
वैसे तो बॉलीवुड में पिछले कुछ समय से स्पोर्ट्स ड्रामा जॉनर काफी एक्सप्लोर किया जा रहा है. खासकर क्रिकेट और क्रिकेटर्स पर कई बायोपिक बन चुकी हैं. लेकिन जेंटलमैन गेम को एक अलग पहचान देने की कोशिश शाबाश मिथु के जरिए की गई है. फिल्म इंडियन क्रिकेट वुमन टीम की कप्तान मिताली राज के जीवन पर आधारित है.
स्टोरी
कहानी 1990 के टाइम फ्रेम में पहुंचती है, जहां मिताली और नूरी की दोस्ती भरतनाट्यम की क्लास में होती है. मिताली जहां नूरी को डांस सीखाती हैं, तो वहीं नूरी मितु को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित करती है. गली में लड़कों संग क्रिकेट खेल रही मिताली और नूरी पर कोच संपत (विजय राज) की नजर पड़ती है, जहां वे इन दोनों को अपने यहां ट्रेनिंग में रख लेते हैं. ट्रेनिंग के दौरान नूरी अपने घर वालों से सात साल तक क्रिकेट प्रैक्टिस की बात छुपाती है, वहीं मिताली अपने परिवार के सपोर्ट से रोजाना ट्रेनिंग के लिए एकेडमी जाती है. नेशनल टीम में सिलेक्शन के दौरान नूरी का निकाह हो जाता है और मिताली इंडियन टीम का हिस्सा बन जाती है. फिल्म मिताली के दमदार क्रिकेट परफॉर्मेंसेज, उनके कप्तान बनने का सफर और क्रिकेट बोर्ड से होने वाली अनबन आदि को लेकर आगे बढ़ती है. दरअसल कहानी जेंटलमेन का गेम कहे जाने वाले क्रिकेट में वुमंस टीम को बराबर का हक दिलाने की जद्दोजहद पर आधारित है. इस दौरान कैसे मिताली अपनी कप्तानी में क्रिकेट टीम को वर्ल्डकप फाइनल तक पहुंचाती हैं, ये देखने के लिए आपको थिएटर जाना होगा.
डायरेक्शन
बायोपिक को लेकर हमेशा से एक डिबेट रही है कि इसके जरिए किरदार को हमेशा ग्लोरिफाई किया जाता है. डायरेक्टर सृजित मुखर्जी की इस फिल्म में भी मिताली राज एक हीरो के रूप में नजर आती हैं. फिल्म के पहले हाफ की बात करें, तो इसमें कई ऐसे सीन्स हैं, जो आपको इमोशनल कर देते हैं. नूरी का आठ साल तक घर से छुपाकर क्रिकेट खेलना और इंडियन टीम सिलेक्शन के दिन उसका निकाह हो जाना यह दर्शाता है कि हमारे देश में ऐसी कितनी ही नूरी होंगी जिनके सपने शादी पर आकर टूट जाते हैं. प्रैक्टिस के दौरान कोच विजय राज का मिताली के जूते पर कील ठोककर उसे सिखाना, गुरु-शिष्य के अनोखे रिश्ते को जाहिर करता है. वहीं इंटरवल से ठीक पहले एयरपोर्ट का वह सीन जहां फीमेल क्रिकेटर अपने सूटकेस से गर्म कपड़े निकालकर लगेज को बैलेंस करने की कोशिश कर रही हैं, तो दूसरी ओर पूरी सिक्योरिटी और इंडिया.. इंडिया.. नारों के साथ मेल क्रिकेटर्स को मैच के लिए रवाना किया जा रहा है. ये सीन आपको कचोटते हैं. वहीं सेकेंड हाफ पूरी तरह से क्रिकेट और अचीवमेंट्स पर फोकस्ड है. स्क्रीन पर जरूरत से ज्यादा क्रिकेट मैच दर्शाना, कहीं न कहीं आपको बोर कर सकता है. वर्ल्डकप का फिनाले हारी हुई क्रिकेटर अंत में कैसे हीरो बनती है, ये देखकर रोमांच पैदा होता है.
टेक्निकल और म्यूजिक
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी सिरशा रे ने की है. कहानी को कैमरे में सिरशा ने बखूबी उतारा है. चाहे वो क्रिकेट ग्राउंड का मैच हो या हैदराबाद स्थित एक छोटा सा घर, हर फ्रेम पर फिल्म खूबसूरत लगी है. वहीं एडिटिंग के मामले में श्रीकर प्रसाद थोड़ी और मेहनत करते, तो फिल्म और भी क्रिस्प बन सकती थी. कहानी कहीं-कहीं खिंची लगती है, जिसे एडिट कर चुस्त बनाया जा सकता था. म्यूजिक में अमित त्रिवेदी से जो उम्मीद की जाती है, उसमें वे खरे उतरते नजर नहीं आते हैं. एक स्पोर्ट्स फिल्म में जज्बे और जुनूनियत पर गाने फिल्म की जान होते हैं. यहां गाने आपके अंदर की आग को नहीं जगा पाते हैं.
एक्टिंग
फिल्म के सभी किरदारों ने एक से बढ़कर एक परफॉर्मेंस दी है. तापसी पन्नू की बात करें, तो मितु के किरदार में उनकी मेहनत साफ झलकती है. उन्होंने उस किरदार के लिए खुद को झोंक दिया था, जिसका परिणाम स्क्रीन पर नजर आता है. हालांकि कुछ इमोशंस सीन के दौरान उनके एक्सप्रेशन बहुत स्ट्रेट नजर आते हैं, अगर उन्हें नजरअंदाज करें, तो ओवरऑल अच्छी परफॉर्मेंस रही. विजय राज ने कोच की भूमिका में एक बार फिर साबित कर दिया है कि रोल चाहे जो भी हो, वे उसे बड़ी ही सहजता से जी जाते हैं. यहां सरप्राइज करती हैं, छोटी मिथु (इनायत वर्मा) और नूरी (कस्तुरी जगनाम), जिन्होंने गजब की परफॉर्मेंस दी है. फिल्म की कास्टिंग का श्रेय मुकेश छाबड़ा को जाता है, जिन्होंने बहुत ही परफेक्ट कास्ट के साथ फिल्म का धागा पिरोया है.
क्यों देखें?
जेंटलमैन्स गेम और जेंटलमैन क्रिकेटरों को आपने सिल्वर स्क्रीन पर बहुत मौका दिया है, पहली बार महिला क्रिकेट और क्रिकेटरों के बारे में बात हो रही है. ऐसे में इस फ्रेश कहानी को थिएटर में देखना बनता है. क्रिकेट प्रेमी इसे देख सकते हैं. फिल्म के कुछ लूप-होल्स को नजरअंदाज करें, तो फिल्म आपको निराश नहीं करेगी. पैरेंट्स अपनी बेटियों को ट्रीट के रूप में यह फिल्म दिखा सकते हैं.