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'जाने जां' रिव्यू: एक हत्या के गणित में उलझे किरदार हैं दमदार, इम्प्रेस करता है करीना और जयदीप का सॉलिड काम

सुजॉय घोष की फिल्म 'जाने जां' नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है. करीना कपूर, जयदीप अहलावत और विजय वर्मा स्टारर इस फिल्म का ट्रेलर ही बता रहा था कि ये एक दिलचस्प मर्डर मिस्ट्री होने वाली है. फिल्म में कहानी का माहौल और फील थ्रिल पैदा करने के लिए परफेक्ट है. लेकिन क्या ये 'जाने जां' दिल में उतर पाती है? आइए बताते हैं...

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सुबोध मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 22 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 10:50 AM IST
फिल्म:जाने जां
2.5/5
  • कलाकार : करीना कपूर, विजय वर्मा, जयदीप अहलावत
  • निर्देशक :सुजॉय घोष

अगर आपको पहाड़ों पर घूमते हुए माहौल संदिग्ध लगता है और कुछ अनहोनी होने जैसी फीलिंग आती है, तो शायद आप बॉलीवुड मर्डर मिस्ट्री फिल्मों का डोज ज्यादा ले चुके हैं! सुजॉय घोष की 'जाने जां' फिल्मों-वेब सीरीज की उस लंबी लिस्ट में लेटेस्ट नाम है, जहां पहाड़, सर्दियां और कोहरा अपने साथ बोनस में एक मर्डर ले आते हैं. और ये फिल्म उन सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों की लिस्ट में भी जुड़ती है, जिनके टाइटल पुराने फिल्मी गानों से बने हैं. जैसे- हसीन दिलरुबा, मोनिका! ओह माय डार्लिंग, रात अकेली है... वगैरह.  

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नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही 'जाने जां' में करीना कपूर, जयदीप अहलावत और विजय वर्मा लीड एक्टर्स हैं. 'कहानी' और 'बदला' जैसी थ्रिलर्स बना चुके सुजॉय इन तीनों को लेकर एक दिलचस्प कहानी बुनते हैं. पुरानी फिल्मों के बेहद पॉपुलर गानों से सजा बैकग्राउंड स्कोर, पहाड़ों की सेटिंग, लकड़ी के घर, कैफे और जूजूत्सु मिलकर एक मर्डर मिस्ट्री के लिए परफेक्ट सेटिंग बनाते हैं. इस माहौल से निकली 'जाने जां' एक दिलचस्प पहेली तो बुनती है, मगर जवाब मिलने तक जिन रास्तों से गुजरती है वहां काफी गड्ढे हैं. 

न जाने कहां से आई है. न जाने कहां को जाएगी ये 'जाने जां'! 
कालिम्पोंग, पश्चिम बंगाल में बेस्ड ये कहानी एक सिंगल मदर (करीना कपूर) की है. और इस महिला की कहानी में बहुत कुछ सस्पेंस भरा है ये बताने के लिए फिल्मी डिक्शनरी में 'माया' से बेहतर नाम शायद है ही नहीं. उसका पड़ोसी नरेन (जयदीप अहलावत) गणित का पक्का वाला कीड़ा है. उस पर नजर डालते ही आप जान सकते हैं कि ये भले चुपचाप अपने काम से काम रखने वाला टाइप लगता हो, लेकिन निजी जिंदगी में काफी भरा हुआ आदमी है, जो किसी पर भी फट सकता है. 

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नरेन एक मिथ की तरह है, जिसका अस्तित्व साबित करने के लिए ही जैसे लोग हर जगह उसे 'टीचर' बुलाते हैं. उसकी पर्सनालिटी में और क्या है, कोई नहीं जानता. और सस्पेंस के इस ट्रायंगल में तीसरा किरदार है करण (विजय वर्मा) जो मुंबई पुलिस में है. करण को एक पुलिसवाले की ही तलाश है, जिसपर काफी कुछ आरोप हैं और उसकी आखिरी लोकेशन कालिम्पोंग थी. इसलिए वो भी इस हिल स्टेशन पहुंच चुका है जहां माया शांति से अपनी टीनेजर बेटी के साथ रहकर कैफे चला रही है. और 'टीचर' अपने स्कूल में गणित पढ़ाकर खुश है. 

शहर में एक लाश मिलती है, जो उसी व्यक्ति की है जिसे करण खोज रहा है. अब यहां छोटे से कस्बे में एक दूसरे को पहचानने वाले माहौल से खेल दिलचस्प होने लगता है. मुम्बई से एक व्यक्ति कालिम्पोंग क्यों आया और क्यों मारा गया? माया का इस व्यक्ति से क्या कनेक्शन है? माया का पड़ोसी नरेन इस बारे में क्या जानता है? और ये नरेन, जो करण का कॉलेज में दोस्त भी रहा है, क्या पुलिस की जांच में मदद करेगा? बिसात सेट है, खेल का माहौल बन गया है, अब यहां से कहानी को मजेदार बनाने का काम दो चीजों पर था- मर्डर मिस्ट्री को सुजॉय कैसे आगे बढ़ाते हैं और बिल्कुल अलग-अलग टाइप के एक्टिंग स्कूल से आने वाले उनके एक्टर्स क्या रंग जमाते हैं. 

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दमदार एक्टर्स का दमदार काम 
'जाने जां' में करीना को देखना ऐसा है जैसे आप उन्हें पहली बार इस तरह देख रहे हैं. बिना उनके ट्रेडमार्क ग्लैमरस अवतार के. जहां उनके चेहरे पर झुर्रियां भी दिखती हैं और उम्र भी. लेकिन फिर भी 'मिसेज माया डी'सूजा' की खूबसूरती में एक एक्स-फैक्टर तो है ही जो उनके इर्द-गिर्द दिखने वाले मेल किरदारों पर कुछ असर करता है. ऐसा लगता है जैसे उन्हें इस अवतार में दिखाने पर सुजॉय का खास फोकस भी है. फिल्म के एक सीक्वेंस में करीना जिस तरह का एग्रेशन लेकर आती हैं वो आपको हैरान कर देगा. इस सीक्वेंस में ऐसा लगता है जैसे उन्हें नए तरीके से डिस्कवर किया जा रहा है. 

विजय वर्मा पुलिस वाले के रोल में जितने एनर्जेटिक लगते हैं, उतने ही हैंडसम भी. जिन मोमेंट्स में करण का किरदार कन्फ्यूजन में है और केस की इन्वेस्टिगेशन के बीच उसके दिमाग पर माया भी असर कर रही है, उन सीन्स में वर्मा कमाल लगते हैं. लेकिन फिल्म में सबसे इम्प्रेसिव लगते हैं जयदीप अहलावत. मैथ टीचर के रोल में उनके पास बोलने को बहुत कुछ नहीं है. लेकिन ये काम वो अपनी आंखों से कर रहे हैं. उनकी मजबूत कद काठी जूजूत्सु करते हुए बहुत कमाल की लगती है. लेकिन वो अपने अपीयरेंस से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं और यही बात उसका कॉन्फिडेंस खा जाती है. टीचर की जिंदगी का सबसे मजबूत और कॉन्फिडेंट हिस्सा गणित और लॉजिक है. और हत्या होने के बाद जब वो लॉजिक और गणित दोनों से खेलता है तो मैजिकल लगता है. 

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कहानी कहने की दिक्कतें
सुजॉय का अपना एक स्टाइल है. वो पूरा सस्पेंस किसी जादूगर की तरह तैयार करते हैं. और अंत में बड़े द्रमतिक अंदाज में इससे पर्दा उठाते हैं. इस तरह की सस्पेंस थ्रिलर में क्लाइमेक्स के बाद भी एक हिस्सा होता है, जिसमें रिवील किया जाता है कि खेल करने वाले ने खेल किया कैसे. ये तरीका विद्या बालन स्टारर 'कहानी' में तो बहुत काम करता है, लेकिन 'जाने जां' में क्लाइमेक्स के बाद का खुलासा न जाने क्यों धोखा सा लगता है. फाइनल ट्विस्ट के साथ कहानी खुलने में इस बात से तसल्ली मिल जाती है कि पूरी कहानी में असली पेंच प्यार का था. लेकिन फाइनल चिट्ठा खुलने के बाद ऐसा लगता है कि अब दर्शक की इंटेलिजेंस को टेस्ट किया जा रहा है. कहानी कहने का स्वाद लेने के लिए, खुद कहानी का स्वाद ही जैसे कम कर दिया गया है. 

'जाने जां' जिसके पास दिमाग का धुंआ निकाल देने वाला एक अच्छा सस्पेंस वाला सेटअप था, वो इसी फाइनल मोमेंट में ओवर ड्रामेटिक लगने लगती है. किसी भी कहानी से रिलेट करने के लिए दर्शक अपना अविश्वास साइड रखता है, लेकिन 'जाने जां' इन फाइनल मोमेंट्स में दर्शक को चीट करती हुई लगती है. हालांकि, एक बार इस सेटअप और तीनों एक्टर्स का बेहतरीन काम देखने के लिए 'जाने जां' से दिल लगाया जा सकता है. 

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जहां विजय और जयदीप एक्टिंग स्कूल में सालों घिसकर चमकाई हुई एक्टिंग के साथ आते हैं, वहीं करीना 'शोबिज' का चमकता चेहरा रही हैं. लेकिन यहां अपने से दो बिल्कुल अलग एक्टिंग स्टाइल वाले एक्टर्स के बीच में करीना को नए तरीके से खड़े देखना 'जाने जां' को दिलचस्प बनाता है. अगर इस कहानी में टीचर के लॉजिक की जगह, थोड़ा सा दिल और होता तो मजा अलग ही हो जाता. 

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