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मोटिवेशनल फिल्म और सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्मों में एक चीज ज्यादातर कॉमन रहती है....फील गुड फैक्टर....ये फैक्टर कहने को छोटा लगता है, सिर्फ एक अहसास होता है, लेकिन जब आप फिल्म देखते हैं और अगर आपको कुछ खामियां भी क्यों ना नजर आ जाएं, ये फील गुड फैक्टर ही सबकुछ कंपनसेट कर देता है और आप थिएटर से मुस्कुराते हुए बाहर आ जाते हैं. डायरेक्टर मृदुय महेंद्र की फिल्म तुलसीदास जूनियर का जब ट्रेलर आया, तब भी ये फीलिंग आई थी. अब फिल्म भी रिलीज हो गई है, तो इस बात में कितनी सच्चाई है, जान लेते हैं.
कहानी
मेकर्स की माने तो तुलसीदास जूनियर सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म है. किरदार भी असल जिंदगी वाले ही हैं. ये कहानी पिता-पुत्र के रिश्ते के ऊपर है. पिता का सपना, बेटे को पूरा करना है और साथ चलता एक संघर्ष. तुलसीदास सीनियर (राजीव कपूर) एक बेहतरीन स्नूकर प्लेयर है. कोलकाता क्लब में होने वाले हर साल स्नूकर कॉम्टीशन में हिस्सा लेता है. फाइनल तक भी पहुंचता है, लेकिन जीत सिर्फ जिम्मी टंडन (दलीप ताहिर) की होती है. लेकिन तुलसीदास का बेटा जूनियर अपने पिता को हारते हुए नहीं देख सकता है. उनकी हार में वो अपनी हार देखने लगता है. पिता शराब का भी आदी है, ऐसे में परिवार भी बिखरता चला जाता है. लेकिन यहीं पर टर्निंग प्वाइंट आता है. पिता की हार का बदला लेने का मन उसका बेटा (वरुण बुद्धदेव) बना लेता है.
स्नूकर खेलना नहीं आता है, लेकिन सीखने की ललक जग जाती है. फिर वहीं कहानी है जहां राह वहां चाह वाली...जूनियर अपने बड़े भाई के साथ मिलकर खुद के लिए एक कोच ढूंढने निकल जाता है. कई जगहों पर जाता है, खूब धक्के खाता है और आखिर में उसकी मुलाकात मोहम्मद सलाम या कह लीजिए सलाम भाई (संजय दत्त) से हो जाती है. नेशनल लेवल के बेस्ट स्नूकर प्लेयर बताए गए हैं. किसी जमाने में इन्हें कोई हराने वाला नहीं था. अब वहीं सलाम भाई उस छोटे जूनियर को स्नूकर सिखाते हैं और उसकी जिंदगी को नए पर लगाने का काम करते हैं. अब कैसा रहता है ये सफर...जूनियर को कितना संघर्ष करना पड़ता है....पिता का सपना क्या पूरा कर पाता है जूनियर....यहीं सब सवाल है और इसी के इर्द-गिर्द घूमती है तुलसीदास जूनियर की कहानी.
छोटा बजट, फिर भी कमाल
बिना ज्यादा पैसा खर्च किए....बिना बड़े सेट बनाए और बिना कोई ज्यादा बड़ी स्टार कास्ट के भी सही फिल्म दर्शकों तक डिलीवर की जा सकती है. बहुत कमाल ना भी हो....लेकिन एंड में अगर हंसते हुए हॉल से बाहर आ रहे हैं, तो डायरेक्टर की तारीफ कर सकते हैं. तुलसीदास जूनियर देखने के बाद ये फीलिंग आती है. शुरुआत थोड़ी से धीमी लगती है....क्रिटिकल दिमाग है....इसलिए कुछ खामियां भी दिखने लगती हैं...लेकिन जैसे-जैसे ये सफर आगे बढ़ता है, कमियों को नजरअंदाज करने वाला दौर शुरू हो जाता है और आप इस कहानी के साथ जुड़ जाते हैं.
सभी का बढ़िया काम, बच्चे का धमाल
तुलसीदास जूनियर को उसकी सिंपल कहानी के साथ अच्छी स्टाकास्ट भी मिली है. राजीव कपूर की कमबैक फिल्म ये बताई गई थी. अब वे तो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन इस फिल्म में सराहनीय काम कर गए हैं. फिल्म में उनका रोल थोड़ा सीमित रखा गया है, लेकिन कहानी के लिहाज से सही लगता है. वैसे कहने को इस फिल्म को प्रमोट ये कहकर किया गया कि ये राजीव कपूर की आखिरी फिल्म है, लेकिन इसकी मेन अट्रैक्शन तो वरुण बुद्धदेव है जिसने तुलसीदास जूनियर का किरदार निभाया है. फिल्म में बच्चे का काम इतना शानदार रहा है कि आप सबकुछ भूलकर उसकी मासूमियत, मेहनत पर फिदा हो सकते हैं. बीच-बीच में तो ये बच्चा अजय देवगन टाइप वाली फीलिंग दे जाता है क्योंकि आंखों से एक्टिंग करता है. संजय दत्ता ने भी इस फिल्म में अपनी एक्टिंग स्किल का बखूबी इस्तेमाल किया है. कोच की भूमिका में जंच गए हैं और उनका हर जज्बात स्क्रीन पर निखरकर सामने आया है. उनकी वरुण संग बॉन्डिंग भी दिल को छू गई है. फिल्म में विलेन का रोल दिलीप ताहर निभा रहे हैं. स्नूकर प्लेयर के रोल में उनसे जितनी उम्मीद की गई, वो उतना काम कर गए हैं.
मोटिवेशन से भर देगी
फिल्म के डायरेक्शन की बात करें तो ये भी शुरुआती हिचकोलों के बाद बढ़िया लग गया है. आखिर के 20-25 मिनट तो ज्यादा ही अच्छे लगे हैं. कोलकाता की गलियों को भी बखूबी कैमरे के लैंस में कैद किया गया है, कुछ-कुछ छोटे ऐसे किरदारों पर फोकस रहा है जो अनजाने में भी कहानी को सही दम दे गए हैं.
अब हॉल में तो तुलसीदास जूनियर को ज्यादा स्क्रीन नहीं मिली है, ऐसे में जब ओटीटी पर आ जाए, तो एक बार देखी जा सकती है. थोड़ी बहुत मोटिवेशन, थोड़ी बहुत हंसी और थोड़ी बहुत पॉजिटिविटी मिल सकती है.