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Chatrapati Review: बॉलीवुड की पैकिंग में लपेट कर दे दी ये साउथ फिल्म! दमदार है एक्शन लेकिन...

Chatrapati Film Review: 2005 में एस एस राजामौली और प्रभास की जोड़ी ने साथ मिलकर छत्रपति फिल्म बनाई थी. लगभग 18 साल बाद वही टाइटिल पर बॉलीवुड अंदाज में एक्टर बेल्लमकोंडा श्रीनिवाशन यह फिल्म लेकर आ रहे हैं.

छत्रपति पोस्टर छत्रपति पोस्टर
नेहा वर्मा
  • मुंबई,
  • 12 मई 2023,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST
फिल्म:छत्रपति 
2/5
  • कलाकार : बेल्लमकोंडा श्रीनिवाशन, नुसरत भरुचा, भाग्यश्री, शरद केलकर
  • निर्देशक :वीवी विनायक 

साउथ सिनेमा का रीमेक बॉलीवुड बनाता रहा है. एक फॉर्म्यूले के तहत कोई बॉलीवुड स्टार वहां की सुपरहिट फिल्मों को चुनता है और उसकी हुबहू कॉपी बना हिंदी बेल्ट की दर्शकों को परोस देता है. लेकिन इस बार थोड़ा अलग हुआ है. हुआ ये कि साउथ के ही एक एक्टर ने वहां की ही सुपरहिट फिल्म को लगभग 18 साल बाद हिंदी में बनाकर इससे अपने डेब्यू का जरिया चुना है. हम बात कर रहे हैं 2005 में आई राजामौली के डायरेक्शन में बनी प्रभास की फिल्म छत्रपति की. अब इसी फिल्म को थोड़ा ट्विस्ट कर यंग ब्रिगेड के एक्टर बेल्लमकोंडा श्रीनिवाशन लेकर आए हैं. 

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कहानी
बंटवारे के बाद शिवा (बेल्लमकोंडा श्रीनिवाशन) अपनी सौतेली मां(भाग्यश्री) और छोटे भाई अशोक(करण छाबड़ा) के साथ पाकिस्तान के समुद्र किनारे इलाके में बस चुका है. हालांकि वहां बसे शरणार्थी को अब भी चैन नहीं है. आए दिन वहां के लोगों के बीच दंगे होते रहते हैं. एक वक्त ऐसा आता है कि इस दंगे की आग में शिवा अपनी मां और भाई से बिछड़कर भारत के गुजरात में पहुंच जाता है. शिवा के साथ पहुंचे शरणार्थी गुजरात के उस इलाके में एक दंबग गुंडे के चुंगल में रहने को मजबूर हो जाते हैं. अब कहानी यहां से ट्विस्ट और टर्न लेते हुए आगे बढ़ती है, जहां शिवा से उसके छत्रपति बनने की जर्नी दिखाई जाती है. कैसे शिवा छत्रपति बनता है? क्या वो अपनी मां को ढूंढने में सफल हो पाता है? यह सब जानने के लिए थिएटर की ओर रुख करें. 

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डायरेक्शन
बाहुबली जैसी फिल्में करने से पहले राजामौली और प्रभास ने पहली बार 2005 में फिल्म छत्रपति में साथ काम किया था. उस वक्त यह फिल्म क्रिटिक्स के मायनों पर खरी उतरी थी और बॉक्स ऑफिस पर भी हिट साबित हुई थी. लगभग 18 साल बाद इसी टाइटिल के साथ डायरेक्टर वीवी विनायक इस फिल्म को लेकर आए हैं. राजामौली की फिल्म को रीमेक करने का यह रिस्क विनायक के लिए भारी पड़ता दिखा है. फिल्म एक फॉर्म्यूला के तहत सिमट कर रह जाती है. हुबहू स्क्रीन पर कॉपी हुई सीन्स में कुछ अनोखा नजर नहीं आता है. नतीजतन छत्रपति भी एक कॉपी पेस्ट फिल्म बनकर रह गई है. फर्स्ट हाफ के बीस मिनट को कुर्सी में बैठकर निकाल पाना वाकई में टॉर्चर सा लगता है. वन लाइनर्स भी इतने हल्के हैं कि क्रिएटिविटी पर हंसी आए.

हालांकि जब एक्शन का सीक्वेंस आता है, तो बेशक थोड़ा रोमांच जगता है. अगर कहानी को साइड हटा दिया जाए, तो फिल्म का एक्शन दमदार है. एक-एक फाइट सीक्वेंस को बेल्लमकोंडा ने पूरे स्वैग के साथ निभाया है. एक्शन कोरियोग्राफर के मेहनत की दाद देनी होगी. कहानी के पक्ष में फिल्म बेहद कमजोर जान पड़ती है. एक इमोशनल स्टोरी होने के बावजूद कहीं भी दर्शकों के अंदर इमोशन जगते नजर नहीं आते हैं. बहुत ही सतही सी स्टोरी लगने लगती है. ओवरऑल राजामौली के डायरेक्शन में बनी उस छत्रपति की तुलना इससे करें, तो फिल्म औसत तक सीमित रह जाती है. भले ही बॉलीवुड अंदाज में इसे परोसने की भरपूर कोशिश की गई हो, लेकिन स्वाद में तो पूरा साउथ इंडियन फ्लेवर ही मिलता है. 

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टेक्निकल 
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष उसका एक्शन डिपार्टमेंट है. दमदार एक्शन ने कमजोर कहानी को एक राहत दी है. फिल्म के सारे फाइट सीक्वेंस आंखों को ट्रीट जैसे लगते हैं. एक्शन कोरियोग्राफर की मेहनत स्क्रीन पर साफ नजर आती है. वहीं सिनेमैटिकली फिल्म खूबसूरत लगती है लेकिन कहानी इतनी कमजोर लगती है कि आपका ध्यान उसकी भव्यता पर नहीं जाता है. गानों का फिल्मांकन बहुत आला दर्जे पर किया गया है, पर अफसोस गाने के लिरिक्स और म्यूजिक आपके दिल में कोई खास जगह नहीं बना पाते हैं. फिल्म के एडिटिंग पक्ष में भी थोड़ा काम होना चाहिए था, मसलन फर्स्ट हाफ के शुरुआत के कुछ ड्रैग्ड सीन्स को हटा दिया जाता, तो शायद फिल्म क्रिस्प होने की वजह से अच्छी लगती. 


एक्टिंग 
साउथ एक्टर बेल्लमकोंडा श्रीनिवाशन इस फिल्म से अपना बॉलीवुड डेब्यू करने जा रहे हैं. बेल्लकोंडा की मेहनत स्क्रीन पर साफ दिख रही है. एक्शन सीक्वेंस के दौरान उनका स्वैग वाकई काबिल ए तारीफ है. बेल्लमकोंडा में एक परफेक्ट एक्टर की वो सारी खूबी साफ नजर आती है. पर इस फिल्म के इमोशन सीक्वेंस में वो काफी कमजोर नजर आए हैं. एक बिछड़े हुए बेटे के इमोशन को इमोट करते वक्त कई जगह बेल्लमकोंडा फ्लैट लगे हैं. नुसरत भरुचा एक बेहतरीन अदाकारा हैं, ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिल पाने के कारण उनका किरदार एक ग्लैमरस बनकर रह जाता है. मां के रूप में भाग्यश्री का काम ऑन पॉइंट रहा है. छोटा भाई बने जसकरण छाबड़ा ने अपने कैरेक्टर के ग्राफ को बखूबी पकड़ा है. शरद केलकर एक जहीन एक्टर हैं, उन्होंने विलेन के रूप में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. पर अफसोस स्क्रीनप्ले इतना कच्चा है कि उनका किरदार भी वो इंपैक्ट नहीं छोड़ पाता है. 

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क्यों देखें 
फुल टू मसाला फिल्म है. एक बेहतरीन एक्शन एक्सपीरियंस के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है. अगर आपने राजामौली और प्रभास की छत्रपति देखी है, तो शायद तुलना करने के बाद निराशा हाथ लगे. ओवरऑल पारिवारिक फिल्म है, जिसका लुत्फ फैमिली के साथ बैठकर उठाया सकता है. 

 

 

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