
नवाजुद्दीन सिद्दीकी का नाम आज भले ही इंडिया के टॉप एक्टर्स में शुमार हो, लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं रहा है. लगभग 15 साल के स्ट्रगल के बाद नवाज ने यह मुकाम हासिल किया है. इस स्ट्रगल के दौरान नवाज ने चौकीदार से लेकर कई छोटे-मोटे रोल्स किए हैं.
एक वक्त था, जब नवाज के घर इंटरव्यू के लिए कुछ जर्नलिस्ट पहुंचे थे. उस वक्त नवाज किराए के मकान में थे. मकान में दरारें और सीलन थी. अब रेंट पर रहने वाले नवाज का वर्सोवा में अपना बंगला है. सीलन भरे मकान से लेकर बंगले के सफर पर नवाज कहते हैं, सच्ची कहूं तो कमर्शल जर्नी पर मुझे कुछ भी फील नहीं होता है. मैं इसे अचीवमेंट मानता ही नहीं हूं. अचीवमेंट यह है कि आपने जो सोचा और फिल्म में एक्जीक्यूट हो गया. मैं जितना सोचता हूं उसका 10 प्रतिशत फिल्मों में भी आ जाए, तो तसल्ली मिलती है.
मैंने पहले भी कहा है कि मुझे सांस ट्रेन के सफर में आती है. मैं इतने बड़े मकान में भी छोटे से कमरे में रहना पसंद करता हूं. मुझे आज भी किसी झोपड़पट्टी में रुम दे दो, मैं वहां सो जाऊंगा. क्या फर्क पड़ता है. मैं तो इंसान ही हूं न. छोटे घरों में एलियन थोड़े न रहते हैं, हमारे जैसे ही इंसान ही तो रहते हैं. फिर हम क्यों नहीं रह सकते हैं. ये अजीब सा कॉन्सेप्ट है. ये जो डिफरेंस क्रिएट करते हैं, वो गलत लोग हैं. मैं अपने आपको स्पेशल क्यों समझूं यार, मैं एफर्ट तो जिंदगीभर तक करता रहूंगा. मुझ पर कभी आफत आए कि मुझे झोपड़पट्टी में वापस रहना पड़े, तो मैं खुशी-खुशी रह लूंगा. क्यों नहीं रह सकता मैं. लोगों को अक्सर इसी बात का डर सताता है कि सफर के उरूज के बाद वो कहां जाएंगे. मैंने कभी वो डर अपने अंदर रखा ही नहीं. मैं टॉप पर हूं या नीचे पहुंच गया, ये लोगों को तय करने दो. मैं तो इसे सफर की तरह लेता हूं. मैं बस काम करते जा रहा हूं. बस यही जुनून सवार है.
अगर आपके लिए फाइनैंशियल स्टेबिलिटी मायने नहीं रखती है, तो जाहिर है कई बार पैसों को लेकर ठगे गए होंगे. बेशक, कई बार हुआ है. उन्हें अगर मुझे चीट कर खुशी मिली है, तो अच्छी बात है. अब मैं उनसे थोड़े न बदला लेने पहुंच जाऊंगा. वो अपना कर्म खुद जानें. मैंने तो नहीं किया न. मैं बस इसी बात का ध्यान रखता हूं कि मेरी वजह से किसी और का बुरा न हो. मैं तो मानता हूं कि मैं हूं ही इसलिए, लोग मेरा फायदा उठाकर चले जाए. कुछ तो काम आ रहा हूं.
देखो, मैं मानता हूं कि जो मेरे अंदर मेरा टैलेंट है, वो मुझसे कोई नहीं छीन सकता है. ब्रह्मा के पास देवता गए, वो कहने लगे कि क्या करें इंसान जो है न, वो अपनी खुशी ढूंढ ही लेगा. तो ब्रह्मा को किसी ने सजेशन दिया कि इसे रेगिस्तान में छुपा दो. इंसान वहां भी चला गया.. समंदर में छुपा दो.. वहां भी इंसान पहुंच गया.. पर्वतों में छुपा दो.. वहां भी इंसान. फिर क्या करें, काफी सोचने के बाद उन्होंने इंसान के अंदर ही खुशी छुपा दी. इधर-उधर जाएगा वो खुशी ढूंढने के लिए लेकिन बाद में पता चलेगा कि यार खुशी तो मेरे अंदर थी. कहने का मतलब यही है कि मुझे जो ऊपरवाले ने दिया है, वो मेरे अंदर है. इन बंगले, गाड़ी कार से मुझे थोड़े न खुशी मिलती है. अगर मुझे इनसे खुशी मिल रही है, तो मैं अजीब किस्म का मतलबी इंसान हूं. मैं तो इन सब चीजों को बिलकुल भी प्रमोट नहीं करना चाहता हूं. ऑनेस्टी, मेहनत इनको प्रमोट करना चाहिए.