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Ulajh Review: सस्पेंस के नाम पर मिलेगी बोरियत, जाह्नवी कपूर की एक्टिंग देख दिमाग जाएगा 'उलझ'

जाह्नवी कपूर की नई फिल्म 'उलझ' को देखने के बाद एक लाइन में अगर इसका रिव्यू देना होगा तो मैं कहूंगी कि ये बहुत उलझी हुई फिल्म है. 'क्यों', 'कैसे', 'ऐसा इसमें क्या है?', रिव्यू पढ़कर जान लो ब्रदर.

जाह्नवी कपूर जाह्नवी कपूर
पल्लवी
  • नई दिल्ली,
  • 02 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 3:46 PM IST
फिल्म: उलझ
1.5/5
  • कलाकार : जाह्नवी कपूर, गुलशन देवैया, रोशन मैथ्यू, आदिल हुसैन
  • निर्देशक : सुधांशु सरिया

जाह्नवी कपूर की नई फिल्म 'उलझ' को देखने के बाद एक लाइन में अगर इसका रिव्यू देना होगा तो मैं कहूंगी कि ये बहुत उलझी हुई फिल्म है. 'एक्साइटिंग' उलझी हुई नहीं, 'बोरिंग' उलझी हुई.

कहानी से शुरुआत करते हैं. फिल्म की कहानी सुहाना भाटिया (जाह्नवी कपूर) नाम की लड़की पर आधारित है. सुहाना भारत के फेमस डिप्लोमैट वनराज भाटिया (आदिल हुसैन) की बेटी हैं. उनके दादा यूएन में इंडिया की तरफ से रिप्रेजेंटिव थे, जिनका नाम भारत के बच्चों की सिविक्स की किताबों में लिखा जाता है. तो टोटल बात ये है कि सुहाना एक स्ट्रॉन्ग पॉलिटिकल परिवार से हैं. लेकिन उनका किरदार 'एनिमल' के रणविजय सिंह के बराबर का ही है. वो ड्रिंक भी अपने पापा की पसंद की ही पीती है.

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सुहाना भाटिया को तगड़े डैडी इश्यू हैं. बेटी को उसके काम और दिमागी सोच के चलते छोटी उम्र में डिप्टी हाई कमिश्नर बना दिया गया है, लेकिन सुहाना के पिता जी को खास खुशी नहीं है. सुहाना रोते हुए उन्हें खुद में विश्वास करने को कहती है और फिर आगे ऐसी-ऐसी बेवकूफी करती है कि आप सोचते हैं कि इसके पापा सही हैं, भरोसे लायक तो नहीं हैं ये. 

सुहाना को बड़ी पोस्ट मिलने के बाद उसका ट्रांसफर लंदन में हो जाता है. यहां उसे अपना पर्सनल ड्राइवर मिलता है, जिसका नाम है सलीम (राजेश तैलंग). सलीम का कहना है कि अनजान शहर में वो सुहाना का ख्याल रखेगा. अगर जरूरत पड़े तो सुहाना उसे आधी रात को भी बुला सकती है. ऐसे में जब सुहाना के चेहरे पर शिकन नजर आती है तो वो तुरंत मदद ऑफर कर देता है. आपको तभी पता चल जाता है कि सलीम सीधा आदमी तो नहीं है. इतनी प्रेडिक्टेबल ये पिक्चर है. 

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सुहाना इतनी बड़ी एम्बेसी में काम करने के बावजूद बिना जाने और समझे एक अनजान आदमी को अपना दिल दे बैठती है. ये अनजान आदमी अपना नाम नकुल (गुलशन देवैया) बताता है. लेकिन नकुल की प्यारी-प्यारी और मीठी-मीठी बातों में उलझी सुहाना उसका बैकग्राउंड चेक करना ही भूल जाती है. अब डिप्लोमैट होकर अगर आप किसी भी ऐरे-गैरे के साथ घूमोगे और उसके रातें बिताओगे तो क्या होगा? जो आप सोच रहे हैं वही. नकुल, सुहाना की बेवकूफी का फायदा उठाकर उसे ब्लैकमेल करता है. दबाव में आकर सुहाना भारत के जरूरी और गोपनीय डॉक्यूमेंट्स को लीक करना शुरू कर देती है. अब उसका करियर दांव पर लग गया है. साथ ही उसके 'पापा' की इज्जत और पोजीशन पर भी बन पड़ी है.

सुधांशु ने ये क्या किया?

डायरेक्टर सुधांशु सरिया ने इस फिल्म का निर्देशन किया है. Loev (2015) और सना (2023) जैसी फिल्में बना चुके सुधांशु की इस फिल्म को देखकर लगता है कि वो पहली बार किसी फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं. फिल्म की कहानी परवीज शेख के साथ मिलकर सरिया ने ही लिखी है. इसके कुछ हिस्से देखकर आपको लगता है कि हां, हो सकता है कि पेपर पर ये कहानी दिलचस्पी और रोमांच से भरी लगी हो. लेकिन स्क्रीन पर इसे उतारना अलग चीज है. और इसके बहुत सारे हिस्से एकदम घिसे-पिटे हैं.

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एक बड़ी पोजीशन पर बैठा इंसान, जो माइनर बेवकूफी करता है और फिर उसकी वजह से अलग-अलग दिक्कतों का सामना उसे करना पड़ता है. ये सब हम न जाने कितनी बॉलीवुड फिल्मों में अलग-अलग स्टाइल में देख चुके हैं. लीड किरदार का दिमाग वैसे बहुत तेज है, लेकिन जब प्लॉट को जरूरत है वो दुनिया का सबसे लल्लू इंसान बन जाएगा. और फिर जब मुसीबतों के दरिया में वो सिर से पैर तक डूबा हो, तो उसे याद आता है कि अरे मेरे पास तो चाचा चौधरी का दिमाग है, चलो विलेन को पकड़ें. 

उलझ को काफी बोरिंग अंदाज में बनाया गया है. इसका स्क्रीनप्ले इतना ढीला है कि आप इसके खत्म होने का इंतजार करते हैं. पिक्चर का एक घंटा बीतने तक आपको समझ आ जाता है कि इसका नाम 'उलझ' क्यों है, क्योंकि डायरेक्टर क्या दिखाना चाहते हैं, एक्टर्स क्या किरदार निभा रहे हैं और स्क्रीन पर क्या ही हो रहा है, इन सबके बीच आप उलझे ही रहते हैं. फिर आपको समझ आता है कि ये सब मिलकर हमें पागल बना रहे हैं. मेकर्स को लग रहा है कि ऑडियंस को क्या ही पता चलेगा कि हम इन्हें बुद्धू बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

जाह्नवी में नहीं दम

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फिल्म के किरदारों में कोई खास दम नहीं है. इसका सबसे वीक पॉइंट इसकी लीड हीरोइन जाह्नवी कपूर हैं. जाह्नवी ने सुहाना के किरदार को बिल्कुल उसी एनर्जी के साथ निभाया है, जिस एनर्जी के साथ सुहाना खान ने 'द आर्चीज' में वेरोनिका के किरदार को निभाया था. उनकी डायलॉग डिलीवरी काफी इरिटेटिंग है. उनके काम में कोई खास दम नहीं है. एक्टिंग के नाम पर जाह्नवी को अपनी आंखों में आंसू भरकर फ्लैट डायलॉग डिलीवरी करना जरूर आता है. हर सीन में उनके एक्सप्रेशन लगभग सेम हैं. कुछ सीन्स में निकली उनकी चींखें आपके कानों को फाड़ देती हैं. 

जाह्नवी कपूर के किरदार के बारे में जितनी बात की जाए कम है. एक सीक्वेन्स में सुहाना भाटिया को एक मेजर डीटेल मिलती है. ऐसे में वो उस शख्स के पास जाती है, जिसने उसे धोखा दिया है. पहले उससे भिड़कर उसे मार देती है और फिर उसकी निकलती जान के बीच उससे पूछती है कि 'आपने ऐसा क्यों किया?', 'मेरी डॉक्यूमेंट कहां है?', 'आप किसके लिए काम करते हैं?' अब मैं एक्सपर्ट तो नहीं हूं, लेकिन बहन ये सब बातें आदमी जब जिंदा हो तब उससे करते हैं.

फिल्म में गुलशन देवैया हैं, जिन्होंने नकुल का किरदार निभाया है. नकुल के कई नाम और कई पहचान हैं, जिनमें गुलशन ने कमाल किया है. जाह्नवी संग रोमांस से लेकर विलेनगिरी तक, गुलशन ने जबरदस्त तरह से अपने रोल को निभाया है. एक्टर मियांग चैंग, रोशन मैथ्यू, आदिल हुसैन संग अन्य ने भी अपने किरदारों में जान डाली है. चैंग से जुड़ा एक सीन फिल्म के बेस्ट सीन्स में से एक है. 'उलझ' में एलेना नाम का एक सिर खाऊ किरदार भी है, जिसे कोई गोली मार देता तो मजा आ जाता. बस और बात मुझे इस पिक्चर के बारे में नहीं करनी.

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