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Taam Review: बदलते बनारस में फैलते अंधकार को दिखाती है फिल्म ताम

इस नए बनारस ने अपनी ही प्राचीन हड्डियों को गलाकर अपनी नींव साधी है. इस नए बनारस ने पुराने को उखाड़-उजाड़कर नयापन भरने की कोशिश की है. यह बदलाव न तो सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहरों के रौंदे गए सवालों का जवाब देता है और न ही उस बनारसीपन के परिपेक्ष्य में कहीं खड़ा हो पाता है जिसको मिटाकर एक औपचारिक, कुलीन, वैश्विक बनारस गढ़ने की कोशिश की जा रही है.

ताम मूवी पोस्टर ताम मूवी पोस्टर
पाणिनि आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 7:37 AM IST
  • बनारस पर बनी शॉर्ट फिल्म है ताम
  • गौरव सिंह और विश्वनाथ तिवारी ने किया है निर्देशन

पिंक फ्लायड के संगीत में जो सबसे प्रसिद्ध गीत हैं उनमें से एक है शाइन ऑन यू क्रेज़ी डायमंड. और इसी गीत के एल्बम का प्रमोशन बैनर है- डार्क साइड ऑफ मून. बनारस बदल रहा है. बदलते बनारस के लिए ये दोनों ही पंक्तियां आज सच हैं.

एक वो बनारस है जो बदलने और विकास के क्रम में नए चेहरे के साथ लोगों से रूबरू है. उसे सजाया जा रहा है. संवारा जा रहा है. नया किया जा रहा है. लेकिन इस नए बनारस ने अपनी ही प्राचीन हड्डियों को गलाकर अपनी नींव साधी है. इस नए बनारस ने पुराने को उखाड़-उजाड़कर नयापन भरने की कोशिश की है. यह बदलाव न तो सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहरों के रौंदे गए सवालों का जवाब देता है और न ही उस बनारसीपन के परिपेक्ष्य में कहीं खड़ा हो पाता है जिसको मिटाकर एक औपचारिक, कुलीन, वैश्विक बनारस गढ़ने की कोशिश की जा रही है.

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ऐसे ही सवालों पर रौशनी डालती है हाल ही रिलीज़ हुई फिल्म ताम. ताम यानी अंधकार, बदलाव के पीछे का विनाश, दोष या विकार. और इसी नाम में निहित है फिल्म की कथावस्तु और प्रस्तुति. फिल्म बनारस के दोनों तरह के विकारों को सामने रखती है. एक वो जो पहले से निहित हैं. जो परंपराओं की गांठ में बंधे हुए हैं और अनुशासन की अनिवार्य शर्तों में सबकुछ छिपाते हुए आगे बढ़ रहे हैं. और दूसरा वह जो बदलने से पैदा हुआ है.

ताम मूवी का पोस्टर

ताम में काशी कॉरिडोर के काम के कारण तोड़ा-उखाड़ा जा रहा बनारस दिखता है. ध्वस्त होते मंदिर, घर और अतीत की वो गलियां जो काशी की पहचान हैं, जहां असली काशी सांस लेता रहा और जीता रहा. इस कॉरीडोर के पीछे की मंशा बनारस को सुगम और सुंदर बनाने की है. लेकिन शिव और काशी, दोनों को ही सुंदरता के अपने चश्मे से देखना दरअसल इन दोनों के साथ अन्याय जैसा है. काशी का अपना एक सौंदर्य है. उसे पत्थर लगाकर या खोल-उधेड़कर हासिल नहीं किया जा सकता. जितनी तंग गलियां हैं, उतना व्यापक है काशी और उसका दैनिक जीवन. खासकर वो इलाका जहां आधुनिक भारत का सौंदर्यशास्त्र अपनी जेसीबी से पुराना उलटकर नया खड़ा करने को आमादा है.

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ताम उस बनारस की ओर इशारा करती है जिसके लिए कहा जाता है- काशी केन मीयते. यानी काशी के समतुल्य क्या ही हो सकता है. यही एक बोध है जो काशी को किसी अंतरराष्ट्रीय शहर जैसा बना देने की व्याकुलता को खारिज कर देता है. लेकिन जब वो व्याकुलता लाद दी जाए तो काशी क्या करे. काशी करवट ले रहा है. बदल रहा है. जबरन. ताम उसी की बानगी है.

ताम के निर्देशक विश्वनाथ तिवारी बताते हैं, “कोरोना और प्रशासन के प्रतिबंधों के बीच इस फिल्म को रियल लोकेशन में शूट कर पाना एक असंभव काम जैसा था. किसी ने भी इस बदलते काशी को दिखाया नहीं था. बाकी निर्देशकों के लिए काशी का मतलब घाट और गंगा आरती तक सीमित रह गया है. इसीलिए इन चुनौतियों के बावजूद इस फिल्म को बनाना एक जरूरत बन गया था जिसे हमने पूरा करने की कोशिश की है.”

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फिल्म का निर्देशन किया है विश्वनाथ तिवारी और गौरव सिंह ने. रंगकर्मियों ने और स्थानीय लोगों ने अपने कौशल के अनुरूप अभिनय किया है. सीमित संसाधनों और प्रतिबंधों के बीच रियल लोकेशन शूट करने की चुनौती वास्तव में एक जटिल काम था और इस लिहाज से भी ये फिल्म अद्भुत है क्योंकि यह काशी को किसी स्टूडियो में नहीं, असली लोगों और असली लोकेशन के साथ दिखा रही है. यही कारण है कि ये एक फिक्शन होते हुए भी एक रियल स्टोरी लगती है जिसका फॉर्मेट डॉक्यूमेंट्री वाला है. फिलहाल ये फिल्म एमएक्स प्लेयर पर और हंगामा प्ले के अलावा यू-ट्यूब पर भी उपलब्ध है.

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