
पिछले कुछ सालों में अक्षय कुमार और उनकी फिल्मों से लोगों को कुछ तयशुदा दिक्कतें रही हैं. जैसे- वो उम्र के हिसाब से किरदार नहीं निभा रहे, उनकी कॉमेडी का स्तर गड़बड़ है और उनकी फिल्मों के सोशल मैसेज गड्डमड्ड हैं.
'खेल खेल में' अक्षय की तरफ से इन सभी शिकायतों को दूर करने की एक अच्छी कोशिश है. और अच्छी बात ये है कि इन शिकायतों को दूर करने के साथ-साथ अक्षय की नई फिल्म एंटरटेनमेंट देने में भी कामयाब हुई है. डायरेक्टर मुदस्सर अजीज को भी क्रेडिट मिलना चाहिए कि उनकी कॉमेडी फिल्म में सेंसिटिविटी, सोशल मैसेज और वोकनेस का लेवल काफी अच्छा निकलकर आया है. ऊपर से एडल्ट बेटी का पिता बने अक्षय का किरदार, इस बार काफी 'उम्र अनुसार' भी है.
अक्षय कुमार की एक ट्रेडमार्क नेचुरल कॉमिक टाइमिंग है, जो जनता को बहुत पसंद आती है. वो अच्छी राइटिंग से आती थी, जिसे प्रियदर्शन ने स्क्रीन पर खूब पेश किया. लेकिन एक वक्त के बाद डायरेक्टर्स अक्षय की इस नेचुरल टाइमिंग को 'क्रिएट' करने की कोशिश करने लगे और फिल्में रूटीन बन गईं. लेकिन 'खेल खेल में' की राइटिंग काफी इंटेलिजेंट है जिसमें जोक्स और पंच मजेदार हैं.
कमाल एक्टर्स का भी है जो इस राइटिंग को असरदार और मजेदार तरीके से स्क्रीन पर डिलीवर करते हैं. कहानी के जरिए दिए गए मैसेज को, लेक्चर की तरह डिलीवर नहीं किया गया है बल्कि किरदारों की सिचुएशन और उनकी बातचीत आपको अपील करती है. हालांकि, फिल्म में अक्षय कुमार जैसा स्टार है तो अंत में एक मोनोलॉग तो होना ही था. लेकिन ये सीन भी भारी-भरकम न होकर लाइट है और मैसेज डिलीवर करने में कामयाब है.
तीन कपल्स और तीन मैसेज
कहानी में तीन कपल हैं. ऋषभ (अक्षय) की एक एडल्ट बेटी है और उसने पहली बीवी की मौत के बाद, वर्तिका (वाणी कपूर) से दूसरी शादी की है. हरप्रीत मेल (एमी विर्क) और हरप्रीत फीमेल (तापसी पन्नू) की शादी थोड़ी बेमेल है. गांव-शहर, कूल-अनकूल और अंग्रेजी-पंजाबी के कनफ्लिक्ट से गुजर रहे इस कपल पर बच्चा पैदा करने का बड़ा प्रेशर है.
तीसरा कपल हैं समर (आदित्य सील) और नैना (प्रज्ञा जायसवाल). नैना के पिताजी बड़े बिजनेसमैन हैं और समर के बॉस भी. वो लगातार ये प्रूव करने की मेहनत कर रहा है कि वो दामाद होने के नाते ही नहीं, अच्छा काम करने की वजह से ऊपर पहुंचा है.
इन कपल्स में दोस्ती है और ये एक शादी में शामिल होने पहुंचे हैं. इनका एक और दोस्त भी है कबीर (फरदीन खान) जो तलाकशुदा है और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आने वाला था, लेकिन अकेला ही पहुंचा है. बातों ही बातों में जिक्र चलता है की मर्द कैसे अपने और अपने दोस्तों के सारे सीक्रेट्स छुपाकर रखते हैं. यहीं से एक नया गेम बनाया जाता है कि रातभर के लिए सब अपने मोबाइल अनलॉक करके सामने रखेंगे और जो भी मैसेज-कॉल आएगा वो सबके सामने सुना/पढ़ा जाएगा.
इस खेल में मोबाइल वो चिराग बन जाता है जिससे अलग-अलग किस्म के जिन्न बाहर आने लगते हैं. और ये जिन्न अच्छी खासी शादियों की जन्नत को कुछ ही मिनटों में कैसे दोजख में बदलने लगते हैं, ये देखना बहुत दिलचस्प हो जाता है. लेकिन कहानी में सिर्फ शादीशुदा कपल्स के बोरिंग, मैरीड लाइफ वाले प्रपंच नहीं हैं.
तीन कपल्स और कबीर की कहानी के जरिए फिल्म, एक तयशुदा सोशल पैटर्न के बीच लोगों के बदलते पर्सनल बर्ताव को दिलचस्प तरीके से एक्सप्लोर करती है. ऐसे टॉपिक पहले भी फिल्मों में खूब उठते रहे हैं लेकिन 'खेल खेल में' की खासियत ये है कि इन टॉपिक्स पर फिल्म की राय बहुत सुलझी हुई और 'कूल' है. बेवजह की कोई उलझन नहीं है. यहां देखिए 'खेल खेल में' का ट्रेलर:
एक्टर्स का कमाल, सोशल मैसेज का कमाल
अक्षय कुमार एक लंबे वक्त बाद किसी फिल्म में बहुत सहज और अपने प्राइम फॉर्म में नजर आ रहे हैं. उनकी कॉमिक टाइमिंग का जादू, जो गायब होता लग रहा था, वो 'खेल खेल में' के साथ फिर से स्क्रीन पर माहौल जमा रहा है. लेकिन इस फिल्म में उनके साथी एक्टर्स ने भी कॉमेडी का भार बराबर उठाया है.
फिल्म में भले अक्षय का किरदार लीड हो, लेकिन सभी किरदारों को उनके हिस्से का टाइम और चमकने वाला मोमेंट मिला है. इस मोमेंट को भुनाने में फरदीन खान और तापसी पन्नू ने कोई कमी नहीं छोड़ी. फिल्म में इन दोनों को जो कुछ करने को दिया गया, इन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ एन्जॉय करते हुए किया है.
आदित्य सील और प्रज्ञा जायसवाल ने भी अपने हिस्से की कॉमेडी और सीरियस मोमेंट्स को अच्छे से निभाया है. वाणी कपूर ने थोड़ी सीरियस और इंटेलेक्चुअल राइटर के किरदार को सही पकड़ा है और तमाम चीजों के बीच ऑकवर्ड सरदार का किरदार एमी विर्क ने अच्छा निभाया है. चित्रांगदा सिंह का फिल्म में एक मजेदार कैमियो है.
अक्षय की ये फिल्म देखने के बाद समझ आता है कि इसका टाइटल कितना दिलचस्प है. फिल्म 'खेल खेल में' तीन सीरियस मुद्दों को हंसी के साथ, बड़े प्यार से ट्रीट करती है.अक्षय का किरदार जब अपनी बेटी को, उसके बॉयफ्रेंड के साथ 'क्वालिटी टाइम' बिताने को लेकर गाइड करता है, तो ये हर एडल्ट बच्चे और उसके पेरेंट्स के लिए एक सीखने वाला सबक बन जाता है.
कहानी में एक किरदार की सेक्सुअलिटी भी मैसेज का जरिया बनती है. जिस मैच्योरिटी के साथ फिल्म इसे ट्रीट करती है उसकी उम्मीद बॉलीवुड की मेनस्ट्रीम फिल्मों से कम ही रहती है. फिल्म में एक मिसअंडरस्टैंडिंग की वजह से पहले एक स्ट्रेट किरदार को गे समझ लिया जाता है. लेकिन जब असलियत का खुलासा होता है तो सब दंग रह जाते हैं और वही 'दोस्तों को तो बता सकता था' वाला राग शुरू हो जाता है. फिल्म इस जानकारी को पब्लिक करने की जरूरत पर सवाल करती है. एक बहुत जरूरी डायलॉग है कि 'तू आधे घंटे के लिए गे बना तो तेरी पूरी दुनिया पलट गई'. ये सीन भी बहुत अच्छे से पेश किया गया है.
हालांकि, फिल्म कुछ किरदारों और उनके बर्ताव को स्टीरियोटाइप करती है जो कुछेक जगह थोड़ा ओवर द टॉप भी हो जाता है. मगर ये थिएटर्स में जनता का ध्यान बहुत ज्यादा नहीं तोड़ेगा. गाने अच्छे हैं लेकिन न भी होते तो बहुत कुछ छूटता नहीं. बल्कि एक करारी टाइमिंग वाली फिल्म को गाने थोड़ा स्लो ही करते हैं. मेंटल हेल्थ से डील करने में भी फिल्म एक जगह थोड़ी चूकती है. मगर मुदस्सर अजीज ने काफी सीरियसली सबकुछ ट्रीट किया है और ये पूरा ध्यान रखा है कि पूरी फिल्म में, कोई भी 10 मिनट ऐसे नहीं हैं जिसमें स्क्रीन पर कोई पंच न गिरा को या कॉमेडी न हुई हो.
'खेल खेल में' शुरू से ही एक के बाद एक नेचुरली ट्रीट किए गए, बेहतरीन टाइमिंग वाले कॉमेडी सीन्स की बरसात करती रहती है और माहौल बनाए रखती है. ये पिछले कई सालों में अक्षय की बेस्ट कॉमेडी कही जा सकती है. इस लंबे वीकेंड में परिवार के साथ, दोस्तों के साथ मजेदार टाइम बिताने के लिए यकीनन 'खेल खेल में' के लिए थिएटर्स जाया जा सकता है.