
मुझे लगता है हम सभी ने अपनी जिंदगी में कोई न कोई ऐसी फिल्म जरूर देखी होगी, जिसको अपनी नजरों के सामने चलते देख मन में सवाल उठा होगा कि भई ये आखिर हो क्या रहा है? और जो भी हो रहा है वो क्यों हो रहा है? इस फिल्म को बनाने का मकसद आखिर क्या ही है? और मैं क्यों यहां सिनेमाहॉल में बैठकर अपने 2 से 3 घंटे बर्बाद कर रही हूं? राज कुंद्रा की फिल्म यूटी 69 उन्हीं फिल्मों में से एक है.
अगर आपने फिल्म का ट्रेलर देखा होगा तो आप जानते होंगे कि इसमें राज कुंद्रा के पोर्नोग्राफी केस में फंसने के बाद जेल जाने की कहानी को दिखाया गया है. और बस इतनी ही फिल्म है. अगर आप सोच रहे हैं कि इसमें आपको दिखाया जाएगा कि राज कुंद्रा जेल कैसे गए, क्या सही में वो एडल्ट फिल्में बनाते थे, जेल में उन्होंने अपने साथ हुए 'अन्याय' के बारे में लोगों को बताया, बाहर आने के बाद उन्होंने क्या किया, क्यों वो दुनियाभर में मास्क पहने घूमते रहे, उनके परिवार का हाल उनकी गैरमौजूदगी में कैसा था और भी कई सवाल जो लोगों के मन में हैं, उनका जवाब इस फिल्म में मिलेगा, तो आप गलत हैं.
फिल्म की शुरुआत में राज कुंद्रा कहते हैं कि मीडिया में उन्हें नंगा किया जा रहा था. ये सब देखकर उनका मन करता था कि वो प्रेस कॉन्फ्रेंस रखें और सबको सच-सच बता दें लेकिन उन्होंने असल जिंदगी और फिल्म दोनों में ऐसा नहीं किया. इस फिल्म की कहानी राज कुंद्रा के जेल जाने से शुरू होती है और उन्हें बेल मिलने पर खत्म हो जाती है. इसके बीच में जो भी हो रहा है उसे सहन कर पाना काफी मुश्किल है.
फिल्म देखते हुए आपको समझ आएगा कि शायद मुंबई के आर्थर रोड जेल में राज कुंद्रा के साथ कोई कैदी सही में रहा होगा, जिसने उन्हें कहा, 'राज भाई आप ये अपनी आर्थर रोड जेल पर फिलिम क्यों नहीं बनाते हो!' और राज ने उसे सीरियस ले लिया. क्योंकि यही तो फिल्म में हो रहा है. राज और उनका कैदी दोस्त मिलकर फिल्म बनाने के बारे में बात कर रहे हैं. इसमें कौन से कैदी का जिक्र होगा इसपर डिस्कशन हो रहा है. अलग-अलग कैदियों के जुर्मों के बारे में बताया जा रहा है. उनकी जेल की दिनचर्या दिखाई जा रही है.
फिल्म के ज्यादातर हिस्से को देखकर आपका मन खराब होता है. राज कुंद्रा इस पिक्चर से आपको जेल में रहने वाले कैदियों की तकलीफें दिखाना चाह रहे हैं, लेकिन फिल्म को देखते हुए आप उनसे सिम्पथी जताने के बजाए उल्टी करना पसंद करेंगे. मूवी के हर दूसरे सीन में या तो आपको गंदा टॉयलेट दिखाया जा रहा है या फिर किसी के अपना पेट साफ करने की आवाजें सुनाई जा रही हैं. जेल का खाना, उसमें कैदियों की हालत और हरकतें सब खराब हैं, लेकिन इसे देखकर आपका दिल पसीजता तो नहीं है. खराब जरूर होता है, क्योंकि इसी तरह की चीजें आपको बार-बार दिखाई जा रही हैं. फिल्म में आपको उल्टी दिलाने वाले सीन्स की कोई कमी नहीं है. ये आपको भरपूर मिलेंगे.
राज कुंद्रा की जेल में रहते हुए कमेंट्री भी ना सिर्फ आपको पकाती है बल्कि ये भी बताती है कि उनकी ये मूवी कितनी खोखली है. जैसे जेल में लोगों को देखकर राज सोचते हैं कि हमारे देश को कंडोम की जरूरत है. जेल के सेल में रहते हुए वो कैदियों की बीड़ी और सिगरेट के धुएं से परेशान होकर कहते हैं कि लोग फालतू ही बोलते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण ज्यादा है. यहां आकर देखो सांस लेना दूभर हो रहा है. अब राज को कौन बताएं कि इन दिनों दिल्ली में सांस लेने के साथ-साथ कुछ देख पाना भी लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है.
एक और बड़ी और बददिमागी वाली बात जो उन्होंने कही वो ये थी कि 'मुझे लगता है जिंदगी में सबको एक न एक बार जेल जाना चाहिए'. ताकि लोगों को जीवन की मुश्किलों को ढंग से समझने को मिले. लेकिन एक चीज जो आप अभी भी नहीं जान पाएंगे वो ये है कि इस फिल्म को बनाने का मकसद क्या था. क्या राज कुंद्रा अपनी इमेज साफ करना चाहते थे? क्योंकि इसमें वो नाकाम रहे. क्या वो ये दिखाना चाहते थे कि जेल कितनी भयावह जगह है? क्योंकि ये लोग पहले से ही जानते हैं. क्या वो ये दिखाना चाहते थे कि उन्होंने अपनी अभी तक की जिंदगी इतनी privileges के साथ जी है कि उन्होंने कभी गंदा टॉयलेट और सोन पापड़ी से बना केक नहीं देखा? क्योंकि इसमें वो सफल हुए हैं.
एक सवाल जिसका जवाब सब जानना चाहते हैं कि फिल्म का नाम यूटी 69 क्यों है. इसका जवाब भी दे देती हूं. यूटी माने अंडर ट्रायल. जब राज कुंद्रा जेल गए तब वो ट्रायल पर थे. और उनका कैदी नंबर 69 था. तो यूटी 69. बाकी आर्थर रोड जेल से बाहर आने के बाद राज कुंद्रा ने अधिकारियों को खत लिखकर कैदियों और जेल के हालत पर चिंता जताई थी. इसपर एक्शन भी लिया गया. ये पिक्चर के अंत में आपको बताया जाता है. अरे राज भैया अगर इतनी-सी बात आपको बतानी थी तो एक इंस्टाग्राम पोस्ट डाल देते. इतनी बड़ी फिल्म जड़ देने की क्या जरूरत थी?
खैर मुद्दे पर वापस आते हैं, एक्टिंग की भी बात कर लेते हैं. ट्रेलर देखकर लग रहा था कि राज कुंद्रा काफी अच्छे एक्टर साबित होंगे. ऐसा नहीं है लेकिन. उनका फेक ब्रिटिश एक्सेंट और उनकी बातें एकदम पकाऊ हैं. उन्होंने खुद इस फिल्म की कहानी को लिखा भी है. बाकी कलाकार भी फिल्म में बहुत खास नहीं. शिल्पा शेट्टी आपको फिल्म में टीवी पर दिख जाती हैं. और पति से जेल में फोन पर बात करती सुनाई दे जाती हैं. राज को अपने वकील भी इधर-उधर दिखाई देते रहते हैं, जिसका कोई मतलब नहीं. फिल्म के डायरेक्टर से लेकर एक्टर, सिनेमेटोग्राफर और अन्य नए हैं. ये मूवी देखकर तो आपको पता चल ही जाता है, लेकिन क्रेडिट्स में लिखकर कन्फर्म भी कर दिया गया है.
तो अगर आप राज कुंद्रा और दूसरे कैदियों का जेल में नहाना, लड़ना, बेल्ट खाना, छींकना, थूकना और डकारना सुनना और देखना चाहते हैं तो इसके बारे में सोचिए.