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पंचायत का पहला सीजन देखने के बाद इसके दूसरे सीजन के इंतजार की जो सबसे बड़ी वजह थी, वो थी प्रधान जी की बेटी रिंकी. ऐसा इसलिए क्योंकि पहले सीजन में रिंकी की सिर्फ झलक दिखी और इसके साथ ही सीजन खत्म हो गया. दूसरे सीजन में रिंकी न सिर्फ दिखी बल्कि उसके किरदार को भरपूर नोटिस किया गया. उसका सादगी भरा किरदार नीना गुप्ता, रघुबीर यादव जैसे दिग्गजों के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा और अब तो उन्हें नेशनल क्रश जैसी उपाधियों से भी नवाजा जा रहा है.
रिंकी का किरदार निभाया है सान्विका ने. सान्विका अपने किरदार को मिले रिस्पॉन्स से बहुत ज्यादा खुश हैं. उन्होंने सोचा नहीं था कि लोगों का इतना प्यार मिलेगा. सोशल मीडिया पर उन्हें सर्च कर पाना इतना आसान नहीं था. फिर भी खोज निकालकर लोग लंबे-लंबे मैसेज कर रहे हैं. सान्विका बताती हैं कि ज्यादातर मैसेज में लोग कह रहे हैं कि नैशनल क्रश हो गई हो, तुम बहुत सिंपल हो, मासूम हो, तुमने हीरोइन की परिभाषा बदली है, मुझे तुम्हारी जैसी बीवी, बहू चाहिए. कई तो मैसेज के रूप में लंबा खत लिख रहे हैं.
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शूटिंग एक्स्पीरियंस पर सान्विका ने बताया कि, सेट पर सबसे ज्यादा मजेदार रघुबीर सर रहा करते थे. इतने सीनियर होने के बावजूद उनके अंदर बचपना है. सेट पर गाना गाते थे, सबको हंसाते रहते थे, दूसरे प्रह्लाद चा (फैसल मलिक) भी बहुत स्वीट थे. मुझे एक सीन में स्कूटी चलानी थी. पहले यह तय हुआ कि मेरी दोस्त चलाएगी लेकिन उसे तो बिलकुल नहीं आती थी. मुझे स्कूटी चलाने की जिम्मेदारी दी गई. वहां सड़क तो थी नहीं, टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर मैंने स्कूटी चलाई. ऐसे में एक-दो बार फिसल भी गई. खैर, ज्यादा चोट नहीं लगी थी. मैं शूटिंग के वक्त बहुत नर्वस थी. दरअसल रिंकी को लेकर लोगों की उम्मीदें बहुत हाई थीं. दूसरी बात नीनाजी और रघुबीर सर के साथ काम करना था. मैंने खुद को बहुत प्रेशर में डाल लिया था. लेकिन उन्होंने मुझे परिवार की तरह ट्रीट किया और बहुत सपोर्ट किया. मुझे सहज महसूस करा दिया था. जिस वजह से धीरे-धीरे कॉन्फिडेंस बढ़ता गया. एक बार तो किसी को-स्टार ने मजाक से मुझे कुछ कह दिया था, उस दौरान नीना मैम ने बिलकुल मां की तरह मेरा स्टैंड लेते हुए मेरा साथ दिया था.
ऐसा रोल करूं, जिसे परिवार को दिखा पाऊं
सान्विका सीजन वन में बहुत ही कम समय के लिए आई थी. उस वक्त उनको उम्मीद भी नहीं थी कि उनका किरदार रहेगा या नहीं. वो कहती हैं कि एडिट टेबल पर कुछ भी हो सकता है. फिर सेकेंड सीजन में जब अपने किरदार से इंट्रोड्यूज हुई, तो मैं बहुत खुश थी. मुझे करियर में ऐसे ही रोल्स से अपना करियर शुरू करना था. मैं ऐसा किरदार चाहती थी कि जिसे मैं अपने परिवार को दिखा पाऊं. रिंकी के रोल से परिवार बहुत खुश है और अब मुझे ज्यादा सपोर्ट करता है.
इंस्टाग्राम पर फोलोअर्स नहीं होने की वजह से निकाली गई
पिछले 6 साल से मुंबई में एक्टिंग के लिए स्ट्रगल कर रहीं सान्विका ने रिजेक्शन भी खूब झेले हैं. कई बार ऐसा भी हुआ कि ऑडिशन क्रैक कर लिया लेकिन चूंकि इंस्टाग्राम पर अच्छे फॉलोअर्स नहीं हैं, तो उन्हें कास्ट करने से इनकार कर दिया गया. वो कहती हैं आजकल कास्टिंग डायरेक्टर्स की मांग है कि फॉलोअर्स का होना जरूरी है. मैं इसे बहुत ही गलत ट्रेंड मानती हूं. आप एक्टिंग को एक्टिंग के बेसिस पर जज करें न कि इंस्टाग्राम के फॉलोअर्स पर. मेजर रोल्स इसलिए नहीं मिलते थे और रिप्लेस हुई हूं क्योंकि इंस्टाग्राम पर फॉलोअर्स नहीं हैं.
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अपने पिछले दिनों को याद कर वो बताती हैं कि मैंने ऑडिशन के लिए दरवाजे दर दरवाजे नॉक किए. कई बार देखती थी कि मेरी ही उम्र की लड़कियां बैठी हुई हैं लेकिन मुझे देखकर मिसफिट कर देते थे. कई बार मुझे ऑडिशन रूम तक में घुसने नहीं दिया जाता था. ऐड्स में उन्हें अप-मार्केट लड़कियां चाहिए होती थीं. मैं ठहरी छोटे शहर की, तो शायद मेरे चेहरे से वो रिफलेक्ट होता था. जब पंचायत का ऑडिशन दिया, तो बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि सिलेक्ट होऊंगी. मुझे लगा कि कोई बहुत सुंदर लड़की जाएगी. लेकिन मैं मेकर्स की शुक्रगुजार हूं.
बिना मेकअप का था रिंकी का किरदार
रिंकी के किरदार में मेकअप बिलकुल भी नहीं था. दीपक सर ने पहले ही कह दिया था कि रिंकी के लिए हमें मेकअप चाहिए ही नहीं. अगर आप थोड़ा सा भी बेस लगाते हो या मेकअप दादा हल्का टचअप ही देते थे, तो वो सब हटवा देते थे. उनका कहना था कि गांव की लड़की है, तो उसे गांव की लड़की की ही तरह दिखना चाहिए. कई सीन्स में मेरे पिंपल्स भी दिखे हैं, ये सबूत है कि मेकअप नहीं किया था. मुझे तो लगा था कि शायद पोस्ट शूटिंग एडिटिंग कर मेरे चेहरे को मेकअप करा देंगे. उन्होंने ऐसा नहीं किया. मैं काफी डरी हुई थी, मुझे लग रहा था कि पता नहीं लोग मुझे कैसे देखेंगे. कहीं मैं स्टीरियोटाइप तो नहीं हो जाऊंगी. बिना मेकअप का देख मुझे लोग पसंद करेंगे या नहीं, ये मेरी टेंशन थी क्योंकि हमारी इंडस्ट्री में सिंपलिसिटी की कोई कदर ही नहीं है. यहां आपको फ्लैशी और ग्लैम रहना होता है. आप मॉडर्न ड्रेस में होने चाहिए.
पंचायत के बाद जिंदगी कितनी बदली, सान्विका ये भी बताती हैं. जो छोटे-छोटे रोल्स आते थे, वो बंद हुए हैं. उन्होंने यशराज की फिल्म कैदी बैंड से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी. जहां वो जर्नलिस्ट बनी थीं. उसके बाद उनको कॉरपोरेट लुक्स के लिए साइडर रोल्स ऑफर होने लगे. कुछ वेब शोज में भी एक दो दिन के लिए काम किया. वो कहती हैं कि कई ऐसे काम भी किए, जिन्हें खुद भी नहीं देखा. मुंबई जैसे शहर में रहने के लिए ऐसे छोटे-मोट रोल्स करना मजबूरी हो जाता है.
घर वाले हमेशा पूछते थे कि बेटा काम मिला? वो हमेशा आस में रहते थे कि मेरी बेटी को कब काम मिलेगा, कब शो में नजर आएगी? मैं उनको झूठ बोल-बोलकर एक पॉइंट पर गिल्ट में चली गई थी. ऐसे में पैरेंट्स से बात करना अवॉइड करने लगी. चार-पांच दिनों के अंतराल में उनको कॉल किया करती थी. मैं यह नहीं समझ पाती थी कि आखिर पैरेंट्स को क्या जवाब दूं. कैसे बताऊं कि यहां प्रॉजेक्ट का मिलना कितना बड़ा स्ट्रगल होता है. कितने धक्के खाने पड़ते है. कितने रिजेक्शंस होते हैं. बस उनसे कहती थी कि, हां ठीक काम चल रहा है. मैं अपने दर्द फैमिली को बताना नहीं चाहती थी.