Advertisement

विश्वास की कहानी कहती है 'आदुजीविथम- द गोट लाइफ', कंकाल बन गए थे पृथ्वी सुकुमारन, जीत पाएगी ऑस्कर?

आदुजीविथम- द गोट लाइफ फिल्म को रिलीज हुए 10 महीने हो चुके हैं, बॉक्स ऑफिस पर इसने जबरदस्त कमाई की थी. लेकिन ऑस्कर नॉमिनेशन की रेस में शामिल होने पर फिल्म की चर्चा फिर से जोरों शोरों से होने लगी है. आइये आपका बताते हैं फिल्म में क्या खास है, और क्यों इसकी चर्चा होना लाजिमी भी है.

आदुजीविथम में पृथ्वीराज सुकुमारन, अमला पॉल आदुजीविथम में पृथ्वीराज सुकुमारन, अमला पॉल
आरती गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 23 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST

ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन की रेस में मलयालम सिनेमा की चर्चित फिल्म 'आदुजीविथम- द गोट लाइफ' भी शामिल है. इस फिल्म की खूब चर्चा हो रही है, 2 घंटे 53 मिनट की ये ड्रामा फिल्म मलयालम सिनेमा की अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शुमार हो चुकी है. लगभग 144 करोड़ का बिजनेस करने के बाद 'आदुजीविथम' मलयालम सिनेमा की तीसरी हाईएस्ट ग्रोसिंग और साल 2024 की सेकेंड हाईएस्ट ग्रॉसिंग फिल्म बन चुकी है. 

Advertisement

फिल्म 28 मार्च 2024 को वर्ल्ड वाइड रिलीज हुई थी और अब ये ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर भी अवेलेबल है. लेकिन फिल्म की कहानी है क्या, और उसमें ऐसा क्या खास है जो दर्शकों को इतनी पसंद आ रही है. फिल्म की चर्चा रिलीज के 10 महीने बाद भी जमकर हो रही है. ऑस्कर के नॉमिनेशन रेस में आने के बाद तो फैंस एक दूसरे को इसे देखने की रेकमेंडेशन भी दे रहे हैं. अब ये सिर्फ एक 'भेड़ चाल' है या सच में कहानी की पकड़ इतनी मजबूत है, आइये आपको बताते हैं. 

मजूदरों की दिल छू लेने वाली कहानी

'आदुजीविथम- द गोट लाइफ' की कहानी दो ऐसे प्रवासी मजदूरों के ईर्द-गिर्द घूमती है जो बेहतर जीवन यापन की तलाश में गल्फ चले जाते हैं. नजीब मुहम्मद और हकीम दो ऐसे किरदार, जो केरल से हैं और सऊदी अरब जाते हैं ताकि बेहतर कमाई कर परिवार को अच्छी जिंदगी दे सकें. लेकिन उनके सपने तब चकनाचूर हो जाते हैं जब उन्हें एहसास होता है कि वो गुलामी की दीवार में जकड़े जा चुके हैं. 

Advertisement

कहानी की शुरुआत होती है 'नजीब' से जिसे पानी का राजा दिखाया जाता है. वो तैरने, बारिश में भीगने में जीवन का आनंद ढूंढता है. उसका एक छोटा-सा घर है, जिसमें प्रेग्नेंट पत्नी साइनू और बूढ़ी मां रहती हैं. नजीब को जब पता चलता है कि एक जानकार मजदूरों को गल्फ कंट्रीज में भेजता है, जहां अच्छी कमाई हो सकती है तो वो 30 हजार में अपना घर गिरवी रखकर, आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए निकल पड़ता है. लेकिन उसे न तो वहां की भाषा आती है, न ठीक से हिंदी-अंग्रेजी की समझ है. वो महज पांचवीं तक पढ़ा है. उसके साथ ही दूसरे गांव का 'हकीम' भी बेहतर कमाई के लिए वहां जाने का फैसला करता है. 

लेकिन प्रॉपर नॉलेज न होने की वजह से वो गलत 'कफील' यानी मालिक के हाथ लग जाते हैं, और गुलामी का शिकार हो जाते हैं. पानी में खेलने कूदने और सुकून ढूंढने वाले नजीब को एक बीहड़ रेगिस्तान में रहना पड़ता है और 'जाहिल' शेखों की गुलामी करनी पड़ रही है. गहरी कद-काठी वाला नजीब अब एक-एक बूंद पानी को तरस रहा है, बिना वेतन के बस भेड़-बकरी चरा रहा है और मामूली सी गलती होने पर अपने कफील से बेहिसाब मार खा रहा है, खून बहा रहा है. खाना-पानी के अभाव में मार खा-खाकर नजीब अब एक पसली का लंगड़ा व्यक्ति हो चुका है. ऐसा ही कुछ हाल हकीम का भी हो चुका है, जिसे, उससे अलग किसी जगह पर गुलामी करवाई जा रही है. 

Advertisement

किस्मत से समझौता कर नजीब ने खोया विश्वास

नजीब अब जैसे इसका आदि हो चुका है और वो अब एक 'गोट लाइफ' यानी भेड़-बकरी जैसी जिंदगी बिता रहा है. शुरुआत की उसकी भागने की सभी कोशिश नाकाम हो चुकी हैं और अब वो सिर्फ दिन गुजार रहा है. वो अल्लाह पर से विश्वास खो चुका है. उसे सबसे नफरत हो चुकी है. वो मानता है कि अल्लाह है ही नहीं, अगर होता तो उसके साथ इतना बुरा नहीं होता. फिर वो कैसे इस बदतर होती जिंदगी से बाहर निकलता है, यकीन मानिए, ये नाटकिए बिल्कुल नहीं है. 

ध्यान देने वाली बात ये है कि, जब फिल्म आप देखते हैं तो आपको लगता है कि- हां, ये सब तो होता ही है. अरब जैसे देशों में अक्सर मजदूरों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है. वहां से निकल पाना तो नसीब की बात है. फिर आप नजीब को देखकर सोचेंगे कि अरे हीरो हो तुम, कुछ तो करो, चार-पांच शेख को तो यूंही मार दोगे. वहां से उनकी गाड़ी लेकर भाग जाओगे. लेकिन नहीं फिल्म में ऐसा कुछ नहीं होता है. फिल्म दरअसल 'नजीब के नसीब' का ही किस्सा कहती है. फिल्म का स्क्रीनप्ले आपको सोचने पर मजबूर करता है कि किसी भी सूरत में विश्वास नहीं खोना चाहिए. आपके साथ जो हुआ है वो कहीं न कहीं कुछ मायने रखता है. 

Advertisement
फिल्म का पोस्टर

हिम्मत न हारने की कहानी कहती है फिल्म

अब अगर ये कोई मसाला फिल्म होती तो नजीब सही में सबको मार गिराकर, पूरे सऊदी में आग लगाकर अपने घर अपनी पत्नी साइनू के पास वापस लौट आता. लेकिन नहीं क्योंकि 'आदुजीविथम' एक सच्चाई में लिपटी कहानी कहती है, तो इसका हीरो वो है जिसे देर-सवेर ही सही अपने अल्लाह पर भरोसा करना याद आया. जिसे समझ आया कि वक्त की ताकत क्या होती है? मदद किसी भी रूप में उसके पास आ सकती है. उसे आखिर में पता चलता है कि उसे उस बीहड़ से बचाने वाला कोई और नहीं बल्कि एक वांटेड अपराधी था, जिसके पोस्टर तक पुलिस स्टेशन में चस्पा हैं. जिसे ये एहसास हुआ कि किस्मत से आगे किसी को कुछ नहीं मिल पाया है. वहीं उसे ये भी एहसास हुआ कि वो रेगिस्तान में बिताए वो कुछ साल किसी और की जिंदगी जी रहा था, वो कफील उसे गलती से उठाकर ले गया था.

गहरी छाप छोड़ते हैं कई सीन्स

आप अगर मेरी तरह थोड़े संवेदनशील मानसिकता के हैं तो फिल्म देखकर जरा विचलित भी हो सकते हैं. फिल्म के कई सीन दिलों-दिमाग पर गहरा असर डालते हैं. पत्नी का बनाया आचार का डिब्बा जो नजीब ने सालों संभाल कर रखा है. बिरयानी खाने का दावा कर निकला नजीब अब पानी में एक सूखी रोटी डुबो कर खा रहा है. पानी न मिलने पर भेड़ों की नांद से पानी पी रहा है. हट्टा-कट्टा नजीब अब एक पसली का हो चुका है, जब भागने से पहले, शेख के जाने के बाद वो सालों बाद नहाने जाता है तो उसकी पसलियां तक चित्कार करती हैं. हमेशा साफ-सुथरा, क्लीन शेव रहने वाला नजीब सालों बाद धूप में जला हुआ अपना ही चेहरा देखकर डर जाता है. फिल्म में वो रेगिस्तान की वो सच्चाई दिखाई गई है, जो लोगों के पार्थिव शरीर को भी निगल लेता है. चील एक मांस नोच-नोचकर खाते हैं. 

Advertisement

जब सुकुमारन की जान पर बन आई

फिल्म में फेमस एक्टर पृथ्वीराज सुकुमारन ने नजीब मुहम्मद का किरदार निभाया है. इसके लिए उन्होंने जबरदस्त ट्रांसफॉर्मेंशन लिया था. उन्होंने इतनी कड़ी डायट ली थी कि मरने जैसी हालत हो गई थी. सुकुमारन बता चुके हैं कि वो 72 घंटों तक कुछ खाते नहीं थे, बहुत जरूरत पड़े तो महज कॉफी या पानी ही पीते थे. क्योंकि उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभानी थी, जो भूख-प्यास से तड़पा हुआ है. उन्होंने 31 किलो घटाए थे, वो इंसान के भूखे रहने की एक नॉर्मल लिमिट तक को पार कर चुके थे. इसके बाद उन्हें वापस ठीक शेप में आने में महीनों लग गए थे. उनके डेडिकेशन की खूब तारीफ हुई थी. वहीं हकीम का किरदार निभाने वाले गोकुल तो डायट की वजह से सेट पर बेहोश तक हो गए थे.

आदुजीविथम फिल्म का एक सीन

'आदुजीविथम- द गोट लाइफ' फिल्म इंसान को अपनी जिंदगी में होती उतार-चढ़ाव के बीच खोते-पनपते विश्वास की कहानी को कहती है, जो आप पर चुपचाप गहरा असर छोड़ जाती है. फिल्म में साइनू के किरदार में अमला पॉल, हकीम के रोल में के आर गोकुल, तो वहीं जिमी जीन-लुई ने अफ्रीकी मसीहा इब्राहिम कादरी की भूमिका निभाई है. फिल्म की कहानी 'बेन्यामिन' की नॉवल 'आदुजीविथम' से ली गई है. फिल्म को मलयालम सिनेमा के फेमस डायरेक्टर ब्लेसी ने डायरेक्ट किया है.

Advertisement

अब देखना तो दिलचस्प होगा कि ये फिल्म ऑस्कर के नॉमिनेशन में जगह बना पाती है या नहीं, लेकिन फिल्म ने फैंस के दिलों में जगह जरूर बना ली है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement