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The Elephant Whisperers: आग में झुलस कर मर रही थी बेटी, हाथी के बच्चों को खाना देना नहीं भूली मां, ये हैं फिल्म के रियल लाइफ हीरोज

द एलिफेंट व्हिसपरर्स असल में एक आदिवासी कपल की कहानी पर बनाई गई है. ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि रियल लाइफ स्टोरी है. जिसे पर्दे पर बखूबी दिखाया है. ये बेहद शानदार है कि इस तरह की शॉर्ट फिल्म ने ऑस्कर तक हासिल कर लिया. तो आइये आपको बताते हैं, कौन हैं वो रियल लाइफ कपल?

द एलिफेंट व्हिसपरर्स द एलिफेंट व्हिसपरर्स
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 10:49 AM IST

'द एलिफेंट व्हिसपरर्स' भारत की पहली डॉक्यूमेंट्री है, जिसे ऑस्कर से सम्मानित किया गया है. इस फिल्म ने विदेशी मंच पर ऐसी ख्याति हासिल की है, जो अभी तक किसी को नसीब नहीं हुई थी. फिल्म एक कपल की कहानी को दर्शाती है, जो एक हाथी के बच्चे को अपने बच्चे की तरह पालता है. महज 40 मिनट की इस भारतीय शॉर्ट फिल्म ने फिरंगियों को भी इमोशनल कर दिया. 

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'द एलिफेंट व्हिसपरर्स' असल में एक आदिवासी कपल की कहानी पर बनाई गई है. ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि रियल लाइफ स्टोरी है. जिसे पर्दे पर बखूबी दिखाया है. ये बेहद शानदार है कि इस तरह की शॉर्ट फिल्म ने ऑस्कर तक हासिल कर लिया. तो आइये आपको बताते हैं, कौन हैं वो रियल लाइफ कपल?

कई चुनौतियों का किया सामना
50 साल के बेली और उनके पति बोमन, एक आदिवासी कपल हैं, जिन्होंने हाथी के बच्चे को पाला और उसे अपने बच्चे की तरह प्यार दिया. बोमन एक महावत है, जिसे थेप्पाकडू के सुरम्य मुदुमलाई जंगलों में दो अनाथ हाथी के बच्चे मिले. बोमन उन्हें घर ले आया और उनका नाम रघु और अम्मू रखा. रघु की मां की मां की मौत करंट लगने से हो गई थी. ये बोमन से सहा नहीं गया. तब दोनों बच्चे तीन महीने के ही थे. बोमन को उन्हें पालने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. शुरुआत में बेली हाथी के इन बच्चों को पालने में बिल्कुल भी कम्फरटेबल नहीं थी. उन्हें बहुत मुश्किल होती थी. लेकिन हाथियों की मां के साथ हुए हादसे ने बेली का मन भी पिघला दिया था. 

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बेटी की हुई मौत

बेली ने रघु और अम्मू का इस कदर ध्यान रखा कि जब उनकी खुद की बेटी की जान पर बात आई, तब भी इन्हें खाना खिलाना नहीं भूलीं. बेली और बोमन की बेटी की आग में झुलस कर मौत हो गई थी. बेली अपनी बेटी से मिलने अस्पताल भी वक्त पर नहीं पहुंच पाई थी. जब तक बेली वहां पहुंचीं, जहां खुद की बेटी अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ाई लड़ रही थी, उसका निधन हो गया था. बताया जाता है कि, बेली और बोमन की बेटी की नई-नई शादी हुई थी, जिसके कुछ दिन बाद ही उसके साथ ये घटना हुई. लेकिन ऐसे वक्त में भी बेली ने हाथी के बच्चों को अकेला नहीं छोड़ा क्योंकि अकेले में हाथी के बच्चे बेकाबू हो जाते हैं. जब तक बेली रघु और अम्मू को खाना देकर, सुला कर वहां पहुंची, उन्हें बेटी की जली हुई बॉडी ही देखने को मिली. 

अचीवमेंट पर जताई खुशी

डेकन हेराल्ड को दिए इंटरव्यू में बेली ने कहा- 'रघु और अम्मू मेरे अपने बच्चे हैं. बल्कि इन्हें मेरे बेटे और बेटी से ज्यादा ही प्यार मिला है. हमें पता चला कि हमारी कहानी को दुनियाभर से बहुत प्यार मिला है. बहुत बड़ा अवॉर्ड भी मिला है. हमें पता नहीं वो क्या है, लेकिन हम खुश हैं कि हमारे किए को सभी ने सम्मान दिया है. हाथी हमारे भगवान हैं, हमारी जिंदगी की रेखा है.' 

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वहीं बोमन ने कहा- हाथी के बच्चों को बड़ा करना आसान नहीं होता है. हमें अपने दैनिक जीवन का एक बड़ा हिस्सा उन्हें समर्पित करना पड़ा है. हमें हाथी को खाना खिलाना है और समय पर दूध देना है. हमें उनकी जरूरतों के प्रति बहुत संवेदनशील होने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि वे अपना मुंह खोलकर हमसे नहीं पूछ सकते कि वे क्या चाहते हैं. हर एक बात को समझना आसान नहीं है.

हाथियों से अपने बॉन्ड को शेयर कर बोमन ने कहा- अनाथ बछड़ों की देखभाल में बहुत ज्यादा ध्यान, देखभाल और प्यार की जरूरत होती है. हर समय उनके साथ रहना पड़ता है. जब हम उन्हें पाल रहे थे तो हम कभी भी कहीं नहीं जा सकते थे. जब वे सो जाते थे, तभी हम थोड़ा आराम कर पाते थे. बोमन और बेली एक आदिवासी जाति से हैं, जो बहुत पैसे वाले तो नहीं पर बड़े दिलवाले जरूर हैं. तभी तो उनकी इस मार्मिक कहानी ने हर किसी का दिल जीत लिया है. 

 

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