
दिल चाहता है, जिंदगी न मिलेगी दोबारा जैसी दोस्ती यारी को समर्पित फिल्में बॉलीवुड समय-समय पर लाता रहा है. मगर सूरज बड़जात्या अगर दोस्ती पर कोई फिल्म लेकर आ रहे हैं, जो जाहिर है उनमें उनका अंदाज जरूर नजर आएगा. ऊंचाई भी दोस्ती पर ही एक खूबसूरत फिल्म है लेकिन यहां स्टोरी यूथ की नहीं बल्कि यहां उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके चार बुजुर्ग दोस्तों की है. उनकी फ्रेंडशिप का सेलिब्रेशन है.
कहानी
दिल्ली में रहने वाले चार दोस्त अमित श्रीवास्तव(अमिताभ बच्चन), भूपेन (डैनी डेंजोंगप्पा), ओम(अनुपर खेर) और जावेद(बोमन ईरानी) अपनी मशरूफ जिंदगी से हमेशा वक्त निकालकर एक दूसरे के साथ बर्थडे सेलिब्रेट करते हैं. अमित जहां सक्सेसफुल लेखक हैं, तो वहीं ओम अपनी किताबों की दुकान चलाते हैं. जावेद का भी कपड़ों का कारोबार है और भूपेन एक क्लब के न केवल ओनर बल्कि शेफ भी हैं. भूपेन एक लंबे समय से अपने दोस्तों को अपनी जन्मभूमि नेपाल की पहाड़ों पर ले जाना चाहता है. हालांकि अक्सर दोस्त टालते रहे हैं.
जन्मदिन के दिन भूपेन उनसे हिमालय के बेस कैंप पर ले जाने की प्लान का जिक्र भी करता है, फिर पार्टी के दौरान बात आई-गई हो जाती है. अगली सुबह भूपेन की कार्डियाक अरेस्ट की वजह से भूपेन की अचानक मौत हो जाती है. जाते हुए अपने दोस्तों के बीच एक अधूरा सपना छोड़ जाता है. तीनों दोस्त भूपेन की अस्थियों को एवरेस्ट पर विसर्जन करने का फैसला लेते हैं. बस यहीं से शुरू होती है उनकी खूबसूरत जर्नी और यहां उनके साथ माला(सारिका) जुड़ती हैं. क्या ये सभी अपने सफर में कामयाब हो पाते हैं? सफर के दौरान क्या दिक्कतें आती हैं? यह सब जानने के लिए फिल्म को थिएटर में जाकर देखें.
डायरेक्शन
एक लंबे समय बाद सूरज बड़जात्या ने डायरेक्शन की कमान संभाली है. अपने प्रोडक्शन हाऊस राजश्री के जरिए दर्शकों के दिलों पर एक लंबे समय तक राज करने वाले सूरज के मिजाज से उनके फैंस भी वाकिफ हैं. लेकिन यहां सूरज एक डायरेक्टर के तौर पर सरप्राइज करते हैं क्योंकि फिल्म में राजश्री फ्लेवर बिलकुल भी नजर नहीं आता है. सूरज ने एक एक्स्पेरिमेंट के तौर पर यह फिल्म बनाई है. बता दें, फिल्म 2 घंटे 53 लेंथ की है. आज के फास्ट फॉरवर्ड मैगी वाले दौर में बिरयानी सी फील देती इस फिल्म में जाहिर है वक्त तो लगेगा ही. इस फिल्म के साथ मजेदार बात यह है कि इनके सफर में आप भी खुद को शामिल पाते हैं. इस सफर का हर पल इंजॉय करने लगते हैं.
रास्ते के दौरान लखनऊ के आलू की सब्जी वाले समोसे पर लगी फ्राई मिर्च के तड़के की खुशबू आपको भी महसूस होती है, कानपूर की ईमरती और मिठाईयां आपका भी मुंह मिठा करती जाती है. खैर, फर्स्ट हाफ में जहां कार में दिल्ली से गोरखपुर तक का सफर तय होता है और सेकेंड हाफ में काठमांडू पहुंचकर वहां से एवरेस्ट के बेस कैंप तक पहुंचती है. कोई भी सीन आपको बोझिल या जबरदस्ती ठूंसी नहीं लगती है. इस पूरी यात्रा के दौरान कुर्सी की पेटी से बंधे हुए होने के दौरान आप कहीं भी उकताते नहीं हैं. हर किरदार अपने साथ एक कहानी लेकर चलता है. रिश्तों में अनबन, पारिवारिक क्लेश, बच्चों संग डिफरेंस हर तरह के इमोशन से गुजरते हुए फिल्म आपको दोस्ती परिपक्वता और एक दूसरे की टांग खींचते दोस्त हंसाते भी हैं और कई बार आंखों में पानी दे जाते हैं. स्लाइस ऑफ लाइफ बयां करती यह कहानी आपको रिश्तों की अहमियत, दोस्ती का सेलिब्रेशन, ट्रैवलिंग एक्सपोजर आदि कई चीजों पर एक अच्छी सीख दे जाती है.
टेक्निकल
जितनी खूबसूरत कहानी उतना ही खूबसूरत उसका प्रोजेक्शन. स्क्रीन पर भी फिल्म भव्य और दिलकश लगती है. रोड ट्रिप के दौरान लखनऊ, आगरा, गोरखपुर का मिजाज हो या पहाड़ों के शॉट्स, ट्रेकिंग के दौरान छोटे-छोटे कैफ का मनोरम दृश्य सिनेमैटोग्राफर मनोज कुमार खटोई ने हर फ्रेम को परफेक्ट शूट किया है. सेल्यूलॉइड स्क्रीन पर आप हिमालय की वादियों को देखकर आपका भी मन एक बार जाने को जरूर करेगा. लगभग तीन घंटे की फिल्म पर लाजिम है एडिटिंग को लेकर सवाल किए जाएंगे लेकिन उम्दा स्क्रीनप्ले और बेहतरीन स्टारकास्ट इसपर भारी पड़ते हैं. अमित त्रिवेदी द्वारा दिए गए सभी गानें फिल्मों की जान हैं, और गानों से आप इमोशनली कनेक्ट हो जाते हैं. जॉर्ज जोशेफ द्वारा तैयार किया बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के इमोशन को और मजबूती देता है.
एक्टर्स
फिल्म की कास्टिंग के दौरान ही डायरेक्टर ने आधी लड़ाई जीत ली थी. अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर, बोमन ईरानी, डैनी, सारिका, नीना गुप्ता, परिणीति चोपड़ा कोई भी आपको निराश नहीं करता है. कहीं भी कोई किसी से उन्नीस या बीस नहीं साबित होता है. चार दोस्त और सबका अपना अंदाज, ये सभी ही हर फ्रेंड सर्किल में मिल जाएंगे मसलन हर एक्शन पर सवाल उठाने वाला दोस्त, अपने पार्टनर से डरने वाला दोस्त, प्लान कैंसिल करने वाला दोस्त, लेक्चर देना वाला दोस्त. नीना गुप्ता और सारिका भी इनकी दोस्तों की सर्किल में बिलकुल वैसे घुलती नजर आती हैं, जैसे पानी में चीनी. ट्रैक कोच के रूप में परिणीति ने अपना काम बेहतरीन किया है.
क्यों देखें
रिश्तों की अहमियत, दोस्ती का डेडिकेशन, जीवन के कुछ मूल ज्ञान को एंटरटेनमेंट के रूप में समझना है, तो एक बार फिल्म को मौका दें. दावा है लंबी होने के बावजूद फिल्म आपको बिलकुल भी निराश नहीं करेगी. बल्कि थिएटर से निकलने के बाद आप अपने दोस्तों को फोन कर एवरेस्ट ट्रेकिंग का प्लान जरूर बना सकते हैं. एक अच्छी साफ-सुथरी फिल्म है, जिसका लुत्फ परिवार संग थिएटर में जाकर उठाया जा सकता है.