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Movie Review: 'वीरप्पन' यानी रिटर्न ऑफ राम गोपाल वर्मा

राम गोपाल वर्मा अक्सर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने विवाद भरे ट्वीट्स की वजह से सुर्खियों में रहते हैं. सत्या, कंपनी और सरकार जैसी शानदार फिल्में बनाने वाला यह डायरेक्टर लंबे समय से अपना जादुई स्पर्श खोए हुए था. जानें कैसी है उनकी फिल्म वीरप्पन...

राम गोपाल ने साउथ में किलिंग वीरप्पन भी बनाई थी राम गोपाल ने साउथ में किलिंग वीरप्पन भी बनाई थी
नरेंद्र सैनी/लव रघुवंशी
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2016,
  • अपडेटेड 11:35 AM IST

रेटिंगः 3 स्टार

डायरेक्टरः राम गोपाल वर्मा

कलाकारः संदीप भारद्वाज, उषा जाधव, सचिन जे. जोशी और लीजा रे

राम गोपाल वर्मा अक्सर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने विवाद भरे ट्वीट्स की वजह से सुर्खियों में रहते हैं. सत्या, कंपनी और सरकार जैसी शानदार फिल्में बनाने वाला यह डायरेक्टर लंबे समय से अपना जादुई स्पर्श खोए हुए था. लेकिन जब उन्होंने साउथ में किलिंग वीरप्पन बनाई तो उन्होंने अपने टैलेंट का लोहा मनवा दिया. अब वे हिंदी में भी वीरप्पन लेकर आए हैं. इस फिल्म को डायरेक्ट करके उन्होंने कुछ हद तक अपनी पुरानी फिल्ममेकिंग कला की ओर कदम भी बढ़ाया है. वीरप्पन के तौर पर जो कहानी वे लेकर आए हैं वह मजेदार है और बांधे रखती है. फिल्म में वीरप्पन के किरदार में संदीप भारद्वाज ने बेहतरीन अभिनय किया है, और कहानी को क्रिस्प रखते हुए राम गोपाल वर्मा ने फ्लो बनाए रखा है. वीरप्पन का खौफ तीस साल केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के जंगलों में कायम रहा था.

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कहानी में कितना दम
वीरप्पन कर्नाटक और तमिलनाडु के जंगलों का ऐसा कुख्यात नाम है, जो पुलिस को छकाने और किसी को भी मौत के घाट उतारने में पलक झपकने की भी देर नहीं होने देता था. उसका आतंक इन जंगलों में गूंजता था. फिल्म में वही वीरप्पन है. एक बच्चा वनकर्मियों को चाय पिलाता है. वनकर्मी उसे बंदूक चलाना सिखा देते हैं. वह थोड़ा बड़ा होता है तो उससे हाथियों का शिकार करवाया जाता है. वे हाथी मारता है और वन अधिकारी उसका फायदा उठाते हैं. लेकिन एक दिन वह वन अधिकारियों को ही मार देता है और अपने दोस्तों के साथ जंगलों में भाग जाता है और उन्हें अपनी पनाहगाह बना लेता है. उधर, पुलिस और स्पेशल टास्क फोर्स उसे पकड़ने की कोशिश में हर बार निकलते हैं और खुद ही शिकार बन जाते हैं. फिल्म की कहानी राम गोपाल वर्मा ने टाइट रखी है और बहुत ही तेजी के साथ वे बातें कहते चले जाते हैं. हालांकि कैमरे को वे कुछ ज्यादा ही घुमाते हैं. वह चीज थोड़ा तंग करती है. फिल्म पहले ही सीन से बांध लेती है.

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स्टार अपील
बायोपिक की जान होती है वह कैरेक्टर जिसे पर्दे पर जिंदा किया जा रहा है. फिर उस दौर की झलक. इन दोनों में मामलों में वीरप्पन बेहतरीन है. संदीप वीरप्पन के किरदार में ऐसे उतरे हैं कि वाकई मजा दे देते हैं. वे बिल्कुल वीरप्पन जैसे लगते हैं और उनके बोलने का अंदाज, हाव-भाव भी रोल के मुताबिक लगते हैं. फिल्म में ऐक्टिंग के मामले में लीजा रे और सचिन जोशी थोड़े हल्के पड़ते हैं. लीजा रे तो कई सीन में ऐसे एक्सप्रेशंस देती हैं, जैसे वे हॉरर फिल्म कर रही हों. वैसे ही सचिन जोशी भी डायलॉग डिलीवरी और एक्सप्रेशंस के मामले में कमजोर हैं. उषा जाधव ने वीरप्पन की पत्नी का छोटा लेकिन मजबूत रोल किया है.

कमाई की बात
वीरप्पन ऐसी फिल्म है जो जंगलों के खौफनाक अपराधी की कहानी कहती है. जिसके शातिरपन की कहानियां और हत्याओं के किस्से 1990 के दशक में अखबारों की सुर्खियों में रहते थे. राम गोपाल वर्मा ने इस बार ऐसे कैरेक्टर को अपने कैमरे के लिए चुना जिसके बारे में हर कोई जानना चाहता है. उन्होंने स्क्रिप्ट को बहुत टाइट रखा है और कहानी को बहुत ही आसान ढंग से कहा है. यह फिल्म वाकई दिलचस्पी पैदा करती है. वीरप्पन वन टाइम वॉच मूवी है और राम गोपाल वर्मा की वापसी का आगाज भी.

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