
सुष्मिता सेन ने अपनी अपकमिंग फिल्म ताली की अनाउंसमेंट की है. इस फिल्म में सुष्मिता सेन ट्रांसजेंडर श्रीगौरी सावंत का किरदार निभाती नजर आएंगी. श्रीगौरी सावंत आज मुंबई के मलाड स्थित जनकल्याण नगर में 500 ट्रांसजेंडर परिवार संग रहती हैं. आज गौरी सोशल एक्टिविस्ट के रूप में सेक्स वर्कर्स के हित में काम करती हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर उनके लिए आसान नहीं था. परिवार से तिरस्कार, समाज में जग हंसाई, पैसे की तंगहाली कई प्रॉब्लम से जूझते हुए गौरी ने अपना मुकाम बनाया है. 16 साल की उम्र में घर से भागी गौरी की जर्नी वाकई दिल दुखा देने वाली है. अपने इस सफर के बारे में गौरी हमसे दिल खोलकर बातचीत करती हैं.
16 साल की उम्र में भाग गई
मूल रूप से पुणे की रहने वाली श्रीगौरी सावंत का बचपन बहुत कठिन रहा है. तीन भाई बहनों में सबसे छोटी गौरी कहती हैं, मैं तीसरी संतान थी, तो इसलिए ऊपरवाले ने थर्ड जेंडर बनाकर भेजा. मेरा एक भाई और बहन है. ट्रांसजेंडर होने का खामियाजा बचपन से भुगत रही हूं. नौ साल की थी, तो मां बचपन में ही चल बसी थीं. बचपन से बुलिंग का शिकार रही. घर पर सहम कर रहती थी. कोई बात करने को तैयार नहीं होता था. वो मुझे साड़ी पहनने और मेकअप नहीं लगाने देते थे. मुझे मार नहीं पड़ी लेकिन उनका इग्नोरेंस मुझे अंदर तक कचोटता था. वो ज्यादा दर्दनाक होता है. वो जख्म न कुरेदो तो बेहतर है, सिहर जाती हूं. यहां तक कि मेरे पिताजी ने मेरा जीते जी अंतिम संस्कार कर दिया था. वहां मेरा रहना नहीं रहना एक समान था.
इतना टूट गई थी कि आखिरकार भागने का डिसीजन लेना पड़ा था. पापा खाना लाने गए थे और मैं मौका देखकर घर से निकल पड़ी. जब भी कभी मुंबई से पुणे ट्रैवल करती हूं, तो वो रास्ते देखकर आज भी जख्म ताजा हो जाता है. महज 60 रुपये लेकर मैं घर से भागी थी. मैंने रास्ते में वड़ापाव खरीदा था. गणपति मंदिर में जो प्रसाद मिलता था, उसे चार पांच बार खाया. प्लेटफॉर्म पर कितनी रातें गुजारी हैं. आज भी कोई हिजड़ा भागकर मेरे पास आता है, तो मैं सबसे पहले उसे बिना सवाल कर कहती हूं कि पहले खाना खा ले.
सेक्स वर्कर बनने के लिए खूबसूरत चेहरा नहीं था
जब मुंबई आई, तो मेरे गुरू कंचन अम्मा ने मुझे अपने यहां जगह दी. सिग्नल पर उन्होंने मुझे देखा और अपने यहां लेकर गई. आप जब ट्रांसजेंडर होते हैं, तो वहां आपसे पूछा जाता है कि आप क्या करना चाहते हैं. कोई सिग्नल में जाकर भीख मांगता है, तो कोई सेक्स वर्कर बनता है. चूंकि मैं सुंदर थी नहीं, सेक्स वर्कर बनी ही नहीं. दिल तो किया था कि मैं हर आदमी के साथ खेलूं लेकिन मेरी बदसूरती आडे़ आ गई. भीख मांगना मुझसे हुआ नहीं, तो मैं एनजीओ में काम करने लगी. सबसे पहले मैं हमसफर से जुड़ी. मैं महाराष्ट्र ऐड्स कंट्रोल सोसायटी के लिए काम करती हूं.
एचआईवी ऐड्स को लेकर सेक्स वर्कर्स के साथ काम किया है, जहां से हम कंडोम डिस्ट्रीब्यूशन और अवेयरनेस फैलाते हैं. तब से मेरी लाइन ही बदल गई है. सेक्स वर्कर्स के बच्चों को मैं बेहतरीन एजुकेशन देना चाहती हूं ताकि वो आगे चलकर अपनी मां की तरह बनने पर मजबूर न हो जाएं. अपनी लाइफ के टर्निंग पॉइंट पर गौरी कहती हैं, किसी ने मुझे और मेरी कहानी को लेकर आर्टिकल किया था यूनीक मदर हेडिंग के साथ. वो आर्टिकल आने के बाद ही मुझे विक्स कंपनी से कॉल आया था. उस ऐड ने मेरी जिंदगी बदल दी. मैं घर-घर पर पहचानी जाने लगी. लोगों का नजरिया भी बदला था.
500 का भरा पूरा परिवार है
ट्रांसजेंडर के साथ अन्याय तो उसके जन्म के साथ शुरू हो जाता है. मेरे पास 500 का भरा-पूरा ट्रांसजेंडर परिवार है. सबकी कहानियां दुख से भरी हैं. अस्पताल में कई ट्रांसजेंडर हैं, जो एचआईवी पॉजिटिव हैं. उन्हें बेड नहीं मिलता, बाथरूम के पास सुला देते हैं. मेडिकल वाले हाथ लगाने को तैयार नहीं होते हैं. कितनों की मौत इसी लापरवाही की वजह से हो जाती है. परिवार वाले तो अलग परेशान करते हैं. घर में शादी है का हवाला देकर पैसे लेकर जाते हैं और शादी तक में अपने बच्चों को शामिल नहीं करते. हर रोज किसी के साथ कुछ न कुछ गुजरता ही है, जिसे देखकर मन टूट जाता है. बुरे वक्त में तो साफ इंकार कर जाते हैं, कहते हैं कि हमारे समाज को पता चल जाएगा, तो घर पर कोई शादी नहीं होगी.
पिताजी के मौत की खबर 15 दिन बाद मिली
आज के समय में फैमिली से अपने इक्वेशन पर गौरी कहती हैं, आज मेरे पास सबकुछ है, पैसा, शोहरत, इज्जत लेकिन इन सबको बांटने वाला परिवार कहीं पीछे रह गया. पिताजी को गुजरे हुए एक साल हो गए हैं. उनके मृत्यु की खबर मुझे 15 दिन बाद मिली. मुझे वॉट्सऐप पर मेरे मौसेरे भाई ने कंडोलेंस मेसेज भेजा, मैंने उससे पूछा किसका कंडोलेंस मैसेज है, तो उसने बताया कि तुम्हारे पापा का. मैं मंदिर में थी, जो मेरे घर से 10 मिनट की दूरी पर है लेकिन मुझे घर पहुंचने में चार घंटे लग गए. मैं बीच सड़क पर रो रही थी.
आंखों पर पापा को लेकर फ्लैशबैक चल रहा था. मुझे पता चला कि पापा मेरे लिए एक लेटर छोड़कर गए हैं लेकिन परिवार वाले उसे नहीं दे रहे हैं. मेरा भाई मुझे मानने से इंकार कर देता है. यहां तक कि मेरे भाई ने कोर्ट में लिखकर दिया है कि मैं बहरूपिया हूं और मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है. आज पूरे देश में लोग मुझे जानते हैं, लेकिन विडंबना देखो कि मेरा परिवार ही मुझे मानने से इंकार कर चुका है. सुप्रीम कोर्ट का पेटिशन आने के बाद भी इनको अक्ल नहीं आई है. प्रॉपर्टी से मेरा नाम तक निकाल दिया है. मैं प्रॉपर्टी की लड़ाई इसलिए लड़ रही हूं ताकि मैं लोगों के लिए उदाहरण बन सकूं और मेरी तरह बाकी गौरी को उनका हक मिल सके.