
'गुमराह' 2019 में रिलीज हुई साउथ फिल्म 'थडम' की ऑफिशियल रीमेक है. रीमेक के इस ट्रेंड में आदित्य रॉय कपूर की गुमराह किस हद तक अपनी पहचान बना पाती है, जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू..
कहानी
दिल्ली में रातोरात हुए सॉफ्टवेयर इंजीनियर के मर्डर की तहकीकात में पुलिस लगी हुई है. इसी बीच एकेडमी से आई सीनियर इंस्पेक्टर शिवानी माथुर(मृणाल ठाकुर) के हाथों तस्वीर के रूप में अहम सुराख लगता है. तस्वीर में गुड़गांव के रहने वाले अर्जुन सहगल (आदित्य रॉय कपूर) को पहचान कर उसे पुलिस थाने ला या जाता है. अभी पुलिस उससे पूछताछ कर यह केस बंद करने वाली ही होती है, तभी अचानक से थाने में अर्जुन का हूबहू सूरज राणा को पुलिस पकड़ लाती है. अब एक मर्डर में दो हमशक्ल सस्पेक्ट होने के बाद ही कहानी एक इंट्रेस्टिंग मोड़ लेती है. इन दो हमशक्लों में से कौन असली खूनी है? आखिर मर्डर क्यों हुआ था? क्या उन्हें सजा मिल पाती है? इन सब सवालों के जवाब आपको थिएटर में मिल जाएंगे.
डायरेक्शन
'दबंग', 'कपूर ऐंड सन्स' जैसी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले वर्धन केतकर 'गुमराह' से डायरेक्शन डेब्यू करने जा रहे हैं. वर्धन ने फिल्म को 'थडम' की तरह ही हूबहू स्क्रीन पर उतारा है. बता दें, थ्रिलर मूवी की रीमेक हमेशा से डायरेक्टर्स के लिए रिस्कभरा रहा है. 'दृश्यम' जैसे एक्सेप्शन को छोड़ दें, तो नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी 'हेलन' की रीमेक बनी 'मिली' को दर्शकों ने शायद इसी वजह से नकार दिया था. खैर, वर्धन की इस कॉपी पेस्ट फिल्म को सिल्वर स्क्रीन पर देखने के दौरान आप कई लूप होल्स स्पॉट करते हैं.
खासकर फर्स्ट हाफ, स्टोरी में ठहराव नहीं दिखता, जिस वजह से दर्शक डिसकनेक्ट महसूस करने लगते हैं. फिल्म इतनी स्लो पेस में आगे बढ़ती है कि बार-बार फोन पर टाइम देख इंटरवल का इंतजार करते हैं. इंट्रेस्टिंग कहानी होने के बावजूद फिल्म का पहला हिस्सा, बोरिंग है. फिल्म देखते वक्त ये एहसास होता है कि इसमें एडिटिंग की सख्त जरूरत है. वहीं दूसरे हाफ में कई ट्वीस्ट ऐंड टर्न लिए फिल्म आगे बढ़ती है लेकिन क्लामैक्स आते-आते आपको कहानी प्रेडिक्टेड लगने लगती है. इसमें सबसे बड़ा कारण कमजोर स्क्रीनप्ले का है जिसकी वजह से एक दमदार कहानी का पोटेंशियल रखने के बावजदू फिल्म औसत में सिमट कर रह जाती है.
टेक्निकल
जब फिल्म का स्क्रीनप्ले ही कमजोर हो, तो फिर मजबूत टेक्निकल पक्ष भी कुछ खास इंपैक्ट नहीं डाल पाता है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक ठीक-ठाक रहा है. गानों का भी कुछ खास कमाल नहीं दिखता है उल्टा फिल्म के पेस में वो खलल डालते ही नजर आते हैं. हेमंत चतुर्वेदी की सिनेमैटोग्राफी में फिल्म खूबसूरत तो लगती है लेकिन क्लामैक्स के आखिरी सीन के दौरान आसानी से यह गलती पकड़ लेते हैं कि सीन क्रोमा में शूट हुआ है. आदित्य के एक्शन सीक्वेंस में कई जगह स्लो मो किए गए शॉट बेवजह से लगते हैं. सिगेरेट पीते गुड लुकिंग आदित्य की हीरोइक एंट्री, तो होती है लेकिन एक्सप्रेशनलेस लगते हैं. साहिल नायर फिल्म के पहले हिस्से को थोड़ा और क्रिस्प कर उसे इंट्रेस्टिंग बना सकते थे. फिल्म में किरादरों की स्टाइलिंग अच्छी की गई है, सभी किरदार परदे पर खूबसूरत लगते हैं.
एक्टिंग
आदित्य रॉय कपूर ने इसमें डबल रोल प्ले किया है. उनके पास एक सुनहरा मौका था कि वो अपनी एक्टिंग क्राफ्ट को खूबसूरती से एक्सप्लोर कर सकें लेकिन यहां आदित्य का कमाल नहीं दिखता है. बेशक वो स्क्रीन पर बहुत हैंडसम लगते हैं लेकिन एक्सप्रेशन को बेहतर तरीके से इमोट नहीं कर पाने की वजह से वो बेअसर ही लगते हैं. पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में मृणाल जहां फर्स्ट हाफ में अपनी छाप छोड़ती हैं, तो वहीं सेकेंड हाफ में कुछ सीन्स में उनकी एक्टिंग थोड़ी ओवर लगने लगती है. रोनित रॉय ने अपनी परफॉर्मेंस में कोई कमी नहीं छोड़ी है, वो हर स्क्रीन पर परफेक्ट लगे हैं. चड्डी के रूप में आदित्य के दोस्त बने कालरा का भी काम सराहनीय रहा है. वेदिका स्क्रीन पर फ्रेशनेस लाती हैं, लेकिन एक्टिंग का कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाती हैं.
क्यों देखें
अगर आपने थडम देखी है, तो आपके लिए इस फिल्म में कुछ नया नहीं है. सस्पेंस प्रेमी ऑडियंस इस फिल्म को एक मौका दे सकते हैं. वहीं आदित्य रॉय कपूर के फैंस के लिए यह फिल्म ट्रीट होगी क्योंकि उन्होंने एक नहीं बल्कि दो-दो आदित्य का डबल डोज मिलने वाला है. ओवरऑल फिल्म एवरेज है, एक बार देखी जा सकती है.