
29 अगस्त 1997 को मार्क रैनडॉल्फ और रीड हेस्टिंग्स ने घर-घर फिल्मों कि डीवीडी भेजने (किराए पर या खरीद कर) की कम्पनी शुरू की. नाम रखा नेटफ़्लिक्स. शुरू में मामला एक-एक डीवीडी का होता था लेकिन फिर बाद में लोगों के महीने-महीने के खाते भी शुरू हो गए. जिस कम्पनी ने 1997 में लगभग 925 डीवीडी के साथ शुरुआत की थी, 2005 तक ये कम्पनी 35 हजार फ़िल्मों की डीवीडी रखती थी और हर दिन 10 लाख डीवीडी लोगों तक पहुंचा रही थे.
फिर 2007 में कम्पनी ने स्ट्रीमिंग सर्विस शुरू की. इनके पास लगभग हजार फिल्में ऑनलाइन मौजूद थीं. कम्पनी का आइडिया कुछ और था लेकिन यूट्यूब जिस तरह से पांव पसार रहा था, नेटफ़्लिक्स को ऑन डिमांड स्ट्रीमिंग सर्विस लेकर आनी ही पड़ी. और वहां से होते-करते अब आलम ये है कि डीवीडी आदिकाल की बात हो चुकी है और नेटफ़्लिक्स के पास दुनिया भर में लगभग 22 करोड़ 18 लाख 'ग्राहक' हैं (31 दिसंबर 2021 का आंकड़ा).
लेकिन अब बात कुछ आगे निकल आयी है. लगभग हर दूसरे उत्पाद की तरह नेटफ़्लिक्स भी भारतीय ग्राहक पर ध्यान केंद्रित करने में लगा हुआ था. 2016 के पहले महीने में भारत में अपनी सेवाएं शुरू करने वाले इस स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म के सीईओ रीड हेस्टिंग्स ने हाल ही में कहा कि भारत के बाजार ने उन्हें निराश किया है और वो यहां न मिलने वाली सफलता से कुछ झुंझलाए हुए हैं.
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इस 'समस्या' की तह में जाने की कोशिश हर कोई अपने हिसाब से कर रहा है. नेटफ़्लिक्स ने भी अपने हिसाब से मामला दुरुस्त करने की कोशिशें की हैं और यही वजह है कि पूरी दुनिया में प्रतिमाह अच्छे-खासे पैसे लेने वाली ये कम्पनी भारतीय ग्राहक से सबसे कम पैसे ले रही है. नेटफ़्लिक्स ने अपनी सेवाएं शुरू करते वक्त भारत में 899 रुपये प्रतिमाह लिये थे. ये घटकर 649 रुपये प्रतिमाह पर आ गया है जिसमें कई स्क्रीन भी शेयर की जा सकती हैं. और तो और, मोबाइल सेवाओं में क्रांति लाने वाले 'छोटा रीचार्ज' की तर्ज पर इन्होंने भी 149 रुपये प्रतिमाह का प्लान दिया है. ये साफ तौर पर इशारा करता है कि नेटफ़्लिक्स अपना दायरा बढ़ाने की हर संभव कोशिश कर रहा है. लेकिन रीड हेस्टिंग्स को अभी भी मजा नहीं आ रहा.
असल में, आंकड़े भी ऐसा ही कुछ कहते हैं. जबकि भारत में फिलहाल डिज़्नी+हॉटस्टार के साढ़े 4 करोड़ से भी ज्यादा सब्स्क्राइबर हैं वहीं नेटफ़्लिक्स के साथ महज 55 लाख से कुछ ज़्यादा लोग जुड़े हैं. ये अंतर बहुत बड़ा है. अमेजन प्राइम के पास भी लगभग 2 करोड़ सब्स्क्राइबर्स हैं. वहीं कॉन्टेंट के मामले में 2021 में सबसे ज़्यादा देखे गए स्ट्रीम हुए 10 शोज में एक भी नेटफ़्लिक्स पर मौजूद नहीं है.
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फिर ऐसा क्या मसला है कि सेक्रेड गेम्स से खेल शुरू करने वाला नेटफ़्लिक्स लगातार पीछे रह रहा है और ऐसे देश में जहां नाटक, टीवी, सिनेमा देखना मंजन करने जैसी आम बात है, उसपर समय खर्चने को कोई तैयार नहीं है? हमने इसकी वजहें जानने की कोशिश की. और ये भी समझना चाहा कि आखिर इससे पार कैसे पाया जा सकता है.
पैसे की समस्या
नेटफ़्लिक्स सभी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स में सबसे महंगा है. महीने के 649 रुपये देने वाला इंसान सालभर में साढ़े 7 हज़ार रुपये से ऊपर खर्च कर देता है. अगर वो प्रीमियम की बजाय स्टैण्डर्ड प्लान भी ले, तो भी लगभग 6 हजार रुपये लुटाता है. इन 6 हजार रुपयों में एक ग्राहक डिज़्नी+हॉटस्टार या अमेज़न प्राइम की 4-4 साल सेवाएं ले सकता है. ये अंतर कितना बड़ा है, ये समझाने की कोशिश भी नहीं की जानी चाहिये.
फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्म से हमारी बात हुई. वो कहते हैं- "डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर भारत का बहुत अमीर तबका तो था ही. लेकिन वो तबका आकृष्ट नहीं हो पा रहा है जिसे होना चाहिए. हमारी पर्चेजिंग कैपेसिटी दुनिया की अपेक्षा में कमजोर रही है. और ये वो समय चल रहा है जब इन्फ़्लेशन तेजी से हो रहा है. महामारी का दौर है जहां लोगों की आमदनी कम हो गयी है. मैं ऐसे यूजर्स को जानता हूं जो एक महीने का पैक लेते हैं और पूरे साल का कोटा देख लेते हैं. 4 लोगों का एक ही अकाउंट शेयर होना तो चल ही रहा है. जबकि अमेजन और हॉटस्टार वगैरह उससे बहुत कम कीमत में आपको कॉन्टेंट पहुंचा रहे हैं."
इसके अलावा, एक बहुत बड़ी समस्या मालूम देती है मासिक पेमेंट की. ऐसा पेमेंट जो ऑटोमेटिक होता है. ग्राहक को अपना कार्ड डीटेल देना होता है और वहां उसका कार्ड हमेशा के लिये (जब तक आप सेवाएं लेना चाहें) सेव होता है और वहां से हर महीने एक तय तारीख को कटौती होती है. इस पेमेंट पद्धति से भारतीय ग्राहक बहुत परिचित नहीं हैं. और इस फेर में पड़ने से वो बचते हैं. एक बार सालाना पेमेंट में कोई ताम-झाम नहीं होता है जबकि नेटफ़्लिक्स हर महीने जेब ढीली करता है जिसका ख्याल मिडल-इनकम ग्रुप से आने वाले ग्राहक को असहज जरूर करता है.
कॉन्टेंट की समस्या
हमने जेड प्लस फिल्म के लेखक, सरकार 3 के डायलॉग लेखक और अनारकली ऑफ आरा के गीतकार रामकुमार सिंह से बात की. रामकुमार अपनी कहानियों में लोक की बात करते हैं और छोटे शहरों के किस्से-कहानियों के तरफदार हैं. वो कहते हैं- "मुझे नेटफ़्लिक्स के साथ ऐसा लगता है कि बहुत सारा जमीनी कॉन्टेंट नहीं है. बहुत एक्सपेरिमेंटल है. आप जब नयी कहानियों की बात करते हैं तो आपको उन राइटर्स से मिलना चहिये, नये क्रियेटर्स से मिलना चाहिये जिनके पास ग्रासरूट की कहानियां हों, इस देश कि कहानियां हों, इस ज़मीन की कहानियां हों. प्रॉब्लम ये हुई नेटफ़्लिक्स के साथ कि जब आये तो एकदम लगने लगा कि थियेटर का आतंक अब खत्म हो जायेगा. क्योंकि शुरुआत में एक छोटा राइटर, एक छोटा फिल्ममेकर एक कहानी लेकर जाता था तो उससे यही पूछा जाता था कि रिलीज कहां करोगे? तो, सभी को लगा कि ये मदद करेंगे. लेकिन समस्या ये हुई कि इन्होंने आते ही बड़े ब्रांड्स को पकड़ा और नये लोगों को नहीं चुना. ये ब्रांड के पीछे भागे. वो लोग तो हमेशा से वही परोस रहे थे जो चलता आ रहा था. कुछ भी नयापन आया ही नहीं. नेटफ़्लिक्स को करना ये चाहिये था कि वो नयी कहानियां चुनते, नये लोग चुनते. आप जब नये कॉन्टेंट, नये राइटर, नये आइडिया को जगह नहीं देंगे तो पुराने लोग लगातार जो करते आ रहे थे, जो थियेटर में मिलता आ रहा था, वही आपको यहां भी मिलेगा.'
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इस मामले में ऐसा ही कुछ कहना है फ़िल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज का. उन्होंने कहा- "सेक्रेड गेम्स से उन्होंने (नेटफ़्लिक्स ने) शुरुआत की. और उन्हें लगा कि इस स्टैण्डर्ड के ही प्रोग्राम हम लेकर आयेंगे तो हमारी जमीन तैयार होगी. और वो कहीं न कहीं हमारे दर्शकों को एक अलग मापदंड से आंक रहे थे. सेक्रेड गेम्स की पैकेजिंग बहुत अच्छी थी और क्राइम पसंद भी किया जाता है. लेकिन बाद में नेटफ़्लिक्स के जो शो आये, वो उसी स्टैण्डर्ड के नहीं रहे, कमजोर रहे. और नेटफ़्लिक्स ने भारतीय दर्शकों की रुचि का पूरा खयाल नहीं रखा. जबकि अमेजन उस हिसाब से बेहतर पैकेजिंग के साथ और बेहतर शोज के साथ आया."
इसी से जुड़ी बात हमारे एक लेखक मित्र ने भी कही जो अपना नाम सामने नहीं आने देना चाहते. उनसे बात इस बाबत हुई कि उनके लिखे शो नेटफ़्लिक्स और बाकी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर भी आ चुके हैं और फिल्म को प्रोड्यूस करने में भी वो अनुभवी हैं. उन्होंने कहा- 'यार, मुझे ऐसा लगता है कि नेटफ़्लिक्स का ऊपर का मैनेजमेंट है, वो सभी फैसले नहीं ले पा रहा है. बहुत सारे प्रोडक्शन हाउसेज ऐसे हैं, जिनका कॉन्टेंट नेटफ़्लिक्स ने लिया था क्योंकि वहां के टॉप के लोगों के नेटफ़्लिक्स वालों के साथ रिश्ते रहे हैं. लेकिन इनकी डिसीजन मेकिंग में इतनी समस्या है कि काम अच्छे से डिलीवर नहीं हो रहा है. मेरे शो के वक्त भी मुझे लगा था कि अच्छा शो बनेगा. लेकिन बीच में मुझे लगने लगा कि कुछ तो गलत हो रहा है. और अंत में जब वो शो सामने आया तो मैं बेहद निराश हुआ. और अभी उनके सीईओ ने जो बात कही है, उसके इर्द-गिर्द अंदर बहुत उथल-पुथल चल रही है. वहां के लोग गलत लोगों पर विश्वास कर रहे हैं.'
फिल्म-सीरीज के अलावा और क्या?
फ़िलहाल, भारत में टॉप स्ट्रीमिंग साइट्स को देखें तो नेटफ़्लिक्स एकमात्र ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है जहां आपको सिर्फ फिल्म या सीरीज मिलती हैं. जबकि टॉप के दो प्लेटफॉर्म, डिज़्नी+हॉटस्टार और अमेजन प्राइम और भी सेवाएं देते हैं. अमेडन का प्राइम सबस्क्राइब करने पर यूजर को अमेजन म्यूजिक मिलता है और शॉपिंग में फ्री डिलीवरी समेत तमाम सहूलियतें मिलती हैं. जबकि डिज़्नी+हॉटस्टार क्रिकेट समेत तमाम खेल दिखाता है. आईपीएल का लाइव टेलीकास्ट और आईसीसी टूर्नामेंट समेत भारत के सारे घरेलू मैच हॉटस्टार पर दिखाए जाते हैं. इसके अलावा डोमेस्टिक टूर्नामेंट भी हॉटस्टार के ही खाते में आते हैं. क्रिकेट के अलावा कबड्डी भी खासा लोकप्रिय है और प्रो कबड्डी भी हॉटस्टार पर दिखाया जाता है. वहीं भारत की विदेशी सीरीजें सोनी लिव पर दिखायी जाती हैं. सोनी लिव क्रिकेट के साथ-साथ WWE भी दिखाता है. सोनी लिव के पास सोनी के लापतागंज, एफआईआर, श्रीमान श्रीमती, तारक मेहता का उल्टा चश्मा जैसे नोस्टेल्जिया वाले टीवी कार्यक्रम भी हैं जो कई पीढ़ी के सदस्यों को खींचते हैं. इसके अलावा कौन बनेगा करोड़पति भी सोनी लिव को अच्छे-खासे दर्शक लाकर देता है. और तो और, अमेजन प्राइम भी क्रिकेट के मैदान में उतरा है. हाल ही में न्यूजीलैंड में हुई बांग्लादेश के साथ क्रिकेट सीरीज का लाइव प्रसारण अमेजन ने किया था और उन्होंने वादा किया है कि वो इसका दायरा बढ़ाएंगे. ऐसे सूरत में नेटफ़्लिक्स सिर्फ और सिर्फ विदेशी कॉन्टेंट के दम पर आगे बढ़ने की कोशिश करता दिख रहा है क्योंकि भारतीय कॉन्टेंट तो लगातार फ़्लॉप होता ही दिख रहा है.
निवारण कैसे हो?
रामकुमार सिंह कहते हैं- "ऐसा नहीं है कि दूसरे प्लेटफॉर्म बहुत कोई अच्छा काम कर रहे हैं. बहुत कुछ अच्छा करना बाकी है. जिस तरह से कोरियन ड्रामा में नेटफ़्लिक्स निवेश कर रहा है, वो उदाहरण है. वो अपने देश की कहानियां कहते हैं. उनका बेहद अलग कल्चर है लेकिन हैं तो हम सभी इंसान ही. हमारी समस्याएं भी एक जैसी होती हैं. इसलिये आप उनके किरदार से रिलेट कर पाते हैं. आपको ऑडियंस का ध्यान रखना पड़ेगा. जब तक जमीन से जुड़ी कहानियां और नये लोगों को नहीं ढूंढोगे आप, नयी कहानियां ढूंढने का रास्ता नहीं निकालेंगे ये लोग, तब तक ये समस्या रहेगी. सोनी के पास साबुन-तेल नहीं है बेचने को (जैसे प्राइम पर शॉपिंग भी की जा सकती है) लेकिन उसे देखते हैं लोग. वो कॉन्टेंट पर काम कर रहे हैं. वो कुछ लाते हैं तो लोग उत्सुक होते हैं. इसका मतलब है कि उनकी टीम सीरियस होकर काम कर रही है. तो सोनी पर जो दिख रहा है, वो नेटफ़्लिक्स में मिसिंग है. हिंदुस्तान में इतनी कहानियां हैं, आप कल्पना नहीं कर सकते हैं. बाहुबली आने से पहले कोई नहीं सोच सकता था कि इतिहास की कहानी को ऐसे कहा जा सकता है. हमारी प्रॉब्लम ये है कि हम एक स्थापित मॉडल पर काम करते रहते हैं. इस चक्कर में आप ज़्यादा पैसा भी खर्च कर रहे हैं महंगे लोगों के साथ काम करके. इसकी जगह आपको ये करना चाहिये कि उतने बजट में 5 नये फिल्ममेकर्स के साथ काम करें. आप पुराने, ब्रांडेड लोगों के साथ काम करेंगे तो उनसे बदलाव नहीं करवा पायेंगे. आप आदित्य चोपड़ा से ये नहीं कह सकेंगे कि स्क्रिप्ट में ये बदल दीजिये. उनके पास अपना हाउस है. वो खुद बना लेंगे."
हमारे अनाम मित्र ने कहा- "मैंने बहुत सारे लोगों से बात की और हम में एक आम राय ये है कि सोनी लिव, नेटफ़्लिक्स से बेहतर ऑप्शन है. और यहां मैंने ये भी देखा है कि इतने सारे OTT प्लेटफॉर्म शुरू हुए हैं, इसमें क्रियेटिव जगहों पर वो लोग बैठे हैं जो खुद कभी राइटर या डायरेक्टर बनना चाहते थे, लेकिन वो सफल नहीं हो पाये और वो यहां आकर बैठ गए. क्योंकि उनके कनेक्शन थे और थोड़ी बहुत समझ थी. लेकिन ये खेल ही अलग है. यहां आपको लोगों की समझ होनी चाहिये. कहने को तो क्रियेटिव हर कोई है. एक बड़ा लेखक पूरी रात जागकर एक सीन लिखता है और अगले दिन सेट पर स्पॉट बॉय उसे सुझाव देता है कि 'सर, इसको ऐसा कर दें तो?' लेकिन आपकी समझ कितनी है और कितने समय तक आप उस समझ को बरकरार रख पाएंगे, खेल इस चीज का है. नेटफ़्लिक्स लोगों को अच्छा पैसा भी देता है. तो ऐसा भी नहीं है कि अच्छे लेखक वहां नहीं आना चाहते. डिसीजन मेकिंग में सारी गड़बड़ी चल रही है.'
यानी, कुल मिलाकर यही दिख रहा है कि नेटफ़्लिक्स को बड़े बदलाव लाने की जरूरत है. उन्हें नये सिरे से समस्या को पहचानकर, सही नस में सुई चुभाने की जरूरत है. उन्हें इंडस्ट्री के नये-पुराने धड़ों से आंखें चार करने की जरूरत है और इस भारतीय बाजार रूपी उस सच्चाई को भी देखने की जरूरत है जो दुनिया के तौर-तरीकों से बहुत अलग चलती है. बाकी, संजय मिश्रा ने एक तख्ती पर लिखकर संदेश दिया ही था - 'सब कुछ यहीं है. आंख खोलकर देख लो.'