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Movie Review: सिर्फ रजनीकांत के करिश्मे पर टिकी 'कबाली'

पिछले दो दशकों से भारतीय सिनेमा की एक खासियत जो उभरी है वह है व्यक्ति पूजा की. बॉलीवुड में चाहे खान हो या दक्षिण के बड़े नाम, एक समय ऐसा आता है जब विषय, कहानी और ट्रीटमेंट सब पीछे छूट जाता है, और एक शख्सियत कला पर हावी हो जाती है. फिर साउथ में इस व्यक्ति पूजा का लंबा इतिहास भी रहा है. इसकी नई कड़ी 'कबाली' है.

'कबाली' 'कबाली'
नरेंद्र सैनी/पूजा बजाज
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

रेटिंगः 3 स्टार
डायरेक्टरः पीए. रंजीत
कलाकारः रजनीकांत, राधिका आप्टे और धंशिका

पिछले दो दशकों से भारतीय सिनेमा की एक खासियत जो उभरी है वह है व्यक्ति पूजा की. बॉलीवुड में चाहे खान हो या दक्षिण के बड़े नाम, एक समय ऐसा आता है जब विषय, कहानी और ट्रीटमेंट सब पीछे छूट जाता है, और एक शख्सियत कला पर हावी हो जाती है. फिर साउथ में इस व्यक्ति पूजा का लंबा इतिहास भी रहा है. बॉलीवुड में एक्टर के कैरेक्टर से बड़े होने की झलक 'सुल्तान' के साथ मिल चुकी थी और इस हफ्ते रजनीकांत की 'कबाली' के साथ इस बात का साफ इशारा मिल जाता है कि हमारे लिए व्यक्ति कितने मायने रखते हैं. पोस्टरों को दूध से नहलाना, पूजा-पाठ और न जाने क्या-क्या?

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रजनीकांत का कद 'कबाली' को शोरगुल में तब्दील करने में सफल रहा है. जब रजनीकांत से जुड़ी हाइप के साथ सिनेमाघर में कदम रखा जाता है तो दिल में ऐसा एहसास रहता है कि न जाने पर्दे पर क्या देखने को मिले? उम्मीदें बहुत ज्यादा होती हैं. शायद 'कोचादेयान' और 'लिंगा' में इन उम्मीदों को थोड़ा झटका पहुंचा था. अब 'कबाली' के साथ रजनीकांत ने काफी उम्मीदें जगाईं लेकिन कहानी के मोर्चे पर फिल्म बहुत ही सामान्य है और फिल्म पूरी तरह से उनके करिश्मे पर ही टिकी है.

कहानी में कितना दम
यह कहानी रजनीकांत की है जो एक लंबा अरसा जेल में बिताता है, अपने परिवार को खो बैठता है और दूसरों की मदद करने की कीमत चुकाता है. कहानी देश-विदेश में सेट है और मामला कमजोरों के लिए आवाज बुलंद करने का है. बिल्कुल 'शिवाजी' और 'लिंगा' जैसे. लेकिन इस बार अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि है. कहानी में कुछ नया नहीं है. जब-जब रजनीकांत आते हैं तो मजा आता है क्योंकि उनका स्टाइल मजेदार लगता है, कहानी रेंगती हुई चलती है और जब बात कबाली के परिवार की आती है तो फिल्म हांफने-सी लगती है. कुल मिलाकर कहानी में कोई नयापन नहीं है, वैसे भी रजनीकांत अपनी फिल्मों में इतना कुछ कर चुके हैं, अब डायरेक्टर के लिए भी यह चुनौती होती है कि फिल्म में उनसे और क्या कराया जाए.

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स्टार अपील
अगर 'सुल्तान' पिछले दिनों सिर्फ 'सुल्तान' सलमान खान के लिए देखी गई थी तो ऐसा ही 'कबाली' के बारे में भी है. पूरी फिल्म सिर्फ एक शख्स रजनीकांत के करिश्मे पर ही टिकी है. उनका एंट्री करना, उनका अंदाज, उनकी फाइट, और हर वह बात मजा दिलाती है जिसने एक बस कंडक्टर को आज इतना बड़ा सितारा बना दिया है. लेकिन 65 साल के हो चुके तलैवा पूरी मेहनत के साथ 'कबाली' में आए हैं पर उम्र के निशां तो नजर आ ही जाते हैं. इसका असर ,एक्शन के दौरान उनके रिफ्लेक्शंस पर भी पड़ता है. फिल्म में राधिका आप्टे सामान्य हैं, उनकी जगह कोई और भी एक्ट्रेस होती तो खास फर्क नहीं पड़ता. इसके अलावा बाकी सब ठीक हैं.

कमाई की बात
कुछ सितारे ऐसे होते हैं जो कमाई के मामले में खुशकिस्मत होते हैं. ऐसे ही रजनीकांत भी हैं. उनकी पिछली दोनों फिल्में बहुत बड़ा करिश्मा न कर पाई हों लेकिन घाटे में भी नहीं रहीं. अब 'कबाली' के बारे में तो कहा जा रहा है कि 160 करोड़ रु. के बजट से बनी यह फिल्म 200 करोड़ रु. पहले ही कमा चुकी है. लेकिन फिल्म बेशक रिलीज से पहले जितनी मर्जी कमाई कर ले, उसकी असली कसौटी तो सिनेमाघर ही होते हैं. वैसे फिल्म के एडवांस बुकिंग सॉलिड है और अब देखना यह है कि रजनीकांत फिल्म को किन रिकॉड्र्स तक लेकर जाते हैं. 'कबाली' वन टाइम वॉच तो है ही. फिल्म पांच से ज्यादा भाषाओं में रिलीज हुई है. फिल्म के एक दिन में होने वाले शो की संख्या भी छह तक पहुंच चुकी है. फिल्म जो भी नतीजे देगी, वे आने वाले समय में 'बाहुबली-2' की कसौटी पर आंके जाएंगे.

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