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Ramyug Review: एक्ट‍िंग से लेकर कहानी तक, रामायण देखने वालों को निराश करेगी रामयुग

Ramyug Review: अगर नई पीढ़ी को भी कुछ समझाने का प्रयास है तो अंदाज ऐसा होना चाहिए कि अर्थ का अर्नथ ना हो. अब इस कड़ी में कुणाल कोहली रामयुग कहां खड़ी होती है, ये जानते हैं.

रामयुग पोस्टर रामयुग पोस्टर
सुधांशु माहेश्वरी
  • नई दिल्ली,
  • 11 मई 2021,
  • अपडेटेड 10:32 AM IST
फिल्म:रामयुग
0.5/5
  • कलाकार : दिगंत मनचले,ऐश्वर्या ओझा,अक्षय डोगरा
  • निर्देशक :कुणाल कोहली

जब भी किसी पौराणिक कथा पर फिल्म या सीरीज बनती है तो इस बात का ध्यान रखना जरूरी होता है कि क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर दर्शकों को कुछ भी ना परोस दिया जाए. वहीं अगर नई पीढ़ी को भी कुछ समझाने का प्रयास है तो अंदाज ऐसा होना चाहिए कि अर्थ का अर्नथ ना हो. अब इस कड़ी में कुणाल कोहली रामयुग कहां खड़ी होती है, ये जानते हैं.
 
डायरेक्टर कुणाल कोहली ने आज की पीढ़ी को अपने ही अंदाज में रामायण की कथा सुनाई है. कहानी को आठ हिस्सों में बांट दिया गया है और एक सीरियल के अंदाज में सबकुछ दिखाने की कोशिश रही है. अभी तक रामायण की कथा का जो सीक्वेंस आपने मन में होगा, रामयुग ने उसे हर मोड़ पर तोड़ा है. मेकर्स ने अपने मन-मुताबिक हर सीन को आगे-पीछे किया है. कभी सीधे रावण के दर्शन करवा देंगे तो कभी फ्लैशबैक के जरिए राजा दशरथ की कहानी बताने लगेंगे. इसी अंदाज से पूरी सीरीज आगे बढ़ी है और देखते ही देखते आपको फिर राम कथा बता दी जाती है.

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रामायण को मॉडर्न दिखाने के चक्कर में अनर्थ

रामयुग का रिव्यू करना अपने आप में बड़ी चुनौती है. जब रामनंद सागर की रामायण पहले से देख रखी हो, तो ये काम और ज्यादा मुश्किल हो जाता है. लेकिन फिर भी अगर तुलना ना करें और मानकर चलें कि कोई हमे पहली बार रामायण कथा सुना रहा है, कहना पड़ेगा कुणाल कोहली ने इस बार बड़ी गलती कर दी है. नई पीढ़ी को रामायण का अर्थ समझाने के चक्कर में वे खुद इतने ज्यादा दिशाहीन हो लिए कि रामायण की पवित्रता भी गायब दिखी, कई सीन्स एकदम बेजान और नीरस हो गए और दर्शकों का कनेक्ट भी नहीं बना.

राम, राम नहीं-सीता, सीता नहीं

इस सीरीज का सिर्फ एक एपिसोड देख लें और आप समझ जाएंगे कि ये रामायण नहीं सीरियल है, भगवान नहीं कलाकार हैं. हर पौराणिक कथा अपने साथ एक माहौल लेकर आती है, उसकी अपनी एक सात्विकता होती है, रामयुग वो अहसास नहीं करवा पाई है. आप चाहकर भी त्रेता युग में नहीं पहुंच पाते हैं और सबकुछ बनावटी सा लगता है. ये मेकर्स की सबसे बड़ी विफलता ही है कि किरदार भी वास्तविकता से दूर लगे हैं और कई सीन भी मन में सवाल खड़े कर जाते हैं. तथ्यों पर बात ना भी की जाए, फिर भी राम, राम नहीं लगे हैं, सीता, सीता नहीं कहीं जा सकती हैं, लक्ष्मण का किरदार भी दिल को नहीं छू पाता है.

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रामयुग में राम का किरदार दिगंत मनचले ने निभाया है. कन्नड फिल्म इंडस्ट्री में तो अपने अभिनय से दिगंत ने इंप्रेस किया है, लेकिन शायद ये रोल और इस तरह की कहानी उन पर फिट नहीं बैठी. उन्होंने सिर्फ किरदार निभाया है, जीया नहीं है. मर्यादा पुरुषोत्तम वाले हाव-भाव गायब दिखे हैं. वो सिर्फ एक ऐसे एक्टर बनकर रह गए हैं जिन्हें अपनी बॉडी दिखाने का पूरा मौका मिला है. 

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बिना सीता तो कोई भी रामायण पूरी नहीं हो सकती. रामयुग में इस किरदार के लिए ऐश्वर्या ओझा को चुना गया है. उनके करियर के लिहाज से तो ये सबसे बड़ा रोल है, लेकिन क्या वे इसके साथ न्याय कर पाई हैं, जवाब है- नहीं. डायलॉग डिलीवरी की बात हो या फिर सिर्फ हाव-भाव की, ऐश्वर्या का किरदार रामायण की सबसे मजबूत कड़ी को कमजोर करने वाला साबित हुआ है. लक्ष्मण के रोल में अक्षय डोगरा भी निराश करने वाले हैं. वे पूरी सीरीज में बुझे-बुझे से दिखाई पड़े हैं और उनके किरदार को भी दबा दिया गया है.

रावण को बना दिया गया फिल्मी

रामयुग में रावण के किरदार को लेकर काफी चर्चा रही है. साउथ के फेमस एक्टर कबीर दुहन सिंह को कास्ट किया गया है, लेकिन वे भी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं. इतना फिल्मी रावण आप पहली बार देखने वाले हैं. क्या डायलॉग, क्या चलने का स्टाइल, हर पहलू से वे राणव कम और किसी साउथ मूवी के विलेन ज्यादा लगते हैं. बाकी किरदारों की बात करें तो हनुमान, विश्वामित्र, कैकई, कौशल्या, सभी ने समान रूप से निराश किया है. लेकिन गलती इसमें कलाकारों की कम और उन मेकर्स की ज्यादा कही जाएगी जिन्होंने 'अटपटे डायलॉग' दिए हैं, मॉडर्न दिखाने के चक्कर अर्थ का अनर्थ किया है.

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रामयुग के VFX मजबूत नहीं, सबसे कमजोर कड़ी

कुणाल कोहली के डायरेक्शन के साथ सबसे बड़ी समस्य ही ये रही है कि उन्होंने रामयुग को एक फिल्म की तरह बना दिया है. कई मौकों पर आपको राम-सीता कम और शाहरुख-काजोल जैसी जोड़ी ज्यादा दिखाई पड़ेगी. आप सिर्फ डायलॉग सुनिए और महसूस हो जाएगा कि ये किसी रोमांटिक फिल्म का कोई सीन है. रामयुग के रिलीज से पहले कुणाल ने कहा था कि उन्होंने VFX का शानदार इस्तेमाल किया है. लेकिन सीरीज देख लगता है कि शानदार नहीं, जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हुआ है. इस वजह से रामायण की जो सादगी है वो खत्म हो गई है. रामयुग देखते समय कभी आप बाहुलबी वाली जोन में चले जाएंगे तो कभी आपको कोई सुपरहीरो की कहानी याद आ जाएगी. इतना सबकुछ तो महसूस होगा, लेकिन रामायण कही पीछे छूट जाएगी और आप उस शांति, सादगी के लिए तरसते रह जाएंगे.

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