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Patna Shuklla Review: दमदार कहानी पर ढीली पकड़, रवीना की बेजोड़ एक्टिंग और सतीश कौशिक की आखिरी याद है 'पटना शुक्ला'

Patna Shuklla Review: एक हाउसवाइफ की कहानी जो वकील है, लेकिन मानी नहीं जाती. हर दिन अपनी पहचान पाने के लिए लड़ रही है. परीक्षा के रिजल्ट में हो रहे स्कैम के खिलाफ आवाज बुलंद करती है, लेकिन बुरी तरह से फंस जाती है. पढ़े कैसी है पटना शुक्ला?

पटना शुक्ला रिव्यू: रवीना टंडन पटना शुक्ला रिव्यू: रवीना टंडन
आरती गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 29 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 9:09 AM IST
फिल्म:ड्रामा
2/5
  • कलाकार : रवीना टंडन, सतीश कौशिक, अनुष्का कौशिक, मानव विज, चंदन रॉय सान्याल, राजू खेर
  • निर्देशक :विवेक बुड़ाकोटी

Patna Shuklla Review: एक आम महिला, एक छात्रा और एक यूनिवर्सिटी में हो रही परीक्षा स्कैम में रोल नंबर के हेराफेरी की कहानी, जो कई छात्रों के जीवन को प्रभावित करती है. फिल्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो रही है. तो आइये आपको बताते हैं कैसी है 'पटना शुक्ला'?

'पटना शुक्ला' का सफरनामा

'पटना शुक्ला' की कहानी एक छोटी-सी वकील कम हाउसवाइफ तन्वी शुक्ला (रवीना टंडन) पर बेस्ड है. जो तब न्याय की लड़ाई में कूद पड़ती है जब उसे पता चलता है कि एक स्टूडेंट रोल नंबर घोटाले में फंस गई है. जैसे-जैसे वो इस केस की पड़ताल करती है, उसे गहरे सच का पता चलता है. यकीन मानिए ये वो सच है जिससे उसकी खुद की पूरी लाइफ ही बदल जाती है. ब्लाइंड स्पॉट में तीर मारकर कैसे सच को झूठ में लपेटकर परोसा जाता है, और एक स्टूडेंट का पूरी लाइफ बदल दी जाती है, ये सब दिखाया गया है. 

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कैसा है कहानी का ट्रीटमेंट

जाहिर है तन्वी एक छोटी सी वकील है तो उससे उम्मीद की जाती है, वो ज्यादा उड़े नहीं. चेंबर तो है नहीं, तो कोर्ट के बाहर टेबल और कुर्सी लगाकर केस की पड़ताल करती है. गली की औरतें उसके पास कूड़ें फेंकने को लेकर हुए झगड़े का केस लेकर आती हैं. वो खुद एक अंडरवियर का केस जीतकर उस कहानी को घर में ऐसे सुनाती है, जैसे किला फतह कर लिया हो. 

तन्वी को घर से पूरा सपोर्ट है. उसकी एक परफेक्ट फैमिली है. पिता की लाडली बेटी है, पति की प्यारी पत्नी है, और बेटे की परफेक्ट मां है. लेकिन कोर्ट में जज साहब (सतीश कौशिक) उसके स्वादिष्ट लड्डू बनाने पर उसे वकालत छोड़ रेस्टोरेंट खोलने की सलाह देते हैं. फिल्म में कई छोटे छोटे पहलुओं पर ध्यान दिया गया है, जोकि सराहनीय हैं और सच्चाई से परे नहीं लगते हैं. जैसे- पति (मानव विज) इंजीनियर है तो कार चलाता है, पत्नी वकील है, लेकिन घर भी संभालती है और स्कूटी चलाती है. पत्नी केस की रिसर्च कर रही है तो पति उसपर घर के काम का बोझ ना डालते हुए उसकी मदद करता है. सरकारी दफ्तर में प्रमोशन कैसे पाई जाती है, उसका भी हिंट दे ही दिया गया है. 

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बावजूद इसके कहानी की पकड़ ढीली है. बताते हैं कैसे?

दरअसल, फिल्म का मेन सब्जेक्ट है रोल नंबर की हेराफेरी और परीक्षा के रिजल्ट में हुई धांधली, जिसे बेहद ही सरलता से दर्शकों के सामने परोस दिया गया है. उसमें ना कोई ड्रामा है, ना ही कोई नाटकीय मोड़ और ना ही कोई एक्शन. फिल्म वही दिखा रही है जो कि होता आया है और आपको दशकों से पता है. आपने बीसों बार किसी ना किसी फिल्म में ये सब देखा ही होगा. लास्ट में एक छोटा सा ट्विस्ट है जरूर जो आपको बता दिया तो स्पॉइलर हो जाएगा. लेकिन देखते देखते फिल्म बीच में इतनी ढीली हो जाती है कि नींद आने लगती है. तन्वी शुक्ला के पटना शुक्ला बन जाने की क्रांति फील नहीं होती है. पृष्ठभूमि पटना की है लेकिन किसी की बोली में वो झलकता नहीं है. 

कलाकारों ने संभाली फिल्म

एक स्पेशल मेंशन दिवंगत एक्टर सतीश कौशिक के लिए तो जरूर बनता है. जज साहब बने सतीश आपको बेहद मजेदार लगेंगे. जो अपनी आदतों के साथ साथ कोर्ट रूम का भी बैलेंस बनाना बखूबी जानते हैं. वहीं रवीना टंडन की एक्टिंग पर तो कोई सवाल उठाने का मतलब ही नहीं बनता. उनके पति का रोल निभा मावन विज और पिता बने राजू खेर ने भी बखूबी साथ दिया है. अनुष्का कौशिक को ज्यादा डायलॉग्स नहीं मिले हैं, लेकिन एक्ट्रेस का बचपना जरूर झलक जाता है. 

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पटना शुक्ला फिल्म को विवेक बुड़ाकोटी ने लिखा और डायरेक्ट किया है. इसे अरबाज खान प्रोडक्शन्स प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले बनाया गया है. आपको ये फिल्म कितना एंटरटेन कर पाती है, हमें कमेंट कर के जरूर बताइयेगा. 

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