है. सीरीज में एक कहानी 2016 की तो दूसरी 1984 की है. 1984 का वह दंगा कैसे कई लोगों की जान ले लेता है और किस तरह एक प्रेमी जोड़े के बीच बिरह की लकीर खींच देती है. आइए जानें ग्रहण का रिव्यू.
कहानी
झारखंड के रांची में पोस्टेड अमृता सिंह (जोया हुसैन) एक ईमानदार अफसर है. 2016 का समय और झारखंड में चुनावी सरगर्मी है. इस बीच एक पत्रकार की मौत की जांच करने के दौरान अमृता को एहसास होता है कि उसकी ईमानदारी की कोई जगह नहीं और वह इस्तीफा देने की कगार पर आ जाती है.
द फैमिली मैन 2 Review: पहले सीजन की तुलना में कमजोर, मनोज बाजपेयी-सामंथा की एक्टिंग ने संभाला
तभी बोकारो में 1984 में हुए सिख दंगो की फाइल रिओपन की जाती है और अमृता को SIT इंचार्ज बना दिया जाता है. अमृता इस्तीफे की जिद छोड़ दंगे की जांच में लग जाती है. जांच के दौरान उसे पता चलता है कि उसके पिता गुरसेवक (पवन मल्होत्रा) ही दंगा की अगुवाई करने वाला ऋषि रंजन है.
कहानी में 1984 के बैकग्राउंड में मनु (वमिका गब्बी) और ऋषि (अंशुमन पुष्कर) की प्रेम कहानी दिखाई गई है. सीरीज का यह हिस्सा कहानी की खासियत रही. ऋषि की अगुवाई में दंगा होने के बावजूद कैसे मनु का सिख परिवार बच जाता है और क्यों उन्हें बिरह की पीड़ा सहनी पड़ती है, यह बहुत ही ईमानदारी के साथ पेश की गई है.
Mare of Easttown: केट विंसलेट ने ऐसा क्या कमाल किया, दुनियाभर में हो रही शो की तारीफ
मनु-ऋषि की प्रेम कहानी ने बांधा समा
ईमानदार और मजबूत पुलिस अफसर अमृता के किरदार में जोया हुसैन ने कमाल का काम किया है. अंशुमन पुष्कर ने ऋषि रंजन और वमिका गब्बी ने मनु की भूमिका को हर एंगल से जस्टिफाई किया है. दोनों एक्टर्स ने पूरे शो का समा बांधे रखा. गुरसेवक के किरदार में पवन मल्होत्रा खूब जंचे. सीरीज के मेन विलन संजय सिंह उर्फ चुन्नू का कैरेक्टर टिकम जोशी ने शुरू से लेकर अंत तक सीरीज में अपने अभिनय प्रतिभा का बेहतरीन प्रदर्शन किया है. इनके अलावा सहिदुर रहमान, पूर्वा पराग, अभिनव पटेरिया, नम्रता वार्ष्णेय ने भी शानदार काम किया है. कलाकारों की कास्टिंग इस सीरीज में दमदार लगी.
भावनाओं को बखूबी पिरोया
सीरीज में खून-खराबा देख कभी घबराहट हो जाएगी तो कहीं रोते बिलखते हिंसा पीड़ितों को देख भावुक हो जाएंगे. सीरीज की कहानी में संजय सिंह की कुटिल रणनीति देख उसपर गुस्सा भी आ जाएगा. ग्रहण में निर्देशक रंजन चंदेल ने प्रेम-नफरत-आक्रोश जैसी हर भावनाओं को सलीके से पिरोया है. कुल मिलाकर ग्रहण दर्शकों को पसंद आएगी. इसके बेहतरीन डायलॉग्स, कलाकारों का अभिनय और उनका पहनावा, सब कुछ अच्छा रहा. हां, कुछ जगह सीन्स जरूरत से ज्यादा लंबे रहे.