Advertisement

Movie Review: समाज के मुंह पर करारा तमाचा है 'बेगम जान'

विद्या बालन को एक जानदार परफॉर्मेंस की दरकार थी, और उन्हें बेगम जान के साथ वह मौका मिल गया है

बेगम जान बेगम जान
नरेंद्र सैनी
  • मुंबई,
  • 13 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 4:07 PM IST

रेटिगः 4 स्टार

डायरेक्टरः श्रीजीत मुखर्जी

कलाकारः विद्या बालन, इला अरुण, गौहर खान, पल्लवी शारदा, चंकी पांडेय, आशीष विद्यार्थी, रजत कपूर और नसीरूरद्दीन शाह

विद्या बालन को एक जानदार परफॉर्मेंस की दरकार थी, और उन्हें बेगम जान के साथ वह मौका मिल गया है. बेगम जान में उन्होंने दिखाने की कोशिश की है कि अगर रोल सॉलिड ढंग से लिखा गया हो तो वे उसे बेहतरीन ढंग से अंजाम दे सकती हैं. ऐसा मौका इस बार उनके हाथ लग गया है. बंगाली हिट फिल्म राजकहिनी के इस हिंदी रीमेक में हर वह बात जो एक बेहतरीन सिनेमा के लिए जरूरी होती है. फिर चाहे वह बेहतरीन अदाकारी हो, कैमरे का कमाल हो, सॉलिड कैरक्टराइजेशन हो या कहानी. हर मोर्चे पर “बेगम जान” खरी उतरती है. फिल्म पूरी तरह से इस बात पर फोकस है कि मर्दों की दुनिया में औरतों को अपने दम पर जीना और मरना दोनों ही आता है.

Advertisement

कहानी की बात
कहानी बेगम जान (विद्या बालन) की है जो कोठा चलाती है और जहां कुछ लड़कियां रहती हैं. इन औरतों की दुनिया इसी में सीमित है और यहां सत्ता चलती है तो बेगम जान की. फिल्म की शुरुआत विभाजन और आजादी के साथ होती है. ऐसी आजादी जो अपने साथ त्रासदी लेकर आई और फिल्म में आजादी को लेकर जो तंज कसा गया है वह कमाल है क्योंकि जब बेगम यह सवाल करती है, “एक तवायफ के लिए क्या आजादी...लाइट बंद सब एक बराबर...” ऐसे में आजादी के मायनों पर सवालिया निशान लग जाता है. फिल्म का औरत और समाज में उसके अस्तित्व को लेकर जिस तरह के सवाल पैदा किए गए हैं, वे वाकई लंबे समय से बॉलीवुड में से ढंग से नहीं आ सके थे. फिर विभाजन की त्रासदी के साथ एक वेश्यालय और उसमें रहने वाली औरतों की यह कहानी ऐसा मौका कहीं नहीं देती है जहां कहीं भी स्क्रीन से इधर-उधर देखने का मौका मिले. फिर फिल्म के बीच में इला अरुण जो बहादुर महिलाओं की कहानियां सुनाती हैं, वे भी रोचक है.

Advertisement

स्टार अपील
श्रीजीत ने हर पात्र को इतने सॉलिड ढंग से उकेरा है कि यह फिल्म सिर्फ विद्या पर फोकस नहीं है बल्कि यह एक कोलाज की तरह है जिसमें डिफरेंट शेड है और हर शेड का अपना महत्व है. उनके बिना यह कोलाज कतई पूरा नहीं है. विद्या ने बेगम के किरदार में शानदार ऐक्टिंग की है. जबरदस्त डायलॉग बोले हैं, जो सिर्फ आंखें ही नहीं खोलते हैं बल्कि तमाचा जड़ते लगते हैं. फिर फिल्म में गौहर खान का किरदार यादगार है. वे जब अपने सीने और जांघों के बीच अपने प्रेमी का हाथ रखकर उसे औरत होने का मतलब समझाती है तो फिल्म पितृसत्तात्मक समाज के मुंह पर तमाचा जड़ते हुए लगती है. पल्लवी शारदा ने भी शानदार ऐक्टिंग की है. बेगम जान के कोठे का जिस तरह का चित्र खींचा गया है, वह वाकई दिल में बस जाता है, और हर महिलापात्र दिल के करीब जान पड़ती हैं. चंकी पांडेय ने कबीर का जो रोल किया है, उसे लंबे समय तक याद रखा जा सकेगा. उन्होंने दंगा कराने में माहिर काइयां शख्स के अपने रोल को इतने खूबसूरती से निभाया है, जो वाकई काबिलेतारीफ है. उस किरदार से नफरत करने को मन करता है.

कमाई की बात
फिल्म का संगीत बहुत ही क्लासिक ढंग है. जो फिल्म के मुताबिक एकदम सटीक बैठता है. आज जब समाज में सांप्रदायिकता का दंश तेजी से घुलता नजर आ रहा है, और धर्म पहचान बनता जा रहा है, बेगम जान ने सही समय पर दस्तक दी है. उसने पुरुष प्रधान समाज के चेहरे को सामने लाने की कोशिश की है, और कई सीन तो ऐसे हैं जो पुरुष होने पर शर्मिंदा होने को मजबूर कर देते हैं. ऐसे पुरुष जिनके लिए औरत सिर्फ देह है, उससे ज्यादा कुछ नहीं है. बेगम जान का बजट लगभग 15 करोड़ रु. बताया जाता है. जबरदस्त ऐक्टिंग, मजबूत कहानी और अतीत की दर्दनाक तस्वीर फिल्म से जोड़ने का काम करती है. फिल्म को इस हफ्ते हॉलीवुड की हिट फ्रेंचाइजी फास्ट ऐंड फ्यूरियस-8 से टक्कर मिलेगी. यहां मुकाबला थोड़ा टफ हो सकता है. वैसे भी विद्या की फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने का रिकॉर्ड रहा है.

Advertisement

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement