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Movie Review Bioscopewala: कहानी वही,पैकेजिंग नयी, डैनी का जबरदस्त अंदाज

रवीन्द्रनाथ टैगोर की कृति 'काबुलीवाला' पर लगभग 126 साल बाद भी फिल्म बनायी गयी है , जिसे 'बायोस्कोपवाला' के नाम से रिलीज किया गया है. जानते हैं आखिर कैसी बनी है ये फिल्म और कैसी है इसकी कहानी.

बायोस्कोपवाला में डैनी डेन्जोंगपा बायोस्कोपवाला में डैनी डेन्जोंगपा
स्वाति पांडे/आर जे आलोक
  • मुंबई,
  • 27 मई 2018,
  • अपडेटेड 4:49 PM IST

फिल्म का नाम: बायोस्कोपवाला

डायरेक्टर: देब मधेकर

स्टार कास्ट: डैनी डेन्जोंगपा, गीतांजलि थापा, आदिल हुसैन, टिस्का चोपड़ा, ब्रिजेंद्र काला

अवधि: 1 घंटा 31 मिनट

सर्टिफिकेट: U/A

रेटिंग: 3 स्टार

1892 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की शॉर्ट स्टोरी 'काबुलीवाला' जब प्रकाशित हुई थी, वो पाठकों के लिए वो बहुत ही बड़ी ट्रीट थी. इस कहानी को सालों साल सुनाया गया. किताबों के जरिये स्कूल में यह कहानी छात्रों को सुनाई भी जाती थी. फिर 1957 में इसी नाम से एक बंगाली फिल्म भी बनायी गयी, जिसे तपन सिन्हा ने डायरेक्ट किया था. साथ ही 1961 में बिमल रॉय ने हिंदी फिल्म प्रोड्यूस की, जिसमें बलराज साहनी और ऊषा किरण अहम भूमिका में थे. फिल्म को काफी सराहा गया, इसके बाद इसी कहानी के आधार पर कई टीवी शो भी बनाये गए और अब 2018 में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कृति पर लगभग 126 साल बाद भी फिल्म बनायी गयी है , जिसे 'बायोस्कोपवाला' के नाम से रिलीज किया गया है. कई विज्ञापन डायरेक्ट कर चुके देब मधेकर इस फिल्म के साथ बॉलीवुड में अपना डायरेक्टर के तौर पर डेब्यू भी कर रहे हैं. जानते हैं आखिर कैसी बनी है ये फिल्म और कैसी है इसकी कहानी.

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कहानी:

कहानी फिल्म्स की पढ़ाई कर फ्रांस में फिल्ममेकर बन चुकी मिनी (गीतांजलि थापा) की है, जो बचपन में अपने पिता रॉबी बासु (आदिल हुसैन) के साथ कोलकाता में रहती है. रॉबी मशहूर फैशन फोटॉग्राफर हैं. बचपन से ही बाप-बेटी के बीच संबंध कोई बहुत अच्छे नहीं हैं और साथ ही रॉबी की पत्नी भी उसके साथ नहीं रहती. एक दिन रॉबी की कोलकाता से काबुल जाने वाले एक हवाई जहाज की दुर्घटना में मौत हो जाती है. मिनी पिता की मृत्यु से संबंधित औपचारिकताएं पूरी कर ही रही थी कि घरेलू नौकर भोला (ब्रिजेंद्र काला) उसे घर आए नए मेहमान रहमत खान (डैनी डेन्जोंगपा) से मिलवाता है.

मिनी को पता चलता है कि उसके स्वर्गीय पिता ने हत्या के मुकदमे में जेल में बंद रहमत को कोशिश करके जल्दी छुड़वाया है क्योंकि रहमत को अल्हजाइमा की बीमारी होती है. पिता की मौत से आहत मिनी, शुरुआत में बिल्कुल नहीं चाहती कि रहमत उसके घर पर रहे, लेकिन अपने पापा के रूम को खंगालते वक्त मिनी को पता लगता है कि यह रहमत और कोई नहीं, बल्कि वह उसके बचपन में उनके घर आने वाला बायोस्कोपवाला ही है, जिसकी सुनहरी यादें अभी भी उसके जहन में ताजा हैं. एक बार तो रहमत ने अपनी जान पर खेलकर मिनी की जान भी बचाई थी.

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दरअसल, वह मिनी में अपनी पांच साल की बेटी राबया की झलक देखता था, जिसे वह मुश्किल दिनों में अफगानिस्तान छोड़ आया था. रहमत के रूप में अचानक अपने बचपन की यादों का पिटारा खुल जाने से उत्साहित मिनी कोलकाता में तमाम लोगों से मिलकर उसके जेल जाने के पीछे की वजह का पता लगाती है और  गजाला (माया साराओ) और वहीदा (टिस्का चोपड़ा) की मदद से रहमत के परिवार को तलाशने अफगानिस्तान भी जाती है. क्या मिनी को रहमत के परिवार के बारे में पता चल पाता है? रहमत का गुनाह क्या है और अंततः फिल्म का अंजाम क्या होता है यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

क्यों देखें फिल्म:

फिल्म की कहानी रविंद्रनाथ टैगोर के शॉर्ट स्टोरी पर आधारित है, जिसकी यादें आज भी कहीं दर्शकों के दिलों में ताजा है. फिल्म की कहानी बढ़िया है. स्क्रीनप्ले अच्छा लिखा गया है और साथ ही साथ जिस तरह से कहानी को दर्शाया गया है वह स्टाइल लाजवाब है.

एक अर्से के बाद बड़े पर्दे पर नजर आए अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा ने बेहतरीन एक्टिंग से दिखा दिया है कि उनमें अभी काफी दम बाकी है. उन्होंने जवानी और बुढ़ापे के किरदार को बखूबी निभाया है. एक बार तो यह भी सवाल मन में उठता है कि आखिरकार डाइनिंग फिल्में क्यों नहीं करते हैं. काफी समय के बाद वह बड़े पर्दे पर नजर आते हैं उन्हें ज्यादा से ज्यादा फिल्में करनी चाहिए क्योंकि वह एक मंझे हुए अदाकार है.

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वहीं नेशनल अवॉर्ड विनर गीतांजलि थापा ने मिनी के रोल को खूबसूरती से निभाया है. आदिल हुसैन हमेशा की तरह पर्दे पर लाजवाब लगे हैं, वहीं ब्रिजेंद्र काला और बाकी सह कलाकारों ने सहज तथा बढ़िया एक्टिंग की है. फिल्म का डायरेक्शन और एडिटिंग भी जबरदस्त है. इसकी वजह से महज डेढ़ घंटे में फिल्म खत्म हो जाती है. फिल्म का संगीत काफी सोच-समझकर रखा गया है जिसकी वजह से टाइटल ट्रैक समय समय पर आता है और आपको सोचने पर विवश भी कर देता है.

कमजोर कड़ियां:

फिल्म की कमजोर कड़ी इसमें समय-समय पर आने वाले फ्लैश बैक और प्रेजेंट डे के सीन है, जो काफी आगे पीछे हैं. अगर इन्हें दुरुस्त किया जाता तो फिल्म और भी क्रिस्प को हो जाती.

फिल्म की लिखावट और बेहतर हो सकती थी. कम बजट होने के कारण फिल्म का प्रचार बहुत ज्यादा नहीं हो पाया है, इसकी वजह से शायद फिल्म को दर्शकों की अनुपस्थिति झेलनी पड़ सकती है.

बॉक्स ऑफिस :

फिल्म का बजट लगभग 4 करोड़ रुपए बताया जा रहा है. फिल्म को बड़े पैमाने पर रिलीज नहीं मिली है. देखना खास होगा कि दर्शकों का इस कहानी के प्रति कैसा रुझान होता है.

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